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सीडी से सत्ता की सीढ़ी?

अरुणकांत शुक्ला

छत्तीसगढ़ के अन्दर राजनीतिक रूप से कांग्रेस और भाजपा के अलावा कोई भी अन्य राजनीतिक दल प्रभावशाली नहीं है. जैसे जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है, दोनों के बीच सियासी घमासान भी तेज होता जा रहा है. छत्तीसगढ़ का आम आदमी यह देखकर हैरान और अचंभित है कि सत्ता प्राप्ति के लिए चल रहे इस सियासी घमासान में न तो उसका और न ही उसके मुद्दों का कोई जिक्र है. कांग्रेस, जिसे हाल ही में नक्सली हमले में अपने प्रदेश अध्यक्ष सहित अनेक बड़े नेताओं को खोना पड़ा है, अब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनके चार मंत्रियों के खिलाफ प्रियदर्शनी बैंक के मेनेजर उमेश सिन्हा की उस नार्को टेस्ट की सीडी के साथ सामने आयी है, जिसे कोर्ट से आदेश लेकर पुलिस ने कराया तो था लेकिन कोर्ट के सामने सबूत के रूप में पेश नहीं किया. जबकि उमेश सिन्हा ने उस नार्को टेस्ट में सीधे-सीधे मुख्य मंत्री सहित उपरोक्त चारो मंत्रियों का नाम लिया था कि उन्हें मामले को दबाने के लिए 7 करोड़ रुपये दिए गए.

केवल महिलाओं के लिए खोले गए इस बैंक में पूरा घोटाला 2003 से लेकर 2007 के मध्य हुआ. बैंक के सभी डायरेक्टर इस घोटाले में शामिल थे और अधिकाँश महिला डायरेक्टर किसी न किसी रूप में कांग्रेस नेताओं के परिवारों से जुडी हुई थीं. उमेश सिन्हा उस बैंक का मेनेजर था. इस सीडी के सामने आने के पहले तक आम लोगों का यह मानना था कि घोटाला बैंक के अधिकारियों, डायरेक्टरों की मिलीभगत से हुआ. भाजपा का कहना है कि नार्को टेस्ट रमन सरकार की अनुमति से हुआ और क्योंकि पुलिस को उसमें कोई ठोस सबूत नहीं मिला, इसीलिये उस टेस्ट को पुलिस ने सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश नहीं किया.

पूरा मामला लगभग 54 करोड़ रुपये के गबन का है और कोर्ट के अधीन है. इसमें ख़ास बात जो ध्यान देने योग्य है, वो यह है कि बैंक के पास जब खातेदारों को देने के लिए पर्याप्त जमा नहीं रहा और रिजर्व बैंक ने जब बैंक को बंद करने के लिए कहा तब भी बैंक का कुल देना लगभग 15 करोड़ था और बैंक की 15 बड़े डिफाल्टरों से लेनदारी या वसूली 20 करोड़ के आसपास थी.

यह बात घोटाले की जांच करने के लिए नियुक्त किये गए भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व अधिकारी रमेश गुप्ता ने न केवल राज्य शासन के ध्यान में लाई थी बल्कि राज्य शासन को सलाह भी दी थी कि उनसे उनकी संपत्ति राजसात करके वसूली की जाए. इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक से केवल महिलाओं को ही लोन मिलना था, लेकिन जिन 15 डिफाल्टरों को लोन दिए गए, वे सभी की सभी पहुँच वाले लोगों की फर्में हैं.

यही वह बिंदु है जहां आकर राज्य शासन की मंशाओं पर सवालिया निशान खड़ा होता है? कांग्रेस की पूरी उठापटक के बाद भी यह तय है कि इस मामले में जो भी होना है , वो कोर्ट में ही होगा, पर यह निश्चित है कि चुनाव के येन पहले भाजपा की रमन सरकार एक ऐसे व्यूह में फंस गयी है, जिस से निकलने में उसे पसीना छूट रहा है.

15 से 19 जुलाई के बीच बुलाया गया विधान सभा का सत्र वर्तमान विधानसभा का अंतिम सत्र था. पहले दोनों दिन कांग्रेस ने इस सत्र को अपने नेताओं की ह्त्या के विरोध में चलने नहीं दिया. रमन सरकार ने तीसरे दिन आधे घंटे में एक दर्जन से अधिक वो सारे प्रस्ताव पास करा लिये जो उसे चुनावी फ़ायदा पहुंचा सकते थे, पूरक बजट सहित. उसके बाद सत्र समाप्त कर दिया गया याने जनता के किसी भी मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई. यह महज इत्तेफाक नहीं है कि जब कांग्रेस और भाजपा के बीच सर फुटव्वल चल रही है, योजना आयोग के गरीबी के आंकड़ों में पूरे देश में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक गरीबों का होना बताया गया है.

जहां तक छत्तीसगढ़ियों का सवाल है, उन्हें योजना आयोग के आंकड़ों से कोई नयी बात नहीं मिली है. स्वयं प्रदेश के गृहमंत्री ननकी राम कंवर कुछ समय पूर्व कह चुके हैं कि राज्य में 44% से अधिक परिवार गरीबी की रेखा से नीचे जी रहे है. पर, न तो भाजपा ने इस पर कोई टिप्पणी की और न ही कांग्रेस ने इस पर कोई सुध ली है.

रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य, तीनों का गरीबी और गरीबों से सीधा वास्ता है. और, ये तीनों ही राज्य सरकार की प्राथमिकताओं पर हाशिये पर हैं. 18 जुलाई को स्वयं मुख्यमंत्री ने कैग की वो रिपोर्ट विधान सभा में पेश की, जिसमें बताया गया था कि प्रदेश में केवल 9% परिवारों को ही 100 दिनों का रोजगार प्राप्त हुआ. जबकि स्वयं मुख्यमंत्री ने बजट सत्र के दौरान घोषणा की थी कि मनरेगा के तहत प्रदेश में 150 दिनों तक रोजगार दिया जाएगा. ऐसा नहीं है कि घोषणा करते समय मुख्यमंत्री को वस्तुस्थिति की जानकारी नहीं रही होगी. मगर, जब उद्देश्य ही मात्र घोषणाएं करने का हो तो वस्तुस्थिति की जानकारी का कोई मतलब नहीं रहता है.

स्वास्थ्य के क्षेत्र में वर्तमान मानसून सत्र में ही स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश के तीन मेडिकल कालेजों में शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक स्वीकृत 1147 पदों में से मात्र 430 ही भरे हुए हैं और उनमें भी मात्र 164 में ही नियमित नियुक्तियां हैं, बाकी में तदर्थ और संविदा नियुक्तियां हैं. शेष 717 पद खाली हैं. राज्य में लगभग 201 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की आवश्यकता के एवज में केवल 136 केंद्र ही हैं और उनमें से भी सौ से उपर का खुद का कोई भवन नहीं है. यही हाल प्राथमिक और उपस्वास्थ्य केन्द्रों का है. लगभग 29% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या तो भवन विहीन हैं या किराए के घरों में चलाये जाते हैं. 38% उपस्वास्थ्य केंद्र भवन विहीन हैं. जहां तक मानव संसाधन उपलब्ध कराने की बात है, जिसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है, राज्य के सरकारी अस्पतालों में ही डॉक्टरों के 12सौ से ज्यादा पद खाली पड़े हैं.

राज्य सरकार शिक्षा के प्रति कितनी जागरुक है, यह इसी से पता चल जाता है कि स्वयं शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने बजट सत्र के दौरान जानकारी दी थी कि प्रदेश के 27 जिलों में स्थित 50 हजार 193 स्कूलों में से 2898 स्कूलों में पेयजल और 11 हजार 660 में शौचालय की व्यवस्था नहीं थी. 16 हजार से ज्यादा स्कूलों में मध्यान्ह भोजन पकाने के लिए कोई शेड नहीं था. यदि हायर सेकेंडरी स्कूलों की बात करें तो 2025 स्कूलों में से 747 में लायब्रेरी तथा 685 में लैब नहीं थीं. हाल ही में यूनीसेफ़ के एक रिपोर्ट में बताया गया की प्रदेश के 26000 से ज्यादा स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है.

राज्य सरकार ने पिछले पांच सालों में ग्राम सुराज, नगर सुराज, के दौरान हजारों करोड़ों रुपये के विकास कार्यक्रमों की घोषणा की होगी. पर, इनमें से कितनी शुरू हुईं, कितनी पूरी हुईं, इसका कोई हिसाब किसी के पास नहीं है. अब जब चुनाव सर पर हैं, विकास यात्राओं का दौर और नई घोषणाओं का दौर चल रहा है. कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा कलश यात्रा के रूप में निकाली गई. कांग्रेस को लगता है कि उसे सुहानभूति का फ़ायदा मिलेगा. उसे लग रहा है कि सीडी उसके लिए सत्ता की सीढ़ी बनेगी. नार्को टेस्ट में इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक के मैनेजर सही बोला या झूठ, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा. आज का सच तो यह है कि प्रदेश के लोगों को न तो विकास यात्रा ने प्रभावित किया है और न ही परिवर्तन यात्रा. अपने मुद्दों से दूर इस सियासी लड़ाई को वो दूर खड़ा होकर देख रहा है और अपनी बारी आने का इंतज़ार कर रहा है, जो मात्र तीन माह दूर है.

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