रायपुर

कृत्रिम मटेरियल की मूर्तियों पर बैन

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में कृत्रिम मटेरियल से बने मूर्तियों का उपयोग न करने के लिये परिपत्र जारी किया गया है. यह राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा जारी आदेश के अनुसार किया गया है. छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी जिला कलेक्टरों, नगर निगम आयुक्तों और मुख्य नगर पालिका अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं कि आगामी गणेश उत्सव और दुर्गा उत्सव में पूजा के लिए कृत्रिम मटेरियल अथवा प्लास्टर ऑफ पेरिस, पी.ओ.पी. से निर्मित मूर्तियों का उपयोग ना होने पाए. इस प्रकार की मूर्तियों का विसर्जन भी ना हो, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी इन अधिकारियों को दी गई है.

परिपत्र में अधिकारियों से कहा गया है कि वे जहां कहीं भी इस प्रकार की मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा हो, वहां इन्हें बनाने वालों को चेतावनी दें कि यदि वे इन मूर्तियों की बिक्री करते हैं तो उन्हें जब्त कर लिया जाएगा. सिंथेटिक रसायनिक रंगों का इस्तेमाल भी इन मूर्तियों में किया जाना प्रतिबंधित है.

परिपत्र में बताया गया है कि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नई दिल्ली ने देश के सभी राज्यों को गणेश उत्सव, दुर्गोत्सव और मोहर्रम पर्व में मूर्तियों और ताजियों आदि के निर्माण तथा विसर्जन के संबंध में गाईड लाईन जारी की है. इन मूर्तियों को प्लास्टर ऑफ पेरिस अथवा अन्य अघुलनशील पदार्थों जैसे प्लास्टिक, बेक-क्ले आदि से बनाकर सिंथेटिक रंगों से सजाया जाता है और पर्व समाप्त होने पर इनका विसर्जन झीलों, नदियों, तालाबों या अन्य जल स्त्रोतों में किया जाता है.

इसके फलस्वरूप जल प्रदूषण के साथ-साथ पानी में रहने वाले जीव-जन्तुओं का जीवन भी प्रभावित होता है. नगरीय प्रशासन और विकास विभाग ने जिला कलेक्टरों और नगरीय निकायों के आयुक्तों तथा मुख्य नगर पालिका अधिकारियों को इन परिपत्रों में कहा है कि मूर्तियों का विसर्जन स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा निर्धारित स्थानों पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाईड लाईन का पालन करते हुए होना चाहिए, जैसा कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा पूर्व में जारी आदेश में उल्लेख किया गया है.

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की भोपाल स्थित केन्द्रीय ब्रेंच ने भी 18 अगस्त 2015 को एक याचिका पर इस संबंध में आदेश पारित किया है. आदेश में कहा गया है कि प्लास्टर ऑफ पेरिस, प्लास्टिक और हानिकारक रंगों से मूर्तियों के निर्माण, विक्रय और विसर्जन के बारे में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाईड लाईन का पालन किया जाना चाहिए. गाईड लाईन में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भारत में मूर्ति विसर्जन की प्राचीन काल से चली आ रही परम्परा का उल्लेख करते हुए कहा है कि पहले देवी-देवताओं की पूजा के लिए सिर्फ प्राकृतिक वस्तुओं जैसे दूध, दही, घी, नारियल, पान के पत्ते और नदियों के पानी का उपयोग किया जाता था. चिकनी मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती थी और उन्हें प्राकृतिक रंगों जैसे हल्दी से रंगा जाता था. धार्मिक ग्रंथों और कर्मकाण्डों में प्रकृति के संरक्षण का महत्व समझाने का भी प्रयास किया गया है. इसलिए वह सदियों से पूजनीय रहा है.

आज कल मूर्तियों पर पालिस करने और उनकी सजावट में धातुओं, आभूषणों, तैलीय पदार्थों, सिंथेटिक रंगों तथा रसायनों का उपयोग किया जाता है. जब इन मूर्तियों को विसर्जित किया जाता है, तब हमारा जलीय क्षेत्र और आसपास का पर्यावरण गंभीर रूप से प्रभावित होता है. इसलिए मूर्ति विसर्जन के संबंध में जल्द से जल्द दिशा-निर्देश जारी करने की आवश्यकता है. मूर्ति विसर्जन के संबंध में सामान्य दिशा-निर्देशों में पवित्र ग्रंथों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि मूर्तियां प्राकृतिक सामग्री से निर्मित होनी चाहिए. मूर्ति निर्माण में परम्परागत मिट्टी को बढ़ावा देना चाहिए, न कि बेक्ड मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस को.

यदि मूर्तियों को रंगा जाना हो तो रंगने के लिए पानी में घुलनशील प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जो विषैले न हो. मूर्तियों को रंगने के लिए विषाक्त रसायनिक रंगों का उपयोग प्रतिबंधित किया जाना चाहिए. पूजन सामग्री जैसे फूल, वस्त्र, कागज और प्लास्टिक से निर्मित सजावट की सामग्री आदि को विसर्जन के पहले हटा देना चाहिए. जैव -निम्नीकरण योग्य सामग्री को रिसाईकिलिंग या कम्पोस्टिंग के लिए अलग से एकत्रित करना चाहिए. कपड़ों को स्थानीय अनाथालयों में भी भेजा जा सकता है.

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