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समाजवादी पार्टी में Game of Yadavs

नई दिल्ली | संवाददाता: मुलायम का समाजवादी परिवार कठोर समस्या में फंस गया है. ऐन विधानसभा चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में तनाव टूटने के कगार पर पहुंच गई है. पिता-पुत्र-चाचा के बीच की लड़ाई से समाजवादी पार्टी कमजोर होगी इसमें कोई दो मत नहीं है. अब तो यहां तक कयास लगाये जा रहें हैं कि अखिलेश यादव अलग पार्टी बना लेगें या मुलायम सिंह कठोरता दिखाते हुये स्वंय मुख्यमंत्री बन सकते हैं. जाहिर है कि आग को दबा देने के बाद भी चिंगारी सुलगती ही रहेगी जिसका फायदा भाजपा, बहुजन समाज पार्टी तथा कांग्रेस को होने जा रहा है.

उधर, मामला इतना बढ़ गया है कि सोशल मीडिया में इसे #GameofThrones की तर्ज पर #GameofYadavs के नाम से मजाक बनाया जा रहा है. इसी से इस बात का संकेत मिल रहा है आने वाले समय में इससे समाजवादी पार्टी को नुकसान ही होने जा रहा है फायदा नहीं.

 

कुल मिलाकर बात ‘दिले के फफोले जल उठे सीने के दाग से, इस घर को लगी आग, घर के चिराग से’ जैसी हो रही है. इस घमासान के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव और उनके समर्थकों को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया है. जवाबी कार्यवाही करते हुये मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के महासचिव डॉ. रामगोपाल यादव को छः साल के लिये पार्टी से बाहर निकाल दिया है.

समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष चाचा शिवपाल यादव ने संवाददाताओं से कहा, “रामगोपाल यादव को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित किया जा रहा है. उन्हें पार्टी महासचिव और पार्टी प्रवक्ता के पद से भी हटा दिया गया है. वो भाजपा से मिले हुये हैं.”

चाचा शिवपाल यादव ने डॉ. रामगोपाल यादव पर आरोप लगाया, “प्रोफेसर राम गोपाल यादव तिकड़म करते रहे हैं. उनकी साजिश को मुख्यमंत्री समझ नहीं पाए, जबकि उन्हें समझना चाहिए कि कौन सगा और शुभेक्षु है.”

जानकारों का मानना है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पार्टी में अमर सिंह को शामिल किये जाने से खफ़ा हैं. इस बीच आज़म खान चुप्पी साधे हुये हैं. बात-बात पर मीडिया में बयान देने वाले आज़म खान की चुप्पी के मायने क्या है इस पर भी सवाल किये जा रहे हैं.

खबर है कि मुलायम सिंह यादव ने सोमवार को पार्टी के सांसदों, विधायकों, विधान परिषद सदस्य तथा वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई है. जिसमें मौजूदा हालात पर चर्चा की जायेगी.

खबर यह भी है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस बैठक में हिस्सा लेने वाले नहीं हैं. इससे पार्टी में टूट की आशंका बलवती होती जा रही है.

इस बीच सोशल मीडिया में समाजवादी पार्टी के हालात पर तंज कसे जा रहें हैं.

शरण महायोगी ने लिखा, “समाजवादी पार्टी की राजनीति भी बिग बॉस के घर जैसी हो गई है, एक ही छत के नीचे रह रहे लोग एक-दूसरे की पीठ में छुरा घोंपने में लगे हैं.”

संतोष कुमार मिश्र ने लिखा, “समाजवादी पार्टी भले ही अभी न बिखरे लेकिन उसकी जड़ें खुद गई हैं, कभी भी धाराशायी हो सकती है.”

जानकारों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में 18 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. यह वोट बैंक उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी को सत्तारूढ़ होने में मदद कर सकता है. समाजावदी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी इनका हमदर्द होने का दावा करती रही है. समाजवादी पार्टी की टूट या कमजोर होने से यह वोट बैंक मायावती की पार्टी की ओर झुक सकता है.

भाजपा भी यादव वोटरों पर डोरे डालने की फिराक में है. भाजपा ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिये किसी को प्रोजेक्ट नहीं किया है. उधर, कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस माहौल में कांग्रेस के लिये राह निकालने की फिराक में हैं.

कुल मिलाकर समाजवादी पार्टी का अंदुरुनी कलह उन्हें सत्ता से बाहर हो जाने के संभावना को ही बल प्रदान करता है.

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