सर्व आदिवासी समाज से डर गई कांग्रेस?
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम को एआईसीसी की नोटिस के बाद हंगामा मचा हुआ है. नेताम ने कहा है कि इस नोटिस पर वे हैरान हैं.
राजनीतिक गलियारों में माना जा रहा है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सर्व आदिवासी समाज की राजनीतिक भूमिका के भय से कांग्रेस पार्टी ने यह कदम उठाया है.
अरविंद नेताम को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की शिकायत पर पार्टी विरोधी गतिविधियों का हवाला दे कर नोटिस ऐसे समय में दिया गया है, जब कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन अगले पखवाड़े छत्तीसगढ़ में होने वाला है.
अरविंद नेताम को इस अधिवेशन की स्वागत समिति में रखा गया है.
नेताम के अलावा प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री अमरजीत चावला को भी नोटिस जारी किया गया है. प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम के करीबी अमरजीत चावला, अधिवेशन की चार समितियों में हैं.
नेताम बोले-मैं तो पहले से ही रिटायर
सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा है कि उन्हें मीडिया से ही नोटिस की जानकारी मिली है.
उन्होंने कहा कि दो साल पहले मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर उन्हें रिटायर होने के लिए कहा था. उसके बाद से वे कांग्रेस में सक्रिय नहीं हैं.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी की स्वागत समिति में उन्हें क्यों रखा गया, यह उन्हें नहीं पता.
क्या है नोटिस में
कांग्रेस पार्टी की अनुशासन समिति के अध्यक्ष तारिक अनवर के हस्ताक्षर से जारी नोटिस में अरविंद नेताम पर आरोप हैं कि नेताम ने सर्व आदिवासी समाज नाम का संगठन बनाया है, जो खुले रूप से कांग्रेस सरकार विरोधी कार्यक्रमों में शामिल है.
पत्र में कहा गया है कि भानुप्रतापपुर विधानसभा उप चुनाव में सर्व आदिवासी समाज ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया. कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ नेताम ने सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी के लिए अभियान चलाया.
पत्र में यह भी कहा गया है कि इस संगठन को भारतीय जनता पार्टी से पैसे मिलते हैं.
सर्व आदिवासी समाज से डरी हुई है कांग्रेस?
कांग्रेस पार्टी के नेता तारिक अनवर ने जिस सर्व आदिवासी समाज को अरविंद नेताम द्वारा बनाये जाने का उल्लेख किया है, असल में सर्व आदिवासी समाज बरसों पुराना सामाजिक संगठन है.
आदिवासियों के इस सामाजिक संगठन के आयोजनों में खुद राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कई अवसरों पर शामिल होते रहे हैं.
अरविंद नेताम इस संगठन के संरक्षक हैं.
पिछले साल जब भानुप्रतापुर में उप चुनाव हुआ तो कांग्रेस और भाजपा से नाराज सर्व आदिवासी समाज ने पहली बार चुनाव मैदान में अपना प्रत्याशी उतारा.
कांग्रेस के आदिवासी विधायक मनोज मंडावी के निधन से खाली हुई इस सीट पर उनकी पत्नी सावित्री मंडावी को उम्मीदवार बनाया गया था.
परंपरागत सीट और सहानुभूति के कारण सावित्री मंडावी (कुल वोट 65,327) ने निकटतम भाजपा प्रत्याशी ब्रह्रानंद नेताम (कुल वोट 44,229) को 21 हज़ार से भी अधिक वोटों से ज़रुर हरा दिया लेकिन तीसरे नंबर पर रहे सर्व आदिवासी समाज के समर्थित उम्मीदवार के वोटों ने सबको चौंका दिया.
कांग्रेस के पंजा और भाजपा के कमल छाप के मुकाबले, अकबर राम कोर्राम को चुनाव आयोग ने एसी चुनाव चिन्ह आवंटित किया था.
आदिवासी बहुल इस इलाके में एसी चुनाव चिन्ह को समझा पाना ही मुश्किल था. बड़ी मुश्किल से इसे एसी कूलर कह कर प्रचारित किया गया. लेकिन जाहिर तौर पर चुनाव चिन्ह आदिवासी मतदाताओं के बीच ठीक से पहुंच नहीं पाया.
इसके बाद भी बिना किसी पूर्व तैयारी और राजनीतिक ढांचे के उतरे सर्व आदिवासी समाज के समर्थित उम्मीदवार अकबर राम कोर्राम को इस चुनाव में 23,371 वोट मिले थे.
इस जीत के बाद भी कांग्रेस को अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती सर्व आदिवासी समाज से ही समझ में आ रही है. बस्तर के इलाके में विधानसभा की 12 सीटों पर सर्व आदिवासी समाज की पकड़ को कम करके नहीं आंका जा सकता.
इसके अलावा राज्य की कम से कम 26 सीटों पर आदिवासी मतदाताओं का प्रभाव है.