छत्तीसगढ़

हवालात में मानवाधिकार ताक पर

कोरबा | अब्दुल असलम: कड़ाके की ठंड में बिना कपड़ों के ठंडी जमीन पर बैठे ठिठुरते लोग, ये नजारा कोरबा शहर के थानों के हवालातों का है. यहां रोज़ाना किसी न किसी मामले में अपराधियों सहित अन्य लोगों को लाया जाता है.

ऐसे में कई बार लोगों को रातें हवालात में काटनी पड़ती है. ठंड के दिनों में हवालात में एक रात काटना किसी पहाड़ तोडने से कम नहीं है. हवालात में लोगों को सिर्फ हवा और लात ही मिलती है. ठंड में हवालातियों के लिए कोई खास व्यवस्था यहां नहीं है.

थाने पहुंचने वाले ज्यादातर अपराधियों व अन्य मामलों के आरोपियों को हवालात की ठंडी जमीन पर लेटकर रात काटनी पड़ रही है. हवालात के अंदर न तो पीने के पानी की और न ही रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था है.

जिले के तमाम थाना-चौकियों में ही मानवाधिकार खतरे में है. मानवाधिकार संरक्षा की बात करने वाले भी हवालात के इस व्यवस्था से अंजान है. या जानकर अंजान बने हुए है. सुप्रीम कोर्ट सहित मानवाधिकार आयोग ने हवालात के लिए कई नियम तय कर रखे हैं. हवालात में पर्याप्त रोशनी के साथ-साथ पीने के पानी सहित अन्य व्यवस्था होना अनिवार्य है.

नियमानुसार हवालातियों को साफ कंबल के साथ बिछाने के लिए चादर सहित अन्य वस्तुएं उपलब्ध करवाना आवश्यक है. यदि ऐसा किसी थाने में नहीं हो रहा है तो संबंधित थानेदार पर कार्रवाई हो सकती है.

महीनों से नहीं धुले हैं हवालात के कंबल

जिले के थानों में हवालातियों के लिए कंबल की व्यवस्था तो है पर इसे महीनों से नहीं धोया गया है. ठंड शुरू होने के बाद हवालात में रात गुजारने वालों के लिए कंबल जरूरी हो जाता है.

ऐसे में बदबूदार कंबलों को ओढऩा मजबूरी बन गई है. वहीं सुरक्षा की दृ़ष्टिकोण से हवालात में भेजने के दौरान ज्यादातर पुलिस वाले आरोपियों के कपड़े भी उतरवा देते हैं. ऐसे में परेशानी और बढ़ जाती है.

हालांकि समय-समय पर थाना स्तर पर कंबल व अन्य सामान के लिए शासन की ओर से बजट जारी किया जाता है. कई थानों में हवालातियों को गंदे कंबल ओढऩे के लिए दिए जाते हैं.मानव अधिकारो का दम भरने वालो को आखिर क्यों नहीं दिखता ये एक बड़ा सवाल है.

error: Content is protected !!