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देव आनंद होने का मतलब

दिनेश श्रीनेत | फेसबुक

देव आनंद की फिल्मों और उनकी शख्सियत का मेरे दिलो-दिमाग पर बचपन से असर रहा है. कुछ तो इसलिए कि मेरे बड़े भाई अपनी युवावस्था में उनके जबरदस्त प्रसंशक थे. कुछ इसलिए कि बचपन से लेकर बाद के दिनों तक उनके इंटरव्यू में जीवन के प्रति उनका नजरिया मुझे प्रभावित करता रहा.

बचपन के दिनों की बात है, रविवार पत्रिका अपने प्रयोगों के लिए चर्चित रहती थी, उसने एक पूरा अंक सिर्फ देव आनंद पर केंद्रित कर दिया था. पूरे अंक में सिर्फ उनका एक बहुत लंबा साक्षात्कार था, ढेर सारी तस्वीरों के साथ. कवर पर देव आनंद की तस्वीर बनी थी और लिखा था, “मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा”. यह सत्तर के दशक की बात है, उन दिनों के ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में भी देव आनंद के कई बहुत अच्छे साक्षात्कार छपे थे.

हालांकि बाद के वीडियो इंटरव्यू से पता लगता है कि देव साहब ने जब कभी पीछे मुड़कर देखा तो बखूबी देखा. वे पुराने दिनों का वर्णन ऐसे करते हैं, जैसे उनकी आंखों के आगे कोई फिल्म चल रही हो और वे बस उसे नैरेट कर रहे हों. बहरहाल, यह एक लाइन, मेरे मन में कहीं फंस गई. मैं मन से खुद को अतीतमोह से ग्रस्त पाता हूँ. तमाम छूटी बातों, यादों के लिए मेरे मन में जबरदस्त नॉस्टेल्जिया है. फिर भी जीवन को कभी पलटकर न देखने की बात करने वाली यह लाइन मुझे बहुत पसंद है, क्यों? मन में ये कौन सा विरोधाभास है?

देव साहब के लगातार एक्टिव रहने, कुछ नया नया सा सोचते रहने के पीछे कई बार लगता है कि वे किसी चीज से भाग तो नहीं रहे? मन बहुत अजीब है. जैसा दिखता है, उससे उलट भी होता है कई बार. अभी जब स्वास्थ्य बेहतर नहीं, मन लगाने के लिए मैंने देव आनंद के कई यूट्यूब पर उपलब्ध साक्षात्कार देखे, जिसमें सिमी ग्रेवाल के साथ उनका बहुत ही सुंदर संवाद भी शामिल है.

मेरे अभी के मन ने उनको सुनकर उनसे बहुत कुछ सीखा. मैंने पाया कि वे एक लिबरल इनसान थे. सामने वाले के क्रिएटिव स्पेस की और पढ़े-लिखे लोगों की इज्जत करते थे. तभी एक नोबल प्राइज विनर लेखिका के साथ फिल्म बनाने का सपना पूरा हो सका. लेकिन इन सबके साथ वे खुद से भी प्रेम करते थे.

एक किस्म की आत्ममुग्धता तो थी उनमें पर वे उसमें खो नहीं गए, उसे समझते थे. वे तार्किक व्यक्ति थे. खुद से प्रेम करने की पहली शर्त यह है कि आप अपने आसपास की दुनिया से प्रेम करें. उन्होंने यही किया. देव ने हमेशा भविष्य की तरफ देखा. उन्होंने कहा कि वे अपनी पुरानी फिल्में नहीं देखते. “मैं स्टूपिड दिखता हूँ”, वे बोले, “आजकल के लड़कों को देखिए कितना अच्छा काम कर रहे हैं.”

राज कपूर ने एक दुनिया रची, सभी जानते हैं मगर देव आनंद ने भी एसडी बर्मन, साहिर, गुरुदत्त, विजय आनंद, चेतन आनंद और कल्पना कार्तिक के साथ हिंदी सिनेमा के लिए एक अनूठी दुनिया रची थी. नवकेतन देव का ही सपना था, जो उन्होंने बहुत कम उम्र में साकार कर लिया. अपनी फिल्मों तथा अभिनय के जरिए जिन किरदारों को वे सिनेमा के पर्दे पर लेकर आए उनमें एक आंतरिक सॉफिस्टिकेशन था, जो आज दुर्लभ है. वे रुके नहीं. नए लोगों को जोड़ते गए. तो जब वे कहते हैं, “मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा” तो इसका एक खास मतलब होता है. जीवन के साथ बहने का.

फिल्म गाइड का एक डॉयलॉग वे अक्सर अपने साक्षात्कारों में दोहराते हैं, ‘मौत एक ख्याल है जैसे जिंदगी एक ख्याल है’. उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि आप अपनी जिंदगी को एक पटकथा मानिए और उस किरदार में ढल जाए जो आपको सबसे ज्यादा प्रिय है. वहीदा रहमान अपने एक इंटरव्यू में हंसते हुए उन्हें ‘बच्चा’ कहती हैं, बच्चे की तरह जिद्दी. मगर उनकी जिद कितनी निश्छल और मासूम है. किसी बाहरी चीज़ के लिए नहीं उनकी जिद अपने लिए थी…

देव ने अपनी जिंदगी को एक खयाल में बदल दिया था. अपने मनपसंद खयाल में. इसी फिल्म का एक और संवाद जीवन के कई दशक पार करने के बाद उनका प्रिय संवाद बन जाता है, ‘ना सुख है, ना दुख है, ना दीन है, ना दुनिया, ना इंसान, ना भगवान… सिर्फ मैं हूं, मैं हूं, मैं हूं’.

लेकिन फिल्म ‘गाइड’ का एक संवाद मुझे सबसे ज्यादा प्रिय है, ‘लगता है आज हर इच्छा पूरी होगी..पर मजा देखो, आज कोई इच्छा ही नहीं रही’. मैं इसे फ्रेम कराके अपनी स्टडी टेबल या सिरहाने रखना चाहता हूँ.

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