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MSP से आधी क़ीमत पर धान बेचने को मज़बूर हैं किसान

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में समर्थन मूल्य पर धान ख़रीदी की तारीख़ बढ़ने से किसानों को औने-पौने दाम पर खुले बाज़ार में धान बेचने के लिये मज़बूर होना पड़ रहा है. हालत ये है कि सरकारी मंडियों में किसानों को 1150 रुपये और 1175 रुपये प्रति क्विंटल जैसे भाव में धान बेचना पड़ रहा है.

यह तब है, जब राज्य सरकार समर्थन मूल्य और बोनस मिला कर प्रति क्विंटल 2500 रुपये का भुगतान करती है.

पिछले दस दिनों की बात करें तो छत्तीसगढ़ के किसान, राज्य की अलग-अलग सरकारी मंडियों में औने-पौने दाम पर अब तक 5 लाख 82 हज़ार 585 क्विंटल धान बेच चुके हैं.

किसान समर्थन मूल्य और बोनस से लगभग आधी क़ीमत पर धान बेच रहे हैं. माना जा रहा है कि इसके अलावा बड़ी संख्या में कोचिये गांव से और भी कम क़ीमत पर धान ख़रीद रहे हैं और यह प्रक्रिया लगातार जारी है. इनमें ऐसे किसान भी शामिल हैं, जिन्होंने अपना पंजीयन नहीं कराया है या जिन्हें सरकारी खरीदी की सीमा से अधिक धान बेचना है.

अकेले धमतरी ज़िले की सरकारी मंडी में, पिछले 10 दिनों में ही किसान लगभग आधी क़ीमत पर 1 लाख 41 हज़ार 559 क्विंटल धान बेच चुके हैं. इसी तरह बलौदा बाज़ार ज़िले में पिछले 10 दिनों में सरकारी मंडी में 1 लाख 68 हज़ार 557 क्विंटल धान बेच चुके हैं. राजनांदगांव ज़िले में औने-पौने भाव पर सरकारी मंडी में किसान 44 हज़ार 522 क्विंटल धान बेच चुके हैं.

हालत ये है कि पिछले 10 दिनों में रायपुर की सरकारी मंडी में अब तक किसानों द्वारा 36 हज़ार 203 क्विंटल धान बेचा जा चुका है. बस्तर ज़िले के आदिवासी भी अब तक 27 हज़ार 300 क्विंटल धान बेच चुके हैं. कांकेर ज़िले में 29 हज़ार 162 क्विंटल धान मंडियों में बेचा जा चुका है.

आम तौर पर राज्य में धान ख़रीदी 1 नवंबर से शुरु हो जाती थी. यहां तक कि पिछले साल भी 15 नवंबर से समर्थन मूल्य पर धान की ख़रीदी शुरु हो गई थी. लेकिन इस साल बोरा यानी बारदाने की कमी का हवाला दे कर धान ख़रीदी की तारीख़ आगे बढ़ा दी गई. हालांकि विपक्षी दल का आरोप है कि राज्य सरकार धान की कम से कम ख़रीदी करना चाह रही है, इसलिये समर्थन मूल्य पर धान ख़रीदी की तारीख़ बढ़ा दी गई है.

राज्य में महामाया, एचएमटी, 1010, आरबी गोल्ड, बीपीटी, सरना, एमटीयू 1001 जैसी धान की किस्मों की कटाई और मिंजाई हो चुकी है. किसानों के सामने धान के भंडारण की समस्या तो है ही, इसके अलावा धान कटाई की मज़दूरी भी उन्हें देने के लिये मज़बूरी में धान बेचना पड़ रहा है. दीवाली के कारण कर्ज का भुगतान भी जल्दी करने की चिंता सता रही है.

यही कारण है कि राज्य की अलग-अलग मंडियों में किसान धान ले कर पहुंच रहे हैं और अत्यंत कम क़ीमत पर धान बेच रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में छोटे किसान तो कोचियों को ही अपना धान औने-पौने भाव में बेचने के लिये बाध्य हो रहे हैं.

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स्रोतः छत्तीसगढ़ शासन

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