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कोरबा जैसे शहरों में कोरोना का खतरा अधिक?

रायपुर | संवाददाता : कोयला से चलने वाले थर्मल पावर प्लांट के आसपास रहने वालों में कोरोना का ख़तरा कहीं हो सकता है. छत्तीसगढ़ सरकार के राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि थर्मल प्लांट के आस-पास रहने वाली आबादी को, कणों के संपर्क में आने के कारण श्वसन संबंधी बीमारियां अधिक होती हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र ने पिछले सप्ताह राज्य सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कोयले से चलने वाले थर्मल संयंत्रों के आसपास रहने वाले कोरबा के रहवासियों पर स्वास्थ्य प्रभाव का आकलन किया गया था.

क्रॉनिक डिज़ीज़ कंट्रोल सेंटर, नई दिल्ली द्वारा वित्त पोषित और पीजीआई चंडीगढ़ के सहयोग से किए गए, तीन साल के अध्ययन का उद्देश्य थर्मल पावर प्लांटों के पर्यावरणीय प्रभावों और स्थानीय समुदायों पर इसके स्वास्थ्य पर असर को देखना था.

राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र के कार्यकारी निदेशक डॉ प्रबीर चटर्जी के अनुसार-” जब हमने अध्ययन शुरू किया तो कोई कोरोनावायरस नहीं था. हम कोयले से चलने वाले तापीय संयंत्रों के स्वास्थ्य प्रभावों को देख रहे थे. हमने पाया कि कोरबा के आसपास के गांवों में रहने वाले समुदायों में श्वसन संबंधी बीमारियाँ लगभग 15 फीसदी अधिक थीं.”

छत्तीसगढ़ का पावर हब कहे जाने वाले कोरबा में 6000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने वाले 10 से अधिक कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट हैं. यहां दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी खुली कास्ट कोल माइंस, गेवरा और अन्य प्रमुख ओपन कास्ट कोल माइंस जैसे कुसमुंडा माइंस और दीपका जैसे कोयला खदान भी हैं. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 200 किमी दूर स्थित कोरबा को 2009 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किए गए एक अध्ययन में 88 औद्योगिक समूहों के बीच गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र श्रेणी में पांचवें स्थान पर माना गया है.

ताज़ा अध्ययन के निष्कर्षों में अस्थमा जैसी सांस की बीमारियों का व्यापक रूप से विस्तार देखा गया है. आबादी का 11.79 प्रतिशत हिस्सा इससे ग्रस्त है और इसी तरह 2.96 प्रतिशत आबादी ब्रोंकाइटिस से पीड़ित थी.

अध्ययन में पाया गया है कि नौ में से पांच स्थानों पर, पीएम 2.5 का स्तर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित की गई सांविधिक सीमाओं से लगभग 5 गुना अधिक था. अध्ययन में आगे कहा गया है कि धूल में भारी धातुओं की उपस्थिति पाई गई है. मैंगनीज का स्तर स्वीकार्य सीमा से छह गुना अधिक है और सीसा और आर्सेनिक के लक्षण भी पाए गए हैं.

पानी के नमूनों के परीक्षण में पाया गया है कि एल्युमीनियम सांद्रता अनुमेय सीमा से अधिक है, इसी तरह सतह के जल में भी मैंगनीज की मात्रा स्वीकार्य सीमा से अधिक है. भारी धातु सांद्रता मिट्टी के नमूनों में समान रूप से पाए गए हैं.

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