मनीष कुंजाम को उनकी ही पार्टी ने दिया धोखा ?
रायपुर | संवाददाता: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआई के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने पार्टी के राज्य सचिव के पद से इस्तीफ़ा देते हुए, पार्टी नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने चुनाव चिन्ह के मामले में लापरवाही को सोचा-समझा मामला कहा है.
मनीष कुंजाम, छत्तीसगढ़ के कोंटा से ताज़ा विधानसभा चुनाव हार गए थे और माना जा रहा है कि पार्टी का चुनाव चिन्ह नहीं मिलने के कारण उनकी यह हार हुई.
अब मनीष कुंजाम ने संगठन के नेताओं पर जानबूझ कर ऐसी स्थिति बनाने का आरोप लगाया है, जिसके कारण उन्हें पार्टी का चुनाव चिन्ह नहीं मिला.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव और छत्तीसगढ़ प्रभारी को भेजे अपने पत्र में मनीष कुंजाम ने लिखा है कि चुनाव के बाद मैंने कॉमरेड अमरजीत कौर से एक बार फोन पर बात किया, इसके अतिरिक्त किसी का कॉल रिसीव नहीं किया…यह हालात इसलिए बने कि बस्तर में जानबूझकर पार्टी द्वारा चुनाव चिन्ह नहीं दिया गया.
पत्र में मनीष कुंजाम ने लिखा-पार्टी नेतृत्व को पता था कि बस्तर में 9 से 10 सीटों पर चुनाव लड़ने वाले हैं. चिन्ह पर लड़ने से बस्तर में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है और इसका फायदा भाजपा को होगा, इसके पीछे कारण हमें यही दिखता है.
अपने इस्तीफ़े में पूर्व विधायक कुंजाम ने लिखा- आपको मालूम है कि चुनाव चिन्ह को लेकर मैं 12 अक्टूबर से लेकर 14 अक्टूबर तक, चार या पांच मर्तबा आपसे बात किया. आपका जवाब था-मैं बात कर रहा हूं, कोई दिक्कत नहीं होगा.
यहां मेरे साथियों का मुझ पर लगातार दबाव था कि चुनाव चिन्ह किसी भी हालत में जरुरी है, आप कॉमरेड महासचिव से बात करो. मैंने 13 या 14 अक्टूबर को कॉमरेड डी राजा से बात किया.
उनका जवाब था-नो प्रॉब्लम मनीष, कर्नाटक व उत्तर प्रदेश में चिन्ह पर लड़े थे, फिकर मत करो. फिर मैं कॉमरेड अतुल से भी बात किया था. इसके बाद भी एक दिन देर से चुनाव आयोग को पत्र लिखने का सीधा अर्थ है कि यह सोचा-समझा मामला है.
मनीष कुंजाम ने अपने पत्र में लिखा है- इस मामले में आयोग पर भाजपा समर्थित (इस मामले को छोड़ कर है भी) कह कर महासचिव का मेरे नाम पत्र लिखना और उस पत्र को पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि हम लोगों को बेवकूफ व सीधा-साधा समझता मानता है पार्टी नेतृत्व.
सफाई देते हुए पार्टी महासचिव द्वारा पत्र लिखा गया. उस पत्र में चुनाव आयोग को मोदी भाजपा समर्थित बताया गया, यह सच है. लेकिन इस मामले में उस बात का उल्लेख कर अपने करतूत को पर्दा डालने की कोशिश किया गया.
यही नहीं, बी फॉर्म के लिए भी आपसे कितनी बार बात किया, कितना मशक्कत करनी पड़ी थी, आपको तो मालूम होना चाहिए. जैसा कि मानो यह केवल हमारा गरज है, पार्टी नेतृत्व का तो कोई ड्यूटी है ही नहीं.
हताश हो कर हम लोगों ने 19-20 अक्टूबर को सीपीएम से संपर्क किया, कम से कम मिलता-जुलता चुनाव चिन्ह तो मिले, यह कोशिश भी सफल नहीं हुआ. इतना ही नहीं, नामांकन की अंतिम तारीख को निर्दलीय फॉर्म भरे, ताकि पसंद का चुनाव चिन्ह तो मिले, परंतु उसमें भी नाकाम हुए.
हताश-उदास, भारी मन से चुनाव लड़े, परिणाम सबके सामने है. बस्तर में चुनाव लड़े कई साथी, चिन्ह न मिलने से नहीं लड़ने की इच्छा जाहिर किए थे.
मनीष कुंजाम ने हाल ही में बस्तर में हुई एक बैठक का हवाला देते हुए लिखा-अभी 13 जनवरी को हमारी बस्तर संभागीय समिति की बैठक हुई थी. जिसमें हम लोग अलग राह जाने की ओर चर्चा किए. उसके बाद पार्टी के महासचिव व अन्य साथी फिर से सक्रिय हो गए हैं. फोन लगातार आ रहे हैं. पार्टी नेतृत्व के रवैय्या के कारण, जिन हालातों से गुजरे हैं, उसके कारण मन में अब पार्टी नेतृत्व के प्रति सम्मान नहीं रह गया है.
रुक कर फिर सोचता हूं कि निश्चित रुप से आरएसएस, बीजेपी देश के लिए खतरा है, इसमें कोई दो राय नहीं है. उसको हराने के लिए कांग्रेस को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मदद करना और इसके लिए पार्टी को नुकसान पहुंचाना, यह नीति समझ से परे है.