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नया सिल्क रोड

चीन का बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव वैश्विक राजनीति और आर्थिक तौर पर एक मास्टर स्ट्रोक है.चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. लेकिन ऐसा लग रहा है कि चीन रिकॉर्ड समय में पहले स्थान पर पहुंचने वाला है. इसके लिए वह ऐसी परियोजना लेकर आया है जिससे न सिर्फ उसकी आर्थिक स्थिति ठीक होगी बल्कि वैश्विक राजनीति में भी वह मजबूत होगा.

14 और 15 मई को बेल्ड ऐंड रोड फोरम में हिस्सा लेने के लिए 28 राष्ट्राध्यक्ष और तकरीबन 100 देशों के प्रतिनिधि बीजिंग पहुंचे. इन लोगों ने सिल्क रोड इकॉनोमिक बेल्ट और 21वीं सदी की सामुद्रिक सिल्क रोड परियोजना को लॉन्च किया. इसे ही बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई और वन बेल्ट, वन रोड भी कहा जाता है. यह एक ऐसी परियोजना है जिससे चीन कई सड़क मार्ग, रेल मार्ग और सामुद्रिक मार्ग के जरिए यूरोप से जुड़ जाएगा.

एशिया की दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था क्रमशः जापान और भारत हैं. इन दोनों ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया. भारत ने ‘संप्रभुता और सीमाई अखंडता’ के मसले पर चिंता जताई.

चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने सिल्क रूट के ऐतिहासिक यादों को ताजा कराया. उन्होंने यह कहा कि इस रूट के जरिए 140 ईसा पूर्व से 1450 ईस्वी तक पूर्व और पश्चिम जुड़े हुए थे. चिनपिंग ने बीआरआई को ‘सदी की परियोजना’ बताया और कहा कि यह आपसी समझदारी को बढ़ाने और फायदे पर आधारित होगा और इसके मूल में पारदर्शिता और समावेशिता होगी. लेकिन इन सबके परे इस परियोजना के राजनीतिक और आर्थिक महत्व को समझना होगा.

बीआरआई के तहत छह गलियारे होंगे और एक सामुद्रिक रूट होगा. ये छह गलियारे हैं- पश्चिमी चीन से पश्चिमी रूस, उत्तरी चीन से मंगोलिया के रास्ते पूर्वी रूस, पश्चिमी चीन से मध्य व पश्चिम एशिया के रास्ते तुर्की, दक्षिण चीन से सिंगापुर, दक्षिण-पश्चिम चीन से पाकिस्तान और दक्षिण चीन से बांग्लादेश और म्यांमार के रास्ते भारत. वहीं सामुद्रिक सिल्क रोड तटीय चीन से सिंगापुर, मलेशिया, हिंद महासागर, अरब सागर और स्ट्रेट ऑफ होरमुज के रास्ते भूमध्य सागर तक पहुंचेगा.

अब इसकी वैश्विक राजनीति को समझते हैं? अमरीका इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती मान रहा है. अमरीका के जूनियर पार्टनर के तौर पर जापान और भारत चीन के उभार को पचा नहीं पा रहे हैं. भारत को इस बात पर भी आपत्ति है कि बीआरई के छह गलियारों में से एक चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भारत के दावे वाले पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरने वाला है.

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शीत युद्ध के बाद से अमरीका ने दुनिया के प्रमुख संसाधनों वाले स्थानों पर कब्जा करने की लगातार कोशिशें की हैं. अमरीका अपने लिए चुनौती के तौर पर मुख्य तौर पर रूस, चीन और जर्मनी की अगुवाई वाले यूरोपीय देशों को मानता रहा है. अमरीका अपनी रक्षा तंत्र पर इतने पैसे खर्च कर रहा है कि आने वाले दिनों में भी उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता. 2003 के इराक युद्ध के बाद से लगातार यह संकेत मिले हैं कि अमरीका यूरेशिया के नक्शे को फिर से बनाने की कोशिश कर रहा है. यूरोप और एशिया के बीच कोई प्राकृतिक भौगोलिक सीमा नहीं है. शीत युद्ध में सोवियत संघ की हार के बाद से लगातार अमरीका इस क्षेत्र में सक्रिय है और नए सैन्य बेस बनाने की कोशिश में है.

इसके साथ ही अमरीका ने चीन के उभार को रोकने की भी लगातार कोशिशें की हैं. 2011 में उसने ‘पिवोट एशिया’ लॉन्च किया. इसके तहत ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत को अपने साथ जोड़ा. ताकि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में वह अपनी सैन्य ताकत बढ़ा सके. अमरीका रक्षा पर जितना पैसा खर्च कर रहा है, उसका मुकाबला चीन नहीं कर सकता. चीन से पांच गुना पैसा इस मद में अमरीका खर्च करता है.

इसके साथ ही अमरीका के पास कई साझेदार भी हैं. इनमें ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के अलावा दक्षिण कोरिया और ताईवान शामिल हैं. साथ ही उसके पास सैन्य ठिकानों का एक वैश्विक नेटवर्क है. चीन के साथ यह स्थिति नहीं है. इसलिए चीन बीआरआई के तौर पर एक ऐसी परियोजना लेकर आया है
जिससे वह पूरे यूरेशिया में आर्थिक सहयोग बढ़े. जबकि अमरीका ने इस क्षेत्र को हमेशा बांटे रहने और खुद पर निर्भर बनाए रखने की रणनीति अपनाई है. बीआरआई की वजह से न सिर्फ इस क्षेत्र में मांग बढ़ेगी बल्कि चीन के उद्योग में जो जरूरत से अधिक क्षमता विस्तार किया है, उसे भी बाजार मिलेगा. खास तौर पर स्टील उद्योग को.

अमरीका द्वारा चीन को रोकने की कोशिशों के बीच चीन ने गजब का नेतृत्व दिखाया है! बीआरआई एक मास्टर स्ट्रोक है. इससे यह भी पता चलता है कि अर्थव्यवस्था को लेकर एडम स्मिथ और मेनार्ड कीन्स ने जो विचार व्यक्त किए थे, उन्हें बीजिंग ने जीवित रखा है.

1966 से प्रकाशित इकॉनोमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली के नये अंक के संपादकीय का अनुवाद

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