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प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

नई दिल्ली | संवाददाता : दिल्ली में फैले वायु प्रदूषण को सुप्रीम कोर्ट ने जीने के मूलभूत अधिकार का गंभीर उल्लंघन बताया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय अपनी ड्यूटी निभाने में नाकाम रहे हैं.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने और वायु प्रदूषण को लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को तलब किया है. कोर्ट ने निर्देश दिया है कि अगर दिल्ली एनसीआर में कोई व्यक्ति निर्माण और तोड़ फोड़ पर लगी रोक का उल्लंघन करता पाया जाए तो उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा.

इसके साथ-साथ अदालत ने कूड़ा जलाने पर पांच हज़ार रुपये का जुर्माना करने के निर्देश जारी किये हैं. कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार से कहा है कि वो विशेषज्ञों की मदद से प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए कदम उठाएं.

अदालत ने कहा कि हर साल दिल्ली का दम घुट रहा है और हम कुछ भी कर पाने में कामयाब नहीं हो रहे हैं. ये हर साल हो रहा है और 10-15 दिन तक यही स्थिति बनी रहती है. सभ्य देशों में ऐसा नहीं होना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीने का अधिकार सबसे अहम है. ये वो तरीका नहीं है जहां हम जी सकें. केंद्र और राज्य को इसके लिए कदम उठाने चाहिए. ऐसे चलने नहीं दिया जा सकता. अब बहुत हो चुका है.

अदालत ने चिंता जताते हुये कहा कि इस शहर में जीने के लिए कोई कोना सुरक्षित नहीं है. यहां तक कि घर में भी नहीं. इसकी वजह से हम अपनी ज़िंदगी के अहम बरस गंवा रहे हैं.

अदालत ने दिल्ली सरकार से पूछा कि ऑड ईवन स्कीम के पीछे क्या तर्क है? हम डीज़ल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की बात समझ सकते हैं लेकिन लेकिन ऑड ईवन योजना का क्या मतलब है. कारों से कम वायु प्रदूषण होता है. आप ऑड ईवन से क्या हासिल कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थिति भयावह है. केंद्र और दिल्ली सरकार के तौर पर आप वायु प्रदूषण को घटाने के लिए क्या करना चाहते हैं? लोग मर रहे हैं और क्या वो ऐसे ही मरते रहेंगे?

अदालत ने कहा कि हमारी नाक के नीचे हर साल ऐसी चीजें हो रही हैं. लोगों को सलाह दी जा रही है कि वो दिल्ली न आएं या दिल्ली छोड़ दें. इसके लिए राज्य सरकार ज़िम्मेदार है. लोग उनके राज्य और पड़ोसी राज्यों में जान गंवा रहे हैं. हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे. हम हर चीज का मज़ाक बना रहे हैं.

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