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बैटरियों के कचरे से साफ हो सकेगा प्रदूषित जल

वास्को-द-गामा | इंडिया साइंस वायर: खराब हो चुकी बैटरियों का कचरा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है. भारतीय वैज्ञानिकों ने बेकार बैटरियों में मौजूद पदार्थों के उपयोग से एक नया उत्पाद विकसित किया है, जो बैटरियों के कचरे के निपटारे के साथ-साथ प्रदूषित जल के शोधन में भी मददगार हो सकता है.

खराब बैटरियों से निकाले गए मैग्नीज-ऑक्साइड, एक्टिवेटेड कार्बन और कैल्शियम एल्जिनेट को मिलाकर कैब-मोएक के दाने बनाए गए हैं. पशुपालन उद्योग से निकलने वाले प्रदूषित जल में मौजूद टायलोसिन और पी-क्रेसॉल के अवशेष पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. जल में मौजूद इन अवशेषों के शोधन में कैब-मोएक के दानों को विशेष रूप से उपयोगी पाया गया है. इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में भारत के अलावा अमेरिका और दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिक शामिल थे.

मुर्गी पालन और सुअर पालन उद्योग में ग्रोथ-एजेंट के रूप में टायलोसिन का मेक्रोलाइड एंटीबायोटिक के रूप में उपयोग विशेष रूप से बढ़ा है. इसे बनाने वाले कारखानों से निकले अपशिष्टों को जलस्रोतों में बहाने के कारण उनमें टायलोसीन पाया जाता है. इसी तरह जानवरों के मल और धुलाई से निकले दूषित पानी में भी कैंसर के लिए जिम्मेदार पी-क्रसॉल नामक पदार्थ मौजूद होता है.

लगभग 0.4 मिलीमीटर आकार, बड़े सतह क्षेत्रफल और अत्यधिक रंध्रीय प्रकृति वाले कैब-मोएक दानों की टायलोसिन और पी-क्रेसॉल को हटाने की दक्षता 99.99 प्रतिशत तक पायी गई है. कैब-मोएक दानों के उपयोग से दस घंटे में जल में मौजूद इन प्रदूषकों को पूरी तरह हटाया जा सकता है. वैज्ञानिकों ने इन दानों के भौतिक और रासायनिक गुणों का परीक्षण करने पर पाया है कि पांच बार उपयोग करने के बावजूद प्रदूषक हटाने की इनकी क्षमता कम नहीं होती.

अपशिष्ट जल की उपचार प्रक्रिया के दौरान उसमें उपस्थित जैविक या विषाक्त पदार्थों को हटाने के लिए दानेदार एक्टिवेटेड कार्बन का उपयोग किया जाता है. एक्टिवेटेड कार्बन में अन्य अवशोषक पदार्थों को मिलाकर इसकी सोखने की क्षमता में सुधार हो सकता है.

इस शोध में मैग्नीज-ऑक्साइड और एल्जिनेट से तैयार किए गए कैब-मोएक दाने एक्टिवेटेड कार्बन की तुलना में अधिक प्रभावी पाए गए हैं. एल्जीनेट या एल्जिनिक अम्ल सरगासम और एस्कोफिलम नामक भूरे समुद्री शैवालों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जिनका उपयोग भारी धातुओं को हटाने के लिए सक्रिय पदार्थ के रूप में होता है. एल्जिनेट का निष्कर्षण भी अपेक्षाकृत आसान होता है.

प्रमुख शोधकर्ता आईआईटी, गांधीनगर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर मनीष कुमार ने बताया कि “बैटरी के हानिकारक अपशिष्टों को उपयोगी पदार्थ में बदलकर उसे जल शोधक के रूप में करने से पर्यावरण को दोहरा फायदा हो सकता है. इस तरह पुनर्चक्रित उत्पादों के उपयोग से ऊर्जा खपत कम करने के साथ-साथ पर्यावरणीय प्रदूषण कम करने में मदद मिल सकती है. अपशिष्ट जल के उपचार में उपयोगी पाए गए कैब-मोएक दाने इसी पहल के अंतर्गत विकसित किए गए हैं.”

बेकार हो चुकी बैटरियों के हानिकारक अपशिष्टों से लाभकारी उत्पाद बनाने की यह पहल स्वास्थ्य, स्वच्छता और पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से उपपयोगी हो सकती है.

शोधकर्ताओं की टीम में मनीष कुमार के साथ आईआईटी, गांधीनगर की ऋतुस्मिता गोस्वामी, आईआईटी, गुवाहाटी की पायल मजूमदार, दक्षिण कोरिया की चोनबुक नेशनल यूनिवर्सिटी के जेहांग शिम और बिअंग-टीक ओह तथा अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का-लिंकन के पेट्रिका जे. शिआ शामिल थे. यह शोध जर्नल ऑफ हैजर्डस मैटीरियल में प्रकाशित किया गया है.

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