ये कहां आ गये हम
कनक तिवारी | फेसबुक : 1914 में पहला और 25 साल बाद दूसरा विश्व युद्ध हुआ. दोनों विश्व युद्धों में गुलाम होने से भारत की स्वतंत्र भूमिका नहीं थी. राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां इस तरह उलटी पलटीं कि भारत को लगा कि अब आजाद होने का वक्त आ गया है.
अंग्रेजी भाषा, साहित्य, विज्ञान, संसदीय परंपराओं, लोक प्रशासन लाने वाले भारत के मुख्य जनप्रतिनिधिऔर संविधान नियंता इंग्लैंड तथा अमेरिका में शिक्षित हुए थे. संविधान सभा में तीन बरस की मशक्कत के बाद करीब 300 चुने हुए प्रतिनिधियों ने हिंदुस्तान को उसका आईन 26 नवंबर 1949 को दिया.
26 जनवरी 1950 से भारत दुनिया में गणतंत्र का बड़ा राज्य होकर आजाद हुआ. आबादी के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरियत भारत की है.
ताजा दौर में हिंदुस्तान में जो अच्छा महसूस होना चाहिए था. वह क्यों नहीं हो पा रहा है? हम भारतीय आत्मा में जरूरी अवयव बनाकर लोकतंत्र को इजेक्ट करना चाहते थे. वह ऊपरी आवरण बनकर रह रहा है.
तंत्र तो हुआ लोक विकसित नहीं हुआ. लोक तो पहले से ही भारत में विकसित रहा है. वह अपनी जगह मजबूती से खड़ा तो है. लेकिन उस पर धुंध छा गई है. उस पर इतनी कड़ी परतें हुकूमत की चढ़ गई हैं कि वह अपने आप को पहचानने में मुश्किल में है.
सबके बीच भारत की अलग स्थिति रही है. भारत ने जिंदगी को देखने का अलग नजरिया विकसित किया. यहां ऋषियों, चिंतकों, समाज सुधारकों को विदेशों से प्रेरणा लेने की जरूरत महसूस नहीं हुई.
मशहूर लेखक निर्मल वर्मा का यही सोचना है कि भारतीयों ने अपने अच्छे बुरे समय में जीवन को समझने की अपनी सांस्कृतिक दृष्टि विकसित कर ली थी.
उसमें सभी धर्मों के विचारों का फैलाव और प्रतिफलन देखने मिलता है. साथ साथ अलग तरह का इंसानी जज्बा और आंतरिक आनंद जिंदगी को बेहतर बनाने की कशिश लिए होता है. वह भारत की दुनिया को अमूल्य देन है. मूल्यों, सिद्धांतों, जीवन के असली मर्म को समझने, मनुष्य के हर तरह के विकास के लिए भारतीयों ने बड़ी कुर्बानी की है. वे लगातार जद्दोजहद करते रहे.
सूरमा, मसीहा, संत, जांबाज योद्धा और मनुष्यता प्रेरक बनकर किसी भी कीमत पर उन्होंने जिंदगी की विसंगतियों, पराजय, विकृतियों से समझौता नहीं किया. यही भारत होने का अर्थ है बल्कि इसे भारत तत्व कहा जाए तो बेहतर होगा.
सवाल है क्या हम खुद भटक रहे हैं? अपनी ही रोशनी से वंचित हो रहे हैं? देश को संभालने, बनाने, संवारने में पीढ़ियां बल्कि सदियां गुजर गईं. ऐसा भी नहीं है कि दुनिया में सभ्यता का पूरा श्रेय या संस्कृति को समझने की पूरी कूवत केवल भारत की रही है.
ऐसा सोचना या कहना एकांगी होगा. प्राचीन यूनानी, रोमी, चीनी संस्कृतियां और भी कई छोटे मोटे मनुष्य समूहों की बिखरती डूब गई विस्मृत सी सभ्यताएं धरती के इतिहास का जरूरी हिस्सा हैं.
भारत की जनता अजीब मनोवैज्ञानिक कशमकश में फंस गई लगती है. आजाद लोकतंत्र में सब कुछ अच्छा उपलब्ध और हासिल होने के बावजूद देश हर तरह सुखी होना क्यों नहीं महसूस कर रहा है.
राजनीति, धर्म, समाज, छात्र जीवन, महिलाएं सबमें अनावश्यक तनाव का माहौल है. ऐसा नहीं कि हिंदुस्तान ऐसा ही रहा था. इसी देश ने पूरी दुनिया को जीने का सलीका भी सिखाया.
हमारे पुरखों ने अपने अच्छे बुरे वक्त में नायाब सोच दुनिया को दिया. वह आज भी समुद्र में भटके हुए जहाज जैसे संसार को लाइट हाउस की तरह दिशा दिखाता लगता है.