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इंदौर को अब इस ‘शर्म’ के लिए याद रखिए

श्रवण गर्ग
लता मंगेशकर, कर्नल सी के नायडु ,उस्ताद अमीर खाँ और एम एफ़ हुसैन जैसी हस्तियों के शहर इंदौर के कोई 25 लाख मतदाता हैरान-परेशान हैं कि अब 13 मई को उन्हें क्या करना चाहिए जिस दिन चौथे चरण का मतदान होने वाला है ? मतदान के पहले ही उन्हेंठगते हुए शहर का संसदीय प्रतिनिधि लगभग तय कर दिया गया और अब सिर्फ़ औपचारिकता का निर्वाह होना बाक़ी है !

हैरान सिर्फ़ वे मतदाता ही नहीं हैं जो यह जानते हुए भी कि ‘जीतेगी तो भाजपा ही’इस बार और ज़्यादा ताक़त से मोदीजी को हराने की कोशिश करना चाहते थे, वे लोग भी हैं जो प्रधानमंत्री के कट्टर समर्थक हैं. उनकी परेशानी यह है कि जब पार्टी-उम्मीदवार बिना लड़े ही विजयी बन रहा है तो कड़कती धूप में बाहर निकलकर क्यों तो ख़ुद की चमड़ी जलाई जाए और क्यों दूसरों की ज़िंदगी हराम की जाए ?

सबसे ज़्यादा मानसिक कष्ट में भाजपा के उम्मीदवार को माना जा सकता है कि वह दिल्ली पहुँचकर मुँह कैसे दिखाएँगा कि किसे और कितने मतों से हराकर संसद में पहुँचा है ! पिछली बार तो साढ़े पाँच लाख मतों से कांग्रेस को परास्त कर देश में रिकॉर्ड बनाया था फिर संसद में यह माँग भी कर दी थी कि सिंधियों के लिए अलग राज्य की स्थापना की जाए. अगर विरोधियों ने ‘नोटा’ कर दिया और भाजपा के लोग घरों से बाहर ही नहीं निकले तो इस बार रिकॉर्ड किस बात का बनेगा ?

वर्तमान भाजपा सांसद को यह पीड़ा भी हो सकती है कि शहर को चलाने वाले पार्टी के ही सर्वशक्ति-संपन्न नेताओं ने उससे पूछा तक नहीं कि कांग्रेस द्वारा खड़े किए गए अब तक के सबसे कमज़ोर उम्मीदवार को भी मैदान से हटवा दिया जाए कि नहीं ? अब उसे इसी शर्मिंदगी के साथ शहर में पाँच साल पास करना होंगे कि पार्टी के ही ‘सक्षम हितेषियों’ने उसे औपचारिक रूप से जीत का श्रेय प्राप्त करने से वंचित कर दिया. वह यह भी कभी नहीं पता कर पाएगा कि इस तरह के ऑपरेशन के लिए सुपारी कहाँ से मिली होगी !

कांग्रेस के उम्मीदवार को मैदान से न सिर्फ़ ‘उसकी ही मर्ज़ी से’ हटवा दिया गया, उसके गले में नई पार्टी की साख का प्रतीक भगवा दुपट्टा भी तुरंत लपेट दिया गया. अब शहर में एक ही पार्टी के ‘दो सांसद’हो जाएँगे ! एक बिना लड़े जीता हुआ और दूसरा बिना हारे विजयी बनाया गया. इंदौर में जो ड्रामा हुआ वह चंडीगढ़, खजुराहो और सूरत से भिन्न है. जो कुछ हुआ उस पर कोई ‘बेस्ट सेलर’ किताब लिखीया ‘द इंदौर फ़ाइल्स’नाम से बॉक्स ऑफिस फ़िल्म बनाई जा सकती है.

सचाई यह भी है कि कांग्रेस ने जिस व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया था बस वही एकमात्र ‘सक्षम’ नाम पार्टी के पास बचने दिया गया था. अर्जुन सिंह के ज़माने से राहुल भैया तक पार्टी के लिए जान खपा देने वाला 2019 में पार्टी का गुजराती उम्मीदवार 2024 के चुनावों के ठीक पहले भाजपा को प्राप्त हो चुका था. इसी तरह अन्य तीन-चार भी जो हर तरह से सक्षम थे, भाजपा के हार्ट ट्रांसप्लांट की गिरफ़्त में जा चुके थे.

सत्तारूढ़ दल अब गर्व के साथ दावा कर सकता है कि इंदौर को ‘स्मार्ट सिटी’ में बदलने का वायदा चाहे जुमले में बदल गया हो, भारत के सबसे ‘स्वच्छ शहर’ को और इतना साफ़ कर दिया गया है कि वह लोकसभा चुनाव के लिए ‘कांग्रेस-मुक्त’ हो गया है.

स्वतंत्रता संग्राम के कई योद्धाओं/ क्रांतिकारियों को जन्म देने के साथ-साथ संविधान सभा में भी प्रतिनिधित्व निभाने वाले इंदौर शहर मेंआज़ादी के बाद पहले बार सिर झुकाने वाली घटना हुई है. चालीस लाख के क़रीब की आबादी वाले मध्यप्रदेश के (अब कथित) सांस्कृतिक शहर में अब ऐसे संयोग भी बन सकते हैं जब बहुचर्चित ड्रामे के सभी किरदार एक जैसे दुपट्टों की मालाएँ गलों में लटकाए एक ही मंच पर सम्मान करवाते नज़र आएँ. इंदौर के नागरिक जब दूसरे शहरों की यात्रा पर जाएँगे उनके माथों पर इस उपलब्धि के तिलक मंडे हुए होंगे.

जनता के मन में इस सवाल का उत्तर जानने की जिज्ञासा है कि एक ऐसे विपक्षी उम्मीदवार को चुनावी मैदान से क्यों हटवाया गया होगा जो : युवा है ! पढ़ा-लिखा है ! एक विशाल शैक्षणिक संस्था चला रहा है ! सक्षम है ! महत्वाकांक्षी है ! राजनीति में प्रवेश के लिएहाथ-पैर पटक रहा था ! जो यह भी जानता था कि हारने के लिए चुनाव लड़ रहा है ! मध्यप्रदेश के उन सब स्थानों जहां कांग्रेस के ताकतवर उम्मीदवारों से भाजपा का मुक़ाबला था, वहाँ इस प्रयोग को आज़माने की जोखिम नहीं मोल ली गई ! क्या इंदौर की प्रयोगशाला में नैतिकता-मुक्त राजनीति का कोई टीका विकसित किया जा रहा है ?

इंदौर ही नहीं, उससे जुड़े मालवा-निमाड़ के बाक़ी सात संसदीय क्षेत्रों के मतदाता भी जानना चाहते हैं कि मोदीजी की सरकार में क्या एंटी-इंकम्बेंसी का इतना ज़बर्दस्त भय व्याप गया है कि कांग्रेस का सबसे कमज़ोर उम्मीदवार भी भाजपा के सबसे मज़बूत गढ़ में उसके मौजूदा उम्मीदवार को हरा सकता है ? अगर यह सही है तो मानकर चलना चाहिए कि देश इस समय एक बड़ी मोदी-विरोधी लहर की चपेट में है !

इंदौर में जो हुआ उसका संदेश पूरी दुनिया में उसी तरह गया है जिस तरह यहाँ के पोहे, कचोरी और जलेबी प्रसिद्ध हैं. चर्चाएँ बेमतलब नहीं समझी जानी चाहिए कि भाजपा के मज़बूत गढ़ माने जाने वाले राज्यों- मध्यप्रदेश, राजस्थान ,छत्तीसगढ़- में भी पहले दो चरणों के कम मतदान ने पार्टी के आत्म-विश्वास को बुरी तरह से बौखला दिया है ! आशंकाएँ व्यक्त की जा सकतीं हैं कि एक जून को सातवाँ चरण पूरा होने तक पार्टी के बाहुबली जादूगर कुछ बड़े चमत्कार भी कर सकते हैं.

जनता की भावनाएँ जब कौड़ियों के दाम तौली जाने लगतीं हैं तो राजनीति का भी कोठाकरण होने लगता है. ऐसे में बस किसी भी शानदार शहर की केवल शर्मनाक मौत की प्रतीक्षा ही की जा सकती है. वह शहर इंदौर भी हो सकता है और सूरत भी !

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