यूपी: बहुमत के बावजूद CM कौन?
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: स्पष्ट बहुमत देने का बावजूद यूपी को अब तक मुख्यमंत्री नहीं मिल सका. वहीं, गोवा में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली कांग्रेस ताकती रह गई और दूसरे नंबर पर आने के बाद भी भाजपा ने अपना मुख्यमंत्री 24 घंटे के अंदर तय कर दिया था. गोवा में मोनहर पर्रिकर ने विधानसभा में विश्वास मत भी प्राप्त कर लिया है. वहीं, चुनाव नतीजे आने के सप्ताह भर बाद यूपी के मुख्यमंत्री की घोषणा नहीं हो सकी है.
यूपी की 403 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा को 312 सीटें मिली है. जनादेश पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में है. अब यह भाजपा नेतृत्व की बारी है कि वह यूपी को उसका मुख्यमंत्री दे. लोकसभा चुनाव के समय भी इसी यूपी ने भाजपा को सबसे ज्यादा सांसद दिये थे. इस विधानसभा चुनाव में भी यूपी में भाजपा को अपने दामोदार पर तीन चौथाई सीटें मिली हैं. मुख्यमंत्री भाजपा सा ही होगा यह तय है परन्तु नेतृत्व अभी तक तय नहीं कर पा रहा है कि किसे यूपी की कमान सौंपे.
सबसे पहले इस पद के लिये केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का नाम उछला था. उसके बाद केशव प्रसाद मौर्य, मनोज सिन्हा, योगी आदित्यनाथ के नाम है. इस बात के भी कयास लगाये जा रहें हैं कि इस पद पर जिस नाम की घोषणा होने वाली है वह चौंकाने वाला होगा.
अब तक जितने भी नाम इस पद के लिये उछले हैं उनमें से कोई यूपी का विधायक नहीं है सभी सांसद हैं. यदि सांसदों में से किसी को यूपी के मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान किया जाता है तो मानना पड़ेगा कि भाजपा के 312 विधायकों में से कोई ऐसा नहीं है जिसे पार्टी नेतृत्व इस पद के योग्य मानती है.
लेकिन अब यह उम्मीद की जा रहा है कि शनिवार को भाजपा नेतृत्व यूपी के मुख्यमंत्री का चयन कर लेगा. उसके बाद रविवार को विधायक दल की बैठक के बाद उस नाम का ऐलान कर दिया जायेगा. संभवतः सोमवार को मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण होगा.
अब तमाम बहस आकर केन्द्रीय दूरसंचार मंत्री मनोज सिन्हा तथा यूपी भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य पर केन्द्रित हो गई है. मनोज सिन्हा का एक कमजोर पहलू यह है कि वह सवर्ण जाति से आते हैं. यूपी चुनावों में भाजपा को दलितों और पिछड़ी जातियों का काफी समर्थन मिला, ऐसे में भाजपा उन्हें नाराज करने का जोखिम नहीं लेना चाहेगी. इस लिहाज से अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य का चयन भाजपा की समस्या का समाधान कर सकता है.
केशव प्रसाद मौर्य को पिछले साल इसी आधार पर यूपी भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था, जिसके बाद पार्टी ने दलितों और पिछड़ों के बीच पैठ बनाना शुरू किया. मौर्य के पक्ष में एक और बात जाती है और वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उनका पुराना नाता. मनोज सिन्हा पूर्वी उत्तर प्रदेश के संख्या में कम लेकिन संपन्न कहे जाने वाले भूमिहार तबके से ताल्लुक़ रखते हैं.
इन सबके बीच प्रधानमंत्री मोदी तथा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के लिये यूपी के मुख्यमंत्री का चयन करना है. राजनीति है, इसमें कदम शतरंज की चालों से भी ज्यादा सोच समझकर उठाना पड़ता है. सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा-संघ के अवश्मेध यज्ञ के घोड़े का सफर अभी पूरा नहीं हुआ है, इसलिये देश के सबसे बड़े राज्य में सोच समझकर कदम उठाना पड़ रहा है.