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चावल के साथ पानी भी निर्यात करते हैं हम

देविंदर शर्मा
दुनिया में चावल निर्यात में 40 प्रतिशत हिस्सा भारत का है, लेकिन निर्यात करने वाले चावल हमारी कुल पैदावार का महज 12 फीसदी है. भारत ने सावधानी बरतते हुए अभी बासमती चावल के अलावा चावल की दूसरी किस्मों के निर्यात प्रतिबंध लगा दिया है. ऐसे में साफ है कि दुनिया भर में अनाज की क़ीमतें प्रभावित होंगी.

अमरीका में यह बात सामने आई है कि चावल की कीमत में 10 डॉलर का उछाल आया है. लेकिन लाख टके का सनाव है कि आख़िर भारत को इस फ़ैसले को लेने की नौबत क्यों पड़ी?

इसका उत्तर बहुत साफ है कि हमारे पास पर्याप्त मात्रा में जो अनाज भंडार है, आने वाले दिनों में उसमें कमी आने की आशंका है. अभी खरीफ के इसी मौसम में चावल की पैदावार होती है और फसल पर मौसम की मार पड़ी है.

पहली बात तो यह है कि चावल का बड़ा कटोरा कहे जाने वाले पंजाब और हरियाणा में बाढ़ आई है. जरूरत से ज्यादा बारिश हुई है, उसके चलते माना जा रहा है कि बहुत सारे इलाकों में धान फिर लगाना पड़ेगा. इसका मतलब यह है कि अब जो रोपनी हो रही है, वह 15 अगस्त से पहले पूरी हो जानी चाहिए, उसके बाद देरी होगी, तो फसल और उत्पादन पर असर पड़ जाएगा.

इसके ठीक उलट मध्य प्रदेश के आगे दक्षिण भारत में तो 20 से 30 प्रतिशत बारिश कम हुई है. जाहिर है, वहां भी उत्पादन कम होने की आशंका है. अभी अल नीनो की शुरुआत नहीं हुई है, अगर अल नीनो की मार पड़ती है, तो लगता है कि चावल की जो पैदावार होगी, वह चिंताजनक होगी. चावल के भंडार पर असर पड़ेगा, इसलिए भारत ने बासमती चावल के अलावा दूसरे चावल के निर्यात को प्रतिबंधित किया है.

देश में 1 जुलाई तक 7.1 करोड़ टन धान और गेहूं का भंडार है. अभी तो हमें लग रहा है कि पर्याप्त है, लेकिन आने वाले दिनों में जो फसल की स्थिति है, उसे देखते हुए जो सरकार ने कदम उठाए हैं, बहुत अच्छा है. सही समय पर सही कदम है.

पिछले साल देश ने देखा कि जब गेहूं की पैदावार में कमी हुई थी, तब भी बहुत अपेक्षा थी कि हम निर्यात करेंगे. कुछ अर्थशा्त्रिरयों द्वारा यह भी कहा गया था कि भारत दुनिया के लिए अन्नदाता होगा. यह भी कहा गया था, हम दुनिया की गेहूं की जरूरत को पूरा करेंगे, लेकिन यह गलत था. हमारे पास उतना भंडार नहीं है कि हम सारा कुछ निर्यात कर दें, अच्छा हुआ कि सरकार ने सुध ली और निर्यात रुका. अगर यह नहीं होता, तो दुनिया में हमें कटोरा लेकर खड़ा होना पड़ता.

कुछ ही दिन पहले एफसीआई ने कर्नाटक को चावल देने से मना किया, यह कहते हुए कि हमारे पास भंडार नहीं है, लेकिन जब निर्यात की बात आती है, तो हमारे यहां एक तबका है, जो खड़ा हो जाता है कि निर्यात अगर रुकेंगे, तो हमारी विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी.

मेरे लिए यह समझना मुश्किल है कि एक तरफ गरीबों को देने के लिए अनाज नहीं है और जब निर्यात की बारी आती है, तो हम कहते हैं निर्यात बढ़ना चाहिए. यह विरोधाभास है. आखिर हम किस लॉबी का बचाव करना चाहते हैं?

जब हम पंजाब राज्य की बात करते हैं, तब कहा जाता है, पंजाब के किसानों ने पानी का निर्मम दोहन किया है. 138 ब्लॉक में से 109 ब्लॉक में पानी ब्लैक जोन में पहुंच गया है. वहां सौ प्रतिशत से ज्यादा पानी खींचा जा रहा है. जब हम निर्यात करते हैं, तब हम कहते हैं, पंजाब खेती में विविधता लाए.

अधिक से अधिक चावल उपजाने से पानी का नुकसान होता है. यह बहस हम सुनते आए हैं. पंजाब 99 प्रतिशत चावल बाजार को दे देता है. खुद एक प्रतिशत का ही उपभोग करता है. जब चावल की कमी होती है, तब पंजाब को कहा जाता है, सब भूल जाओ, हमें ज्यादा चावल चाहिए. एक तरफ, पानी की कमी का रोना और दूसरी तरफ, ज्यादा चावल की मांग.

पंजाब में एक अर्थशास्त्री है एस एस जौहल, उन्होंने शोध करके बताया कि जब हम चावल का निर्यात करते हैं, तब हम अपने पानी का भी निर्यात करते हैं. प्रदेश में 12 से 13 करोड़ टन के बीच चावल की पैदावार होती है, जिसमें 48 से 52 अरब लीटर पानी की जरूरत पड़ती है. पिछले साल हमने 2.2 करोड़ टन का निर्यात किया है. मतलब, 2.2 करोड़ टन चावल के साथ 88 अरब लीटर पानी का निर्यात किया है.

कहा जाता है, तीसरा विश्व युद्ध पानी पर होगा और फिर भी हम पानी निर्यात करते हैं? चिंता सब जताते हैं, लेकिन बुनियादी रूप से कौन सोचता है? क्या चावल के साथ पानी निर्यात को रोकना नहीं चाहिए? आज ज्यादातर देश अपना पानी बचाने में लगे हैं.

दुनिया के अनेक देश अपना लकड़ी भी निर्यात नहीं करते हैं, बल्कि लकड़ी का आयात करते हैं, ताकि अपना नुकसान न हो. जब आप लकड़ी निर्यात करते हैं, तो आप अपने जंगल और जल को भी निर्यात करते हैं. ऐसे ही कोयला वाले देश भी करते हैं, भारत से कोयला मंगाते हैं.

कहने का आशय यह है कि आज जरूरी है, हम अपने पानी का बचाव करें. भारत में सावधानी बरतते हुए सिर्फ चावल का निर्यात ही नहीं रुका है. जो 1.5 मिलियन टन अनाज बायोफ्यूल के लिए दिया जाता है, उस पर भी रोक लगा दी गई है. आज जो वैश्विक स्थिति है, उसमें जब हमें जरूरत पड़ेगी, तब कोई भी देश हमारे पास नहीं आएगा.

अगर हमें लगता कि दुनिया के लोगों के लिए अन्न का क्या होगा? इसका जवाब है कि दुनिया के पास बहुत अनाज है. अमेरिका के पास इतना ज्यादा अनाज है कि वह उसमें से नौ करोड़ टन अनाज बायोफ्यूल के लिए दे देता है. यूरोप में 1.2 करोड़ टन अनाज एथेनॉल उत्पादन के लिए दिया जाता है. ये देश अपने उपभोग में कोई बदलाव नहीं लाना चाहते हैं, लेकिन भारत को कहा जाता है कि आप दुनिया के अन्नदाता हो, तो आप अपने भंडार व अनाज हमारे लिए उपलब्ध कराओ.

भारत ने इसे समय रहते समझ लिया है, अगर अनाज की समस्या को सुलझाना ही है, तो अमरीका और यूरोप को आगे आना चाहिए. ध्यान रहे, मोटरकार ईंधन का इंतजार कर सकती है, लेकिन इंसान अनाज का इंतजार नहीं कर सकता. हमारा फैसला बिल्कुल ठीक है.

जहां तक आम भारतीयों का सवाल है. घबराने की कोई जरूरत नहीं है, हमारे पास खूब भंडार हैं, 7.1 करोड़ टन अनाज पड़ा हुआ है, जो जरूरत से ज्यादा है, तो हमें कोई डर नहीं है और अभी तो नई पैदावार भी आनी है.

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