Columnist

आज मूल कर्तव्य दिवस है

कनक तिवारी
राजनीति में यह अच्छा है कि हर विरोधी पार्टी सत्तानशीन होने पर पिछली विपरीत सरकार का एजेन्डा आगे बढ़ाने में उज्र नहीं करती. डॉ. मनमोहन सिंह की यूरो-अमेरिकी कारपोरेट आर्थिक नीतियों के उत्तराधिकारी बने नरेन्द्र मोदी केवल प्रबंधन में ही परिवर्तन कर पा रहे हैं.

इसी तरह आपातकाल में प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने संविधान के बयालीसवें संशोधन के जरिए देश के शासनतंत्र पर पकड़ बनाए रखने के विवादित परिवर्तन किए थे. उनमें से कई संशोधनों को जनता पार्टी की सरकार ने जस का तस रखा.

सत्ता में आने के बाद पैतरों की राजनीति अमूमन जनता को चित्त करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. बयालीसवें संशोधन के जरिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने अनुच्छेद 51-क के जरिए कुछ मूल कर्तव्यों की फेहरिश्त को संविधान में जोड़ा था.

ऊपरी तौर पर निर्दोष दिखने वाले ये कर्तव्य दरअसल केन्द्र सरकार की सत्ता को मजबूत रखने के मकसद से जोड़े गए थे.

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग की केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश तथा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष जे.एस. वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था.

उसे यह तय करने का काम दिया गया था कि वह बताए कि किस तरह मूल कर्तव्यों को शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल कर तथा अन्य माध्यमों से मूल कर्तव्यों की भावना को जनता के सोच में शामिल किया जा सके. जस्टिस वर्मा ने अपनी आदत के अनुसार कठोर परिश्रम के जरिए सिफारिशों का मोटा खाका तैयार किया.

उसमें सुझाया गया कि संविधान की उद्देशिका तथा मूल कर्तव्यों की सूची को सभी सरकारी प्रकाशनों, डायरियों, कैलेण्डरों तथा प्रचार के अन्य माध्यमों के जरिए जनता तक पहुंचाया जाए. इस सिलसिले में आकाशवाणी तथा दूरदर्शन की भूमिका का भी रेखांकन किया गया.

रिपोर्ट को पेश करने के आधार पर प्रत्येक वर्ष 3 जनवरी को देश में मूल कर्तव्य दिवस मनाए जाने का नायाब सुझाव भी दिया गया. सरकारें रिपोर्टों को गोदामों तथा संदूकों में बन्द करने के लिए तैयार कराती हैं. यह न्यायमूर्ति वर्मा को संभवतः मालूम नहीं रहा होगा.

संविधान के भाग 4-क के अनुसार मूल कर्तव्यों की सूची इस तरह जोड़ी गईः

51-क. भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह

(क) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे;
(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;
(ग) भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
(घ) देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
(ड.) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है;
(च) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे;
(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
(झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले.}
(ट) जो माता-पिता या संरक्षक हैं या, जैसी भी स्थिति हो, छह और चौदह वर्ष की आयु के बीच का प्रतिपाल्य बच्चा है, शिक्षा के लिए व्यवस्था करने का अवसर दिलाए.

मूल कर्तव्यों की फेहरिश्त में कई प्रमुख बिन्दु हैं ही नहीं. यदि उन्हें रखा जाता तो लोकतंत्र की मंज़िल तक पहुंचने में बेहतर मदद मिलती. मूल कर्तव्य कहते हैं कि ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है.

लेकिन संविधान टोनही प्रताड़ना, खाप पंचायत, बहुविवाह और स्त्रियों को बांझ तथा विधवा कहते उन्हें नारकीय जीवन जीने से रोक नहीं पा रहा है. संविधान प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करने का मूल नागरिक कर्तव्य बताता है.

एक केन्द्रीय मंत्री पर लेकिन हिमाचल की नदी को अपने होटल के लिए मोड़ने पर पचास लाख रुपए का सुप्रीम कोर्ट के जरिए जुर्माना किए जाने को देखता भर रहता है. संविधान की मनाही के बावजूद देश में कोलगेट और बैंक फ्रॉड जैसे कारपोरेट घोटाले हो रहे हैं.

राष्ट्रध्वज का सम्मान करने की सीख पर आचरण करते हुए भी नवीन जिंदल जैसे उद्योगपति प्रदूषण फैलाने, कारपोरेट घोटाले करने और आंदोलनों को कुचलने के आरोपी भी बनते रहते हैं. मूल कर्तव्य के अनुसार माता पिता और संरक्षकों को छह और चौदह वर्ष की आयु के बीच के बच्चों को शिक्षा दिलाए जाने के प्रबंध करने के सात्विक निर्देश हैं.

इन निर्देशों की क्या ज़रूरत थी जब अनुच्छेद 21-क के अनुसार ऐसे बच्चों को सरकार से शिक्षा पाने का मौलिक अधिकार है. वह शिक्षा उन्हें मिल भी कहां रही है?

मूल कर्तव्यों में सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का परिरक्षण करने का आह्वान किया गया है. फिर भी संघ परिवार के कई सदस्य सत्ता में रहने के बावजूद मुसलमानों और ईसाइयों को जबरिया हिन्दू बनाते उसे उनकी घर वापसी करार देते हैं.

विवेकानन्द के नाम का उपयोग करने वाले यह अनदेखी क्यों करते हैं कि विवेकानन्द के अनुसार सभी लोगों में बराबरी की भावना का सबसे ज्यादा श्रेय तो इस्लाम को है.

वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाए जाने का आग्रह होने के बाद भी टेलीविजन के चैनलों पर ज्योतिष के पाखंड और आसाराम, निर्मल बाबा, रामपाल और डेरा सच्चा सौदा सहित अनेक साधु संतों का जमावड़ा देश की जनता का बहुत अधिक समय, धन और ध्यान क्यों ले जाता है.

मूल कर्तव्यों पर देश में राष्ट्रीय बहस किए जाने की जरूरत है. इन कर्तव्यों को मूल अधिकारों का इस तरह पूरक बनाया जाना चाहिए कि यदि मूल कर्तव्यों का पालन नहीं हो तो ऐसे व्यक्तियों को मूल अधिकारों से ही वंचित रखा जाए.

error: Content is protected !!