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नेहरू अब भी उदास हैं

साधारण सा हुलिया और लंगोटधारी खुली देह होने पर भी उनमें कोई शाही रुतबा और सल्तनती अमलदारी थी जिसने स्वेच्छा से सबको विनयी बनने पर मजबूर कर दिया था.

पिता मोतीलाल नेहरू का यह चित्र कितनी निश्छल और प्रवाहमान भाषा में उन्होंने खींचा है-‘चौड़ा ललाट, भिंचे हुए होंठ और दृढ़निश्चयात्मक ठुड्डी की मुखाकृति वाले मेरे पिताजी इटली की म्यूजियम में रखे रोमन बादशाहों से दीखते थे………..मैं समझता हूं मैं उनके सम्बन्ध में पक्षपात कर रहा हूं, लेकिन आज की इस कमजोर और ओछी दुनिया में मैं उस पवित्र उपस्थिति से वंचित हूं. चारों ओर मुझे कोई दिखाई नहीं पड़ता जो उन जैसा शानदार और भव्य हो.‘

5. बैंसिल मैथ्यूस ने (जिन्हें जवाहरलाल नेहरू ने अपनी ‘विश्व इतिहास की झलक‘ समर्पित की थी) ठीक ही कहा था कि भविष्य के आईने में नेहरू की तस्वीर एक प्रखर राजनीतिज्ञ के रूप में भले न उभरे, कलम के धनी के रूप में वह सदियों याद किये जायेंगे. विश्वविख्यात पत्रकार जॉन गुन्थर के अनुसार इस सदी में नेहरू की टक्कर के लेखक इने-गिने ही हुए हैं. वस्तुतः जवाहरलाल ऐसे राजनीतिज्ञ नहीं थे, जो अवकाश के क्षणों में मनोरंजन के लिए साहित्य-सृजन का ढोंग रचते थे.

साहित्य बल्कि इतिहास के लिए यह विशेष दुर्भाग्य का विषय है कि राजनीति ने एक मौलिक प्रबुद्ध चिन्तक और असाधारण लेखक उससे छीन लिया था. अपनी ‘आत्मकथा‘ में उन्होंने अपना मानसिक अन्तद्वन्द्व, हृदय की वेदना, महत्वाकांक्षाएं और असफलताएं कलाकार की नैतिक ईमानदारी के साथ अभिव्यक्त की हैं. एक महान् मानववादी इतिहासकार के रूप में ‘विश्व इतिहास की झलक‘ में उन्होंने सम्पूर्ण विश्व वांड.मय का संतुलित सर्वक्षण प्रस्तुत किया है. ‘भारत की खोज‘ में उन्होंने भारत के अतीत की महानता के गीत गाए हैं.

6. ‘विश्व इतिहास की झलक‘ में नेहरू ने विनम्रतापूर्वक लिखा है ‘मैं इतिहासकार होने का दावा नहीं करता. मेरे ये समस्त पत्र असंख्य गलतियों से भरे पड़े हैं.‘ वस्तुस्थिति ठीक इसके विपरीत है. आलोचकों के अनुसार इसके तथ्य अधिक प्रामाणिक और भाषा अधिक जीवन्त है. नेहरू को इतिहास से असीम प्यार था.

उनका वर्णन पेशेवर इतिहासकारों की तरह केवल मृत घटनाओं और स्थलों का उल्लेख मात्र नहीं है. आंकड़ों, तथ्यों एवं घटनाओं से लैस होने की अपेक्षा उन्होंने इतिहास में जीवन की सांस फूंकी है. अपनी कृतियों में उन्होंने काव्यात्मक तथ्य संप्रेषित किए हैं. जवाहरलाल ने पहली बार इतिहास और कविता की परम्परागत शत्रुता का लबादा उतारकर उन्हें पूरक सिद्धांतों के रूप में पेश किया.

उनके अनुसार इतिहास और कविता जीवन के अंश पहले हैं, सामाजिक विज्ञान तथा कला बाद में. यह एक मौलिक साहसिक प्रयोग है. ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें इतिहास और रोमान्स का यह गठबंधन मुग्ध नहीं करता. ये इतिहास को सैनिक तथा कूटनीतिज्ञ इतिवृत्त समझते हैं. वे यह नहीं समझते कि रीति-रिवाजों और नैतिक मान्यताओं का इतिहास, जो प्रत्येक नई पीढ़ी के साथ बदलता है, संधिविग्रहों के इतिहास से कहीं ज्यादा दिलचस्प है.

7. जन-मान्यता ने जवाहरलाल नेहरू को ‘महानतम राजनीतिज्ञ‘, ‘शांतिदूत‘, ‘युग-मानव‘ जैसी संज्ञाएं अवश्य दी हैं. उनके अधिक उदात्त, भावुक और सौन्दर्य प्रिय साहित्यिक पक्ष पर अब तक यथेष्ट प्रकाश नहीं पड़ा है. उनकी मृत्यु के बाद ही उनके लेखक का रूप उभरकर सामने आया.
‘नेहरू अभिनंदन ग्रंथ‘ में टाम विंट्रिगम ने सही बात लिखी है-‘‘भारत की अगली पीढ़ियां अंग्रेज़ी पढ़ने में इस बात पर जिद करेंगी कि वह उन्हें मेकाले या गिबन की अपेक्षा ‘विश्व इतिहास की झलक‘ से पढ़ाई जाये. इससे वे अधिक प्रामाणिक इतिहास तथा अच्छी भाषा सीख सकेंगे.‘

नेहरू इस सदी के महानतम लेखकों में एक थे. आधुनिक इतिहास में मानव मात्र के सहृदय आलोचक उन जैसे और कितने हुए हैं? अपनी शारीरिक सीमाओं से सर्वथा उन्मुक्त वे विराट मानवीय चेतना के प्रतिनिधि अंश थे. असाधारण संतुलित उनकी लेखनी में ऐतिहासिक पकड़ थी. व्यक्तिगत स्तर पर झेले गए अनुभवों को युगानुभूत सत्य बना देने की उनकी अद्भुत क्षमता ही उनके साहित्य सृजन का रहस्य है.

उनकी कृतियां उनके राजनीतिक जीवन दर्शन का आईना होने के अतिरिक्त उन महान आदर्शों की वसीयत हैं जिन्हें वे भारत की नई पीढ़ी के नाम कर गए हैं. अपने रचयिताओं की तरह ये दोनों कृतियां भी राष्ट्रीय रंगमंच पर एक दूसरे की पूरक सिद्ध हुईं. गांधी के अतिरिक्त जवाहरलाल की यह अद्भुत काव्य-सृष्टि शिल्प और शक्ति में रूसो, गिबन, सेंट आगस्टाइन, जान स्टुअर्ट मिल और फ्रैंकलिन की आत्मकथाओं से टक्कर लेती है.

‘आत्मकथा‘ का पहला वाक्य है-‘‘एक समृद्ध मां बाप से उसके बेटे का बिगड़ना लगभग तय ही होता है, खासतौर पर हिन्दुस्तान में और भी ज्यादा. यदि वह बेटा ग्यारह वर्षों तक मां बाप की इकलौती संतान हो, तब बिगड़ने से उसका बचना लगभग नामुमकिन ही है.‘ इस तरह उत्सुकता, आशंका और अपेक्षाएं लिए पाठक ‘आत्मकथा‘ हाथ में लेता है. श्रीमती चांग काई शेक के अनुसार उसे बिना पूरा पढ़े बिस्तर में पड़े रहने पर मजबूर हो जाता है.‘‘

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