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नेहरू अब भी उदास हैं

उनकी किताबों ’विश्व इतिहास की झलक’, ’भारत की खोज’ और ’आत्मकथा’ की रॉयल्टी से नेहरू परिवार का खर्च वर्षो चलता रहा. आज भी संसार में बहुत बिकने वाली वे किताबें चाव से पढ़ी जाती हैं. अपने ही खिलाफ लेख तक छद्म नाम से लिखा कि जवाहरलाल तानाशाह हैं.

नेहरू में कवि, दार्शनिक और इतिहास बोध था. उनकी दृष्टि में नदियां, हवाएं और तरंगें बनकर बहती हैं. उनकी गंगा पानी का एकत्र नहीं है जिसकी सफाई के लिए मंत्रालय कुलांचे भरे जा रहे हैं. नेहरू की गंगा समय की बहती नदी है. भारत के सुदूर अतीत से लेकर भविष्य के महासागर तक संस्कारों का सैलाब लिए अनंतकाल तक बहती रहेगी.

वसीयत के गंगा चित्रण से बेहतर वसीयत लेखन संसार में नहीं है. उनकी श्रद्वांजलि में संसद में असाधारण बौद्धिक सांसद हीरेन मुखर्जी ने कहा था कि मैं ऐसी वसीयत लिखने वाले लेखक की हर गलती माफ कर सकता हूं. यहां तक कि उनकी खराब सरकार को भी. नेहरू ने प्रधानमंत्री नहीं साहित्य अकादमी के अध्यक्ष की हैसियत से सोवियत रूस के सर्वोच्च नेता खु्रुश्चेव को लिखा था कि वे डॉक्टर जिवागो उपन्यास के लेखक बोरिस पास्तरनाक को रूसी समाज की कथित बुराइयों को उजागर करने के आरोप में अनावश्यक सजा नहीं दें.

ऑल्डस हक्सले जैसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के बौद्धिक ने लिखा है कि जवाहरलाल का व्यक्तित्व गुलाब की पंखुड़ियों जैसा है. शुरू में लगता था कि चट्टानी राजनीति में गुलाब की ये पंखुड़ियां कुम्हला जाएंगी. लेकिन नहीं नहीं मैं गलत था. गुलाब की पंखुड़ियों ने तो पैर जमाने शुरु कर दिए हैं. नेहरू का स्पर्श पाकर राजनीति सभ्य हो गई है. गुरुदेव टैगोर ने उन्हें भारत का ऋतुराज कहा था. विनोबा के लिए अस्थिर दौर में सबसे बड़े स्थितप्रज्ञ थे.

25. निंदक शेख अब्दुल्ला को नेहरू का अवैध भाई बताते हैं. उनके ब्राह्मण पूर्वजों में मुसलमानों का रक्त अफवाहों के इंजेक्शन डालते रहते हैं. एडविना माउंटबेटन से रागात्मक संबंधों में मांसलता की वीभत्सता की अफवाहों का तंतु बना लिया जाता है. उन्हें कॉमनवेल्थ कायम रखते हुए ऐसे समझौतों के लिए दोषी करार दिया जाता है जिनका किसी को इल्म ही नहीं है.

सफेद झूठ सर्वोच्च राजनीतिक स्थिति में हैं कि नेहरू सरदार पटेल की अंत्येष्टि में नहीं गए थे. कांग्रेसी कुनबे से केवल जवाहरलाल हैं जिन पर हमले जारी हैं. निखालिस हिन्दू दिखाई पड़ते गांधी, मदनमोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, सरदार पटेल, लालबहादुर शास्त्री, राजगोपालाचारी वगैरह की तस्वीरें कांग्रेसियों से ज्यादा संघ परिवार खरीद रहा है.

नेहरू के सियासी और खानदानी वंशज पूरी तौर पर गाफिल हैं. जवाहरलाल से बेरुख भी हो जाते हैं. उनके लिए 14 नवंबर बौद्धिक भूकंप की तरह होना था. पुरानी वर्जनाओं को नेहरू के ज्ञानार्जन के कारण दाखिल दफ्तर कर सकता था. कांग्रेस इस आधारण बौद्धिक से घबरा या उकताकर मिडिलफेल जीहुजूरियों के संकुल को ज्ञानकोष बनाए बैठी है.

ठूंठ से कोंपल उगाने का जतन हो रहा है. कांग्रेस महान क्रांतिकारी भगतसिंह की इबारत को तो पढे़ं . उसने कहा था कि मैं देश के भविष्य के लिए गांधी, लाला लाजपत राय और सुभाष बोस वगैरह सब को खारिज करता हूं. केवल जवाहरलाल वैज्ञानिक मानववाद होने के कारण वे देश का सही नेतृत्व कर सकते हैं. नौजवानों को चाहिए वे नेहरू के पीछे चलकर देश की तकदीर गढ़ें. नेहरू चले गए. भगतसिंह भी. उस वक्त के नौजवान भी. वर्तमान के ऐसे करम हैं कि नेहरू अब भी उदास हैं.

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