चुनाव विशेषछत्तीसगढ़

घोषणा पत्र में कांग्रेस

दलितों को जाति प्रमाण पत्र देने की नीति में नहीं नौकरशाही की प्रक्रिया को दुरुस्त कर देने से काम चलेगा. आदिवासियों तथा अन्य किसानों की भूमियों को ज़बरिया उद्योगों के लिए अधिग्रहण करने को लेकर राज्यपाल से संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आवश्यक कदम उठाने का उल्लेख भी तो हो सकता था. केन्द्र ने ही पेसा अधिनियम आदिवासी पंचायतों के लिए बनाया है. उसे लागू करने को लेकर केन्द्र शासन और कांग्रेस पार्टी ने राज्य की भाजपा सरकार पर यदि कोई दबाव डाला हो तो उसका उल्लेख हो सकता था.

निर्दोष आदिवासियों की हत्याओं सम्बन्धी जनहित याचिकाओं के समर्थन का उल्लेख वोट मांगने के लिए अच्छा होता. नक्सलवाद पर चर्चा होने पर दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां ‘सलवा जुडूम‘ नामक शब्द का उच्चारण करने को बर्र का छत्ता समझती हैं. ‘सलवा जुडूम‘ दोनों पार्टियों की मिली जुली कुश्ती का पसीना है. इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का उल्लेख हो सकता था.

आदिवासी इलाकों में औद्योगीकरण की तेज़ गति से हो रही प्रक्रिया को धीमा करने का सोच देश की सबसे पुरानी पार्टी से राष्ट्रीय विमर्श की उम्मीद करता है. बेहतर हो दोनों पार्टियां कहें कि वे टाटा, एस्सार, वेदांता वगैरह से छत्तीसगढ़ के लिए चंदा नहीं लेंगी. आदिवासी तथा अन्य क्षेत्रों में प्राकृतिक जल स्त्रोतों एवं भू जल के सामाजिक उपयोग को लेकर प्रदेश की जल नीति की घोषणा का उल्लेख दुर्भाग्यवश नहीं हुआ है.

आदिवासी, दलित तथा पिछड़े वर्गों के जनप्रतिनिधियों को योग्यता के आधार तथा आबादी के अनुपात में सभी तरह के मानद और लाभप्रद सार्वजनिक पद जैसे निगम, मण्डल, आयोग आदि के अध्यक्ष, ट्रिब्यूनल आदि के पद, कुलपति वगैरह बनाए जाने को लेकर बड़ी पार्टियों का संयुक्त घोषणा पत्र क्यों नहीं होता है?

घोषणा पत्र कांग्रेस सरकार का नहीं, राजनीतिक पार्टी का है. इसलिए महिलाओं को दी जा सकने वाली सरकारी सुविधाओं के अतिरिक्त यह घोषणा भी तो हो सकती थी कि जीत मिलने पर कांग्रेस प्रदेश को पहली महिला मुख्यमंत्री भी दे सकेगी. यह भी कि चुनावों के ज़रिए भरे जा सकने वाले सभी पदों में कम से कम एक तिहाई स्थान महिलाओं को अवश्य दिये जाएंगे.

छत्तीसगढ़ की रत्नगर्भा धरती से लोहा, कोयला, वनोत्पाद आदि बड़े उद्योगपतियों द्वारा पूंजीवादी नीतियों के चलते हड़पे जा रहे हैं. इसे लेकर दोनों पार्टियों पर नूराकुश्ती के आरोप हैं. रोजगार का उल्लेख करते समय बौने सपने ही दर्ज़ हैं. इस अबूझ वाक्य का क्या अर्थ है ‘‘औद्योगिक इकाइयों में स्थानीय को रोज़गार उपलब्ध कराने हेतु बनाई गई नीति के संबंध में कानून बनाया जाएगा.‘‘

यह खुलासा क्यों नहीं हो सकता कि उत्खनन, परिवहन और वितरण आदि के सरकारी ठेकों की नीतियां संशोधित कर छत्तीसगढ़ के निवासियों की सहकारी समितियों को कई मझोले दर्ज़े के कार्यों का ठेका पाने का एकाधिकार दिया जाएगा. यह कार्य तो राज्य के कुटीर उद्योग, हस्तशिल्प कलाकार और स्थानीय निवासी कर ही सकते हैं.

उनका शोषण बाहरी आदमियों द्वारा किया तो जा रहा है. सरल, प्रत्यक्ष और सीधी स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के नाम पर तरह तरह के नए कॉलेज खोलने के वायदों से निजी क्षेत्र को तो लाभ होगा. लेकिन सरकारें संविधान के शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, पेयजल वगैरह वायदों से मुकरती हुई निजी क्षेत्र के भरोसे पर कब तक केवल घोषणा पत्र ही जारी करती रहेंगी?

‘छत्तीसगढ़ी संस्कृति‘ के परिच्छेद में फिल्म विकास, फिल्म सिटी, भूखंड आवंटन, मानव तस्करी, जीरम घाटी पुरस्कार योजना और विधान परिषद के गठन का असंगत उल्लेख है. इसी तरह प्राथमिक शिक्षा में छत्तीसगढ़ी एवं अन्य स्थानीय भाषा का अनिवार्य अध्यापन प्रस्तावित है. ‘भाषा‘ शब्द का क्या अर्थ है-यह तो स्पष्ट नहीं हो सका है. छत्तीसगढ़ की लोकबोलियों को लिखित साहित्य, व्याकरण तथा पुस्तकों के अभाव में शिक्षा के अधिकार की संवैधानिकता को ध्यान में रखकर कैसे पढ़ाया जा सकेगा.

ये कथित ‘भाषाएं‘ तो छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के दायरे से ही बाहर हैं. छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को विश्व स्तर पर प्रसिद्ध करने का काम हबीब तनवीर ने किया था. उनकी स्मृति का तो उल्लेख तक नहीं है. छत्तीसगढ़ी संस्कृति के उन्नयन में स्वामी आत्मानन्द का अतुलनीय योगदान रहा है. उनकी स्मृति में कुछ किए जाने का वायदा हो सकता था. पत्रकारों के हितों की रक्षा का बहुत संक्षिप्त उल्लेख है. उन्हें वे ही सुविधाएं प्रतिबद्धित हैं जो वर्षों से लॉलीपॉप की तरह दी जाती रही हैं.

छत्तीसगढ़ में इतने ज़िले बन गए हैं कि थोड़े और बन जाएं तो प्रदेश का नाम ‘छत्तीसगढ़‘ से बदलकर ‘छत्तीस जिला‘ करना होगा. फिर भी नए जिले बनाने का मनोहारी वायदा है. छत्तीसगढ़ की प्रथम कांग्रेसी सरकार ने ही देश का सबसे लचर लोकायुक्त कानून बनाया था. उसे अपनी सुविधा के लिए भाजपा सरकार ने कायम रखा. अब ऐसे जर्जर लोकायोग को अधिक शक्तिसंपन्न बनाने का निरीह वायदा घोषणा पत्र में कर दिया गया है.

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