छत्तीसगढ़

अमरीका में गांधी से लेकर जयपाल सिंह तक को याद किया आलोक ने

रायपुर | संवाददाता: अमरीका के सेन फ्रांसिस्को में ग्रीन नोबल गोल्डमैन अवार्ड का कार्यक्रम मंगलवार को भारतीय समयानुसार सुबह 6 बजे शुरु हुआ. छत्तीसगढ़ के आलोक शुक्ला के नाम की घोषणा की गई तो लगभग चार हज़ार लोगों की समवेत तालियों ने उनका स्वागत किया.

बड़ी संख्या में उपस्थित भारतीय लोगों ने आलोक शुक्ला द्वारा हिंदी में अपना उद्बोधन दिए जाने पर खुशी जाहिर की.

सम्मान समारोह में बोलते हुए आलोक शुक्ला ने गांधी, नेहरु से लेकर बिरसा मुंडा और जयपाल सिंह तक को याद किया.

आलोक शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा-“यह सम्मान मेरा नहीं, बल्कि मध्यभारत के लंग्स कहे जाने वाले, समृद्ध हसदेव जंगल को बचाने के लिए, 12 वर्षो से संघर्षरत आदिवासियों और उस आन्दोलन से जुड़े प्रत्येक नागरिक का है.”

उन्होंने कहा-“मुझे याद आ रहा है वह दिन जब मैं पहली बार हसदेव अरण्य क्षेत्र में गया | मैंने देखा कि वहाँ के लोग निराश, हताश थे और भविष्य की चिंता से जूझ रहे थे. उन्हें यह तो पता था कि उनके साथ बड़ा अन्याय होने जा रहा है, लेकिन उससे बचने की ना तो उम्मीद थी और ना ही कोई रास्ता सूझ रहा था. जब हमने जनता को इन समृद्ध जंगलों के विनाश के खिलाफ संगठित करना शुरू किया, तो रास्ता खुद-ब-खुद तैयार होता गया.”

आलोक शुक्ला ने अपनी विरासत को याद करते हुए कहा- “भारतवर्ष में प्रकृति को बचाने और अन्याय के खिलाफ संघर्ष की एक समृद्ध विरासत है-बिरसा मुंडा से लेकर जयपाल सिंह मुंडा तक, तिलका मांझी से लेकर टांट्या भील तक, और गुंडाधूर से लेकर वीर नारायण सिंह तक. भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरु और बाबा साहेब अंबेडकर के अहिंसात्मक संघर्ष की विरासत ने हमें ताकत और ऊर्जा दी. और भारत के संविधान और शक्तिशाली लोकतान्त्रिक परम्पराओं ने, जल-जंगल-ज़मीन और उस पर निर्भर आदिवासी जीवन शैली को बचाने का एक मज़बूत ढांचा प्रदान किया.”

उन्होंने हसदेव के संघर्ष को रेखांकित करते हुए कहा-“हमें गर्व है आदिवासी समुदाय पर, विशेष रूप से महिलाओं पर, जिन्होंने इस संघर्ष में आयी सभी चुनौतियों का डट-कर सामना किया और इसी कारण हसदेव के 4 लाख 45 हजार एकड़ समृद्ध जंगल आज भी बचे हुए हैं. संघर्ष के कारण ही लेमरू हाथी रिसर्व अधिसूचित हुआ.”

आलोक शुक्ला ने हसदेव आंदोलन को लेकर कहा कि-“हसदेव के इस आन्दोलन ने दुनिया-भर में यह उम्मीद भी जगाई, कि एक शोषित-वंचित वर्ग, केवल साफ नीयत और लोकतान्त्रिक तरीकों से, दुनिया की सबसे ताकतवर कार्पोरेट के लोभ और हिंसा का, मजबूती से मुकाबला कर सकता है. वह विकास के नाम पर हो रहे विनाश को चुनौती दे सकता है. हालाँकि, हसदेव के लिए निरंतर लड़ रहे लोग जानते हैं कि हसदेव पर संकट के काले बादल अभी छँटे नहीं हैं. कुछ हिस्से पर अभी भी जंगल-कटाई और विस्थापन की कोशिश है, जिसे बचाने के लिए संघर्ष जारी है. निश्चित रूप से इस सम्मान से हसदेव को बचाने के आन्दोलन को ताकत मिलेगी.”

आलोक शुक्ला ने अपने उद्बोधन में आम जन का आह्वान करते हुए कहा- “जलवायु परिवर्तन के मौजूदा संकट में, प्राकृतिक संसाधनों, और उन पर निर्भर मानव संस्कृति को बचाने के लिए आज, गाँव या शहर, वर्ग, भाषा, एवं देश की सीमाओं से परे, दुनिया के सभी पर्यावरण के प्रति संवेदनशील नागरिकों, जन-संगठनों और सरकारों को एकजुट होना होगा. यदि हम चाहते हैं कि हमारी दुनिया हरी-भरी, सुन्दर और सभी जीवों के रहने लायक बनी रहे तो हमें विकास की अपनी परिभाषाओं को सिरे से बदलना होगा, और विकास के नए मॉडल की संरचना करनी होगी.”

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