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थम नहीं रहा हसदेव में पेड़ों की कटाई का विरोध

नई दिल्ली | डेस्क: छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई का मुद्दा गहराता जा रहा है. भारत सरकार की वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की चेतावनी और विधानसभा के सर्वसम्मति से पारित चेतावनी के बाद भी अडानी के एमडीओ वाले खदान में पेड़ों की कटाई की गई.

दुनिया भर में इस कटाई के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन के बीच दिल्ली में भी एक प्रेस कांफ्रेस का आयोजन किया गया.

यह प्रेस कांफ्रेंस ऐसे समय में किया गया, जब इसी महीने की सात तारीख़ को छत्तीसगढ़ के जन संगठनों ने हसदेव चलो अभियान की शुरुआत करने की घोषणा की है.

प्रेस कॉफ्रेंस में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के उमेश्वर सिंह अरमो, पर्यावरण कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरे, वरिष्ठ पत्रकार परंजय गुहा ठाकुरता, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के वकील सुदीप श्रीवास्तव, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट प्रशांत भूषण और बड़ी संख्या में पत्रकार, कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी उपस्थित थे.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला ने कहा कि “छत्तीसगढ़ से लेकर ओडिशा तक ‘विकास’ के एजेंडे के लिए आदिवासियों का विस्थापन और उनके विरोध का अपराधीकरण किया जा रहा है. भूमि अधिग्रहण और खनन से संबंधित कानून की सभी उचित प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया जा रहा है. और साथ ही जनता, आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन किया जा रहा है. जैसे ही भाजपा सरकार छत्तीसगढ़ में आई उसने अपने पसंदीदा कॉर्पोरेट अडानी के लिए संसाधनों को लूटना और आदिवासियों का दमन करना शुरू कर दिया.”

आलोक शुक्ला कहते हैं कि “हसदेव साल और सागौन का वन होने के साथ-साथ हाथी और वन्यजीवों का भी निवास स्थान है. यदि इसे नष्ट किया गया तो राज्य में मानव-हाथी संघर्ष को कोई रोक नहीं सकता है. यह पूरा क्षेत्र संविधान की पांचवीं अनुसूची में आता है. पांचवीं अनुसूची के तहत आता है. ऐसे में क्षेत्र में कोई भी काम होने से पहले वहां ग्रामसभा से अनुमति लेनी होती है. लेकिन ग्राम सभाओं से अनुमित नहीं मिलने के बावजूद 7 कोल ब्लाक आवंटिक कर दिए गए.”

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के उमेश्वर सिंह अरमो ने कहा- “सरकार ग्राम सभा के प्रस्ताव को नहीं मान रही है. 670 दिनों से वहां धरना चल रहा है. संविधान के तहत हमें जंगल बचाने का अधिकार है. लेकिन हसदेव में सक्रिय आदिवासियों के खिलाफ पुलिस पहले से ही केस दर्ज कर रखी है. जब आंदोलन शुरू होता है तो पुलिस धमकाने पहुंच जाती है.”

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा-“हसदेव में जंगल को काटने और आदिवासियों को उनके अधिकारों से बेदखल करने में केंद्र सरकार, राजस्थान सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार मिलकर काम कर रही हैं. हसदेव में कोल ब्लॉक शुरू करने में इतने सारे मानकों का उल्लंघन हो रहा है. भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् (ICFRE) की एक गोलमोल रिपोर्ट से हसदेव में हजारों पेड़ों को काट दिया गया. हसदेव में पूरे देश का मात्र 2 प्रतिशत कोल रिजर्व है. यहां पर पर्यावरण, वन्यजीव, आदिवासी हकों की धज्जियां उड़ाई जा रही है.”

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में वकील सुदीप श्रीवास्तव ने कहा-“हसदेव में कोयला बहुत कम है लेकिन अन्य स्थानों की अपेक्षा यहां कोयला निकालने की लागत बहुत कम है. इसलिए मोदी सरकार ने अपने चहेते उद्योग समूह को कोयला खनन दे दिया.”

वरिष्ठ पत्रकार परंजय गुहा ठाकुरता के कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अपने चहेते उद्योगपति गौतम अडानी का कोयला क्षेत्र में भी उसी तरह एकाधिकार स्थापित करने के लिए नियम-कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं जिस तरह से एयरपोर्ट क्षेत्र में किया गया. गौतम अडानी के समूह को एयरपोर्ट के रखरखाव करने का कोई अनुभव नहीं था. उसी तरह इस समूह को कोयला खनन के क्षेत्र में भी सरकारी संरक्षण दिया जा रहा है.

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