इरोम शर्मिला ने तोड़ा अनशन
शिलॉन्ग | समाचार डेस्क: इरोम शर्मिला ने मंगलवार 4:20 बजे शहद पीकर अपना अनशन तोड़ा. अनशन तोड़ने के बाद वह रो पड़ी तथा कहा अभी अपनी मां से नहीं मिलेगी क्योंकि उसका मकसद पूरा नहीं हुआ है. उन्होंने राजनीति में आने का संकेत दिया है. राजनीति के सवाल पर उन्होंने कहा, ”मणिपुर की राजनीति गंदी है जो समाज का ही हिस्सा है.” राजनीति में आकर हालात बदलने की इच्छा जताते हुए इरोम ने कहा, ”हमें लगभग 20 निर्दलीय उम्मीदवारों की तलाश है.” जाहिर है कि उसे इस बात का अहसास हो गया है कि भूख हड़ताल से अफस्पा को हटाया नहीं जा सकता लिहाजा राजनीति ताकत हासिल करके इसके खिलाफ ज्यादा जोरदार तरीके से आवाज उठाई जा सकती है.
इरोम ने 4 नवंबर 2000 को 28 साल की उम्र में इस कानून को हटाने की मांग पर भूख हड़ताल शुरु की थी. आज उसकी उम्र 44 साल की है. इनमें से ज्यादातर साल उसने अस्पताल में गुजारे हैं.
इरोम अब बतौर जनप्रतिनिधि काम करना चाहती हैं, लेकिन उनकी यह डगर आसान नहीं दिख रही क्योंकि पूर्वोत्तर के राज्यों में सबसे ज्यादा उबाल मणिपुर में ही है. मणिपुर के हालात निरंतर बिगड़ रहे हैं. करीब उनतीस लाख की आबादी वाले इस राज्य में बाहरी लोगों की संख्या आठ से नौ लाख है. मणिपुर के मूल निवासी कहते हैं कि नेपाली, बांग्लादेशी, म्यांमारवासी व बिहारी मणिपुर की जनसांख्यिकी को बिगाड़ रहे हैं.
इतना ही नहीं, इरोम को भूमिगत बलवाई संस्था कांग्लेयी यावेल कन्नालुप, जिसने स्वतंत्र मणिपुर राष्ट्र के लिए सशस्त्र संघर्ष छेड़ रखा है, को भी झेलना होगा.
अफस्पा
वर्ष 1958 में संसद ने अफस्पा (एएफएसपीए- आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट) को पारित किया. शुरुआती दौर में इसे आंतरिक सुरक्षा के नाम पर नगालैंड में लागू किया गया. वर्ष 1958 के बाद पूर्वोत्तर के कई राज्यों के कई इलाकों में इसे लागू किया गया. वर्ष 1990 में लद्दाख को छोड़ कर, जम्मू-कश्मीर में भी अफस्पा लागू किया गया. यहां गौरतलब है कि मणिपुर सरकार ने, केंद्र की इच्छा के विपरीत, अगस्त 2004 में राज्य के कई हिस्सों से इस कानून को हटा दिया था. इसे लेकर केंद्र व मणिपुर सरकार के बीच काफी तनातनी का माहौल बना. बाद में फिर से वहां यह कानून सख्ती के साथ लागू किया गया. देश में सबसे पहले ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए अफस्पा को अध्यादेश के जरिए 1942 में पारित किया. अपना संविधान लागू होने के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ रहे अलगाववाद और हिंसा से निपटने के लिए मणिपुर और असम में वर्ष 1958 में अफस्पा लागू किया गया. वर्ष 1972 में कुछ संशोधनों के साथ इसे लगभग सारे उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में लागू कर दिया गया.