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राजनीति में विकल्प व्यक्ति नहीं, विचार होता है

चंचल | फेसबुक
विकल्प ? पहले पत्रकार होते थे, राजनीति से समाचार उठाए जाते थे, अब पत्रकार की जगह रफूगर आ गये हैं. राजनीति ने सु कहा, ये रफूगर सु को पकड़े हुए, सुरहुर पुर तक भागेंगे, और वहाँ खड़े खड़े किसी सनक को पकड़ कर उसे रफू करने लगेंगे. सनक राजनीति में डाल कर उसे पेरा जाने लगेगा, राजनीति चिंदी-चिंदी झरती जाएगी, मुंह ऊपर किए खड़ा गिरोह लीलता जायगा, बाबा और बीवियों की गीत गवनयी चलने लगेगी, साहब नयी कोट लेकर उड़ चलेंगे. लेकिन कब तक ?

रफूगरों ने नया सवाल छींटा- इसका विकल्प ?

केजरीवाल, नीतीश कुमार ? यानी बहस इसी पर हो, ‘असल’ पर मत आओ.

सुन कारीगर ! तुम कितने ज्ञान में खड़े हो, सब उघार हो चुका है. तुम मोदी का विकल्प खोजने लगे ?

सुन मिरासी- विकल्प दो खाने में खड़ा है. एक खाना है तुम्हारा अपना. पहले अपने अंदर देखो, वहाँ मोदी का विकल्प कौन है ? फिर बाहर देखना प्रतिपक्ष के खाने में कौन खड़ा है.

तानाशाह के रोज़ही रफूगर, आसमान की छाती पर उगते सूरज के सामने, सलमा सितारा लटका कर बता रहे हैं- जुगुनू का विकल्प सूरज नही है, विकल्प यह ‘सलमा’ है, और यह ‘सितारा’ है. पहली बार सरकारी रफूगरों ने सही सोहर उठाया कि जुगुनू का विकल्प क़रीने से पालिस किए गये, रंग रोगन से पुते एक सलमा सितारे ही विकल्प हैं.

जुगुनू से कह दो रात बीत गयी है, भोर होने को है, सूरज निकल रहा है. पहली बार सही डगर पर हो.

मोदी का विकल्प मोदी की ही प्रतिछाया होगी. केजरीवाल या नीतीश ? दोनों प्रायोजित हैं. नीति और नियति है, कांग्रेस न आने पाए, अपने ही ‘कुटुम्ब’ को काट छाँट कर विकल्प बनाया जाय. अब यह खेल भी खुल चुका है.

जनता केजरीवाल को जानती है. इनका पालन पोषण संघ की छाँव में हुआ है. जब रामलीला मैदान में एक ट्रक ड्राइवर को गांधी बना कर खड़ा किया कि ये लोकपाल माँग रहे हैं, केजरीवाल मुलाजमत छोड़ कर अपने NGO के साथ संघ के घेरे में आ खड़ा हुआ. दिल्ली से कांग्रेस बाहर रहे, इसकी जगह पर एक हुकुम का ग़ुलाम रख दो. कभी कोई नीतिगत विरोध हुआ केजरीवाल की तरफ़ से ?

और नीतीश ? कल इन दोनो पर, अलग से.

असल विकल्प उठ चुका है, वह विकल्प किसी व्यक्ति का नही है. वह विकल्प है- एकाधिकारवादी सत्ता के सनकी मकड़जाल का. विकल्प है आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्वरूप के बिखरे खंडहर का. वह विकल्प है भारत के समाजवादी समाज की संरचना के टूटे ढाँचे को नए सिरे से स्थापित करने का. धर्म, जाति, लिंग और गोत्र के नाम पर समाज को न बाँटने देने का विकल्प. वह तोड़ो की जगह जोड़ो का विकल्प लिए निकल पड़ा है.

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