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नेहरू अब भी उदास हैं

17. सरदार पटेल और नेहरू के कथित मतभेदों को अफवाहों की तरह उछालकर तरह तरह की राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती रही हैं. यह बदस्तूर जारी है. अपने पचहत्तरवें जन्मदिन के अभिनन्दन समारोह को संबोधित करते हुए सरदार ने स्वीकार किया था कि उनके पास करने के लिए बहुत अधिक जीवन शेष नहीं है. उन्होंने यह स्वीकारोक्ति भी की कि जवाहरलाल नेहरू ही देश के नेता हैं और सरदार के पास नेहरू का हाथ मजबूत करने की सीमित भूमिका है.

नेहरू पूरी दुनिया में भारत के गौरव की वृद्धि कर रहे हैं. गांधी जी के बाद नेहरू के नेतृत्व की ही अंतर्राष्ट्रीयता है. उनकी वजह से भारत का सम्मान बढ़ा है. जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस पर 14 नवम्बर 1949 को पटेल ने भावुक होकर कहा था कि उन दोनों के संयुक्त नेतृत्व के प्रति देश ने जो विश्वास व्यक्त किया है, उससे वे अभिभूत हैं.

इस विश्वास के कारण ही दोनों नेता मिलकर अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर पा रहे हैं. लोगों का जितना जितना सहयोग और विश्वास मिलेगा-उनको दिया गया नेतृत्व का भार उतना उतना कम महसूस होगा.

18. नेहरू-पटेल युति के राजनीतिक किस्सों का इतिहास में संग्रहालय है. इन दो शीर्ष राजनेताओं ने कई मुद्दों पर संयुक्त होकर गांधी के नेतृत्व को भी चुनौती दी थी-मसलन भारत विभाजन के मसले को लेकर. कई बार संगठन में बहुमत होने पर भी गांधी और पटेल ने नेहरू को तरजीह दी. सरदार पटेल की क्षमता के बावजूद गांधी ने नेहरू को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. पटेल ने कोई प्रत्यक्ष विरोध नहीं किया.

इतिहास इस तरह यथार्थ की इबारतों पर रचा जाता है. नरेन्द्र मोदी जैसे बहुत से हिन्दू राष्ट्रवादी नेताओं ने नेहरू पर निशाना साधने के लिए सरदार पटेल के कंधे का इस्तेमाल किया है. ऐसा करने में उन वैज्ञानिक अवधारणाओं और परिस्थितिजन्य कारणों की हेठी की जाती है-जो भविष्य का दिशा निर्धारण करते हैं.

यदि विवेकानन्द और गांधी आपसी विमर्श कर पाते. यदि गांधी ने सुभाष बोस को पूरा समर्थन दिया होता. यदि गांधी-भगतसिंह बौद्धिक साक्षात्कार हुआ होता. यदि सुभाष बोस और भगतसिंह को गांधी के बराबर उम्र मिली होती. यदि ज़िन्ना ने जिद नहीं की होती. यदि सरदार पटेल का जन्म कोई दस वर्ष बाद हुआ होता. ऐसी अफलातूनी परिकल्पनाएं कल्पना लोक में होती हैं. उसे इतिहास में घटित तो नहीं होना था.

सरदार पटेल भी दक्षिणपंथी तत्वों के वोट बैंक बनाए जा रहे हैं. उससे यही आमफहम देसी कहावत सिद्ध होती है ‘जिंदा हाथी लाख का. मरे तो सवा लाख का.‘

19. नेहरू जानते थे कि छत्तीसगढ़ के कोई डेढ़ दो करोड़ निवासियों में से पचहत्तर प्रतिशत आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों के हैं. इनमें से सबसे बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है. उनकी एक भीलनी माता जूठे बेर खाने खिलाने के आत्मीय प्रतीक के रूप में नए भारत में भी नई भूमिका का अधिकार मांगती है. भिलाई इस्पात संयंत्र विकास यात्रा में मील का पत्थर बना.

रविशंकर शुक्ल की जिद को भी सहसा भुलाया नहीं जा सकता. इस संयंत्र के राजनीतिक निहितार्थ महत्वपूर्ण नहीं हैं. इसके आर्थिक फलितार्थ उपलब्धि, बहस और पुनर्विचार के विषय हैं. बाल्को अल्युमिनियम कारखाना, कोरबा में विद्युत उत्पादन इकाइयां, दल्लीराजहरा और बैलाडिला की लौह अयस्क खदानें, सीमेंट उद्योग और इन पर निर्भर सैकड़ों सहवर्ती उद्योगों के कारण छत्तीसगढ़ में औद्योगिक क्रान्ति की तस्वीर उकेरी गई है.

20. जवाहरलाल ने भिलाई में खड़े होकर भिलाई को नए भारत का तीर्थ कहा था. उन्होंने सामाजिक-धार्मिकता के प्रतिमानों और आयामों को झिंझोड़ दिया था. श्रम, सामूहिकता, सहकारिता और सहयोग राष्ट्रीय स्वावलंबन का आधार बने. इंदिरा गांधी ने राजनीतिक दबावों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र की अनिवार्यता को कठोर कानूनी शिकंजों में कसा.

आजाद हिन्दुस्तान में इसी कारण एक नए मध्यवर्ग के आत्मविश्वास का दौर शुरू हुआ. उसकी संतानों में जीवन को प्रतिद्वंद्विता के आधार पर भविष्य संवारने के नए रूमान की तरह इस्तेमाल किया गया. राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में छत्तीसगढ़ की तरुण मानव संपदा ने कीर्तिमान रचे. शिक्षा के प्रसार, स्वास्थ्य के प्रति नवचेतना और सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध जेहाद समाजवाद के प्राकृतिक प्रतिफल बनकर मोर्चे पर डटे रहे.

आज छत्तीसगढ़ की हालत ऐसी है जैसे सामरिक दृष्टि से बने किसी मजबूत किले को पहले पुरातत्व केन्द्र घोषित किया जाए और फिर उसे धराशायी कर वहां छोटे-छोटे रहवासी फ्लैट्स बना दिए जाएं. किले के रक्षकों को यह आश्वासन जरूर दिया जा रहा है कि उनके फ्लैट्स में इस किले की तस्वीरें लगाने की इजाजत दे दी जाएगी. सार्वजनिक क्षेत्र की मानसिकता में काम करने वाली पीढ़ियां संविधान की गारंटियों और श्रमिक कानूनों से भी बाखबर हैं.

इन प्रावधानों को हटाए बिना सार्वजनिक क्षेत्र के इतिहास को मिटाया नहीं जा सकता. जवाहरलाल की उक्ति का व्यंग्य यही है कि छत्तीसगढ़ के नए औद्योगिक तीर्थों में पंडों की भरमार होगी. गंदगी, प्रदूषण, भ्रष्टाचार और शोषण धर्म के साथ रहने से गुरेज नहीं करते.

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