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श्रीलंका में राजपक्षे के इस्तीफा से सुधरेंगे हालात?

नई दिल्ली | डेस्क: श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद से इस्तीफा के बाद अटकलें तेज़ हो गई हैं. राजधानी कोलंबो में हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बीच महिंदा राजपक्षे ने सोमवार को इस्तीफा दिया.

अपने इस्तीफे के बाद उन्होंने कहा कि वे देश के लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं.

अब राजनीतिक गलियारे में इस बात पर बहस शुरु हो गई है कि राजपक्षे का इस्तीफा क्या हालात को बदलने में कोई मदद करेगा.

अपनी ही श्रीलंका पोदुजन पेरामुन के भीतर इस्तीफा देने के भारी दबाव से जूझ रहे राजपक्षे लगातार कोशिश में थे कि उन्हें इस्तीफा न देना पड़े. लेकिन 76 साल के महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना ही पड़ा.

इससे पहले श्रीलंका में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे द्वारा दूसरी बार आपातकाल लागू किया गया था.

उसके बाद से श्रीलंका में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

सोमवार को सरकार समर्थक और विरोधियों के बीच जम कर झड़प हुई.

बीबीसी के अनुसार बढ़ते कर्ज़ के अलावा कई दूसरी चीज़ों ने भी देश की अर्थव्यवस्था पर चोट की. जिनमें भारी बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लेकर मानव निर्मित तबाही तक शामिल है. इसमें रासायनिक उर्वरकों पर सरकार का प्रतिबंध शामिल है, जिसने किसानों की फसल को बर्बाद कर दिया.

राजपक्षे
राजपक्षे

स्थितियां 2018 में बदतर हो गई, जब राष्ट्रपति के प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने के बाद एक संवैधानिक संकट खड़ा हो गया. इसके एक साल बाद 2019 के ईस्टर धमाकों में चर्चों और बड़े होटलों में सैंकड़ों लोग मारे गए. और 2020 के बाद से कोविड-19 महामारी ने प्रकोप दिखाया.

अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने करों में कटौती की एक नाकाम कोशिश की.

लेकिन ये कदम उल्टा पड़ गया और सरकार के राजस्व पर बुरा असर पड़ा. इसके चलते रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका को लगभग डिफ़ॉल्ट स्तर पर डाउनग्रेड कर दिया, जिसका मतलब कि देश ने विदेशी बाज़ारों तक पहुंच खो दी.

सरकारी कर्ज़ का भुगतान करने के लिए फिर श्रीलंका को अपने विदेशी मुद्रा भंडार का रुख करना पड़ा, जिसके चलते इस साल भंडार घटकर 2.2 बिलियन डॉलर हो गया, जो 2018 में 6.9 बिलियन डॉलर था. इससे ईंधन और अन्य ज़रूरी चीज़ों के आयात पर असर पड़ा और कीमतें बढ़ गईं.

इन सबसे ऊपर, सरकार ने मार्च में श्रीलंकाई रुपया फ्लोट किया यानी इसकी क़ीमत विदेशी मुद्रा बाज़ारों की मांग और आपूर्ति के आधार पर निर्धारित की जाने लगी.

ये कदम मुद्रा का अवमूल्यन करने के मक़सद से उठाया गया, ताकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज़ मिल जाए. हालांकि अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले रुपये की गिरावट ने आम श्रीलंकाई लोगों के लिए हालात और ख़राब कर दिए.

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