छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में भी मंदसौर जैसे हालात

रायपुर | संवाददाताः मंदसौर और देश के दूसरे हिस्सों के किसानों की तरह छत्तीसगढ़ में किसानों की हालत खराब है और इस बार की बारिश इस मुश्किल को और बढ़ा सकती है. किसानों की यह खराब हालत अगर आक्रमकता में बदली तो स्थितियां बिगड़ सकती हैं. संकट ये है कि मंदसौर की स्थिति के बाद उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों ने तो इस दिशा में पहल करते हुये किसानों की ऋण को सुलझाने की बात कही है लेकिन छत्तीसगढ़ में सरकार की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.

किसानों को 2100 रुपये धान का समर्थन मूल्य देने का वादा कर के सत्ता में आई रमन सिंह की सरकार को उनकी ही पार्टी की केंद्र सरकार ने साफ मना कर दिया है. रमन सिंह की सरकार अब इस मुद्दे पर कुछ भी कहने-बताने से बच रही है. राज्य में हर दिन तीन किसानों की आत्महत्या के एनसीआरबी के आंकड़े छुपाये नहीं छुप रहे हैं. किसान नेता आनंद मिश्रा का कहना है कि देश के हर हिस्से में एक-एक मंदसौर है और अगर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो यह एक अराजक स्थिति पैदा कर सकती है.

देश भर के किसान अलग-अलग किस्म की अनाज की भारी उपलब्धता के कारण कम कीमतों से जूझ रहे हैं. कृषि क्षेत्र के जानकारों का मानना है कि इस साल और पैदावार होगी. ऐसे में किसानों की हालत और खराब हो सकती है.

इस साल छत्तीसगढ़ में खरीफ मौसम 2017 में लगभग 48 लाख हेक्टेयर में विभिन्न फसलों की बोआई करने की तैयारी की गई है. इसमें से 37 लाख 50 हजार हेक्टेयर में धान, 2.25 लाख हेक्टेयर में मक्का, 1.05 लाख हेक्टेयर में अरहर, 1.40 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती करने का लक्ष्य रखा गया है. इनके अलावा अन्य दलहनी और तिलहनी फसलों तथा साग-सब्जी की खेती के लिए रकबा तय कर लिया गया है.

सरकार द्वारा किसानों को सात लाख 48 हजार क्विंटल प्रमाणित बीज वितरित करने की पूरी तैयारी कर ली गई है. विभाग द्वारा छह लाख 72 हजार क्विंटल धान, छह हजार 735 क्विंटल मक्का, छह हजार 425 क्विंटल अरहर तथा 48 हजार 100 क्विंटल सोयाबीन बीज बांटने का कार्यक्रम बनाकर इन बीजों का भण्डारण कर लिया गया है.

लेकिन इसके उलट हालत ये है कि राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी बाज़ार में दलहन, तिलहन और अनाज की कीमतें समर्थन मूल्य से कम हैं. इसके अलावा केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से ही समर्थन मूल्य में कमी की जा रही है. एक तरफ तो औद्योगिक घरानों को अरबों रुपये की छूट दी जा रही है, एनपीए के नाम पर अरबों रुपये माफ किये जा रहे हैं, वहीं आर्थिक स्थिति का हवाला दे कर समर्थन मूल्य में कोई बढोत्तरी नहीं हो रही है.

इसी तरह निर्यात मांग में सुधार के कारण साल भर पहले जिस तेजी के साथ निर्यात दर में लगभग 25 फीसदी की कमी आई थी, वही स्थिति अभी भी बनी हुई है. 2016-17 में भी हालत जस के तस बने रहे और कृषि जिंसों का निर्यात केवल 16.07 अरब डॉलर के आसपास जा कर ठहर गया है. एक तरफ आयात बेहिसाब बढ़ा है, वहीं निर्यात पर कई तरह की पाबंदियां हैं, जिसके कारण किसानों की हालत सुधरने के बजाये और बिगड़ रही है.

छत्तीसगढ़ में खेती की रकबा लगातार घट रहा है और पिछले 15 सालों में राज्य में किसान से मज़दूर बनने वालों की संख्या 20 लाख से अधिक हो गई है.

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