देश विदेश

खत्म किये जा रहें हैं रासायनिक हथियार

दमिश्क | एजेंसी: सीरिया में संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में रासायनिक हथियार नष्ट करने कार्य प्रारंभ हो गया है. इससे सीरिया संकट से दुनिया पर मंडराने वाला खतरा टल गया है.

लेकिन, सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद ने कहा है कि वह सीरिया पर दूसरे जेनेवा सम्मेलन के लिए तैयार हैं लेकिन वह विद्रोहियों से बातचीत नहीं करेंगे. असद ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि विदेश समर्थित आतंकवाद पर जीत सीरिया की सबसे बड़ी जीत हो सकती है.

सीरिया संयुक्त राष्ट्र के कहने पर रासायनिक हथियार खत्म करने को तो तैयार हो गया है लेकिन विद्रोहियों के प्रति उनका रुख अभी भी सख्त है. असद ने कहा है कि, “हमारी इसके अलावा कोई शर्त नहीं है कि हम विद्रोहियों से बातचीत को खारिज करते हैं, जब तक कि वे हथियार नहीं डालते और विदेशी हस्तक्षेप की मांग नहीं छोड़ देते.”

यह पूछे जाने पर कि क्या मध्य नवंबर में अंतर्राष्ट्रीय तौर पर समर्थित सम्मेलन में हिस्सेदारी से पहले उनकी कोई पूर्व शर्त है, असद ने कहा, “सबसे प्रमुख शर्त है कि समाधान सीरिया की स्थिति के अनुसार होना चाहिए और संवाद राजनीतिक होना चाहिए. लेकिन अगर बात हथियारों से होगी तो हम जेनेवा क्यों जाएंगे.”

रासायनिक हथियार

रसायन से बनने बनने वाले हथियारों को रासायनिक हथियार कहा जाता है. ये रासायन तरल या गैस रूप में हो सकते हैं. जिन्हें परंपरागत हथियारों द्वारा दुश्मन के इलाकों में फैला दिया जाता है. संयुक्त राष्ट्र के नियमों के अनुसार रासायनिक हथियारों का उपयोग प्रतिबंधित है. अमरीका ने सीरिया पर आरोप लगाया था कि उसने विद्रोहिंयों पर इन रासायनिक हथियारों का उपयोग किया था.

रासायनिक हथियारों के उदाहरण

मस्टर्ड गैस
प्रथम विश्व युद्ध में मस्टर्ड गैस का पहली बार इस्तेमाल हुआ था. जर्मन केमिस्ट विलहेम लोमेल और विलहेम स्टाइंकोपिन ने 1916 में हथियार के रूप में इसके इस्तेमाल की सलाह दी थी. मस्टर्ड गैस कपड़ों को छेद कर त्वचा में समा जाती है. इसके संपर्क में आने के 24 घंटे बाद ही असर दिखना शुरू होता है. गैस के असर से पहले त्वचा लाल हो जाती है. फिर फफोले निकलते हैं. इसके बाद वहां की त्वचा छिलके की तरह उतर जाती है. नाक के रास्ते से अंदर गई गैस जानलेवा हो सकती है क्योंकि यह फेफड़ों के उत्तकों को नुकसान पहुंचाती है.

ताबुन
1936 में ताबुन की खोज की गयी थी. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बमों में रासायनिक हथियार भर दिए जाते थे. हालांकि इन बमों का इस्तेमाल कभी नहीं हुआ. तरल रूप में ताबुन फल जैसी खुशबू देता है, कुछ कुछ कड़वे बादाम की तरह. गैस त्वचा के संपर्क में आने पर या फिर सूंघने पर नाक के जरिए शरीर में चली जाती है. इसका असर और लक्षण सारिन जैसा ही है.

सारिन
गेरहार्ड श्रेडर समेत कुछ जर्मन वैज्ञानिकों ने 1938 में सारिन तैयार किया था. इसे हानिकारक कीटों को मारने के लिए कीटनाशक के रूप में तैयार किया गया था. आज सारिन को सबसे खतरनाक तंत्रिका जहर माना जाता है. तरल रूप में यह गंधहीन और रंगहीन होता है. वाष्पशील होने के कारण यह आसानी से गैस में बदल जाता है. यह बेहद अस्थिर होता है इस वजह से यह जल्दी ही नुकसानरहित यौगिकों में बदल जाता है. सारिन की एक छोटी सी मात्रा भी घातक हो सकती है. गैस मास्क और पूरे शरीर को ढंकने वाली पोशाक इससे बचा सकती है. यह आंखों और त्वचा के रास्ते भी शरीर में प्रवेश कर सकता है. यह तंत्रिकाओं के आवेग लगातार भेजता रहता है जिसके कारण नाक और आंख से पानी गिरने लगता है, मांसपेशियों में ऐंठन आ जाती है और इन सबके बाद आखिर में मौत हो जाती है.

error: Content is protected !!