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जीपी सिंह के मामले में सरकार को फिर झटका

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के 1994 बैच के आईपीएस जीपी सिंह के मामले में सरकार को एक और झटका लगा है. अब कैट के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने जीपी सिंह को नौकरी पर बहाल करने के कैट के फ़ैसले को सही ठहराया है.

गौरतलब है कि पिछले साल 20 जुलाई को जीपी सिंह को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी. इसके बाद जीपी सिंह ने इसे कैट में चुनौती दी थी. कैट ने 30 अप्रैल 2024 को अपने आदेश में जीपी सिंह को 4 सप्ताह के भीतर बहाल करने का निर्देश दिया था.

कैट के इस आदेश को केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

अब दिल्ली हाईकोर्ट ने भी कैट के आदेश को सही ठहराया है.

अदालत ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए पूरे सेवाकाल के बजाय केवल पांच साल के सेवा काल को आधार माने जाने को नियमानुसार ग़लत माना.

दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा

अदालत ने कहा कि 1.04.2016 से 05.07.2017 तक की अवधि के लिए और 06.07.2016 से 31.03.2017 तक के लिए भी जी पी सिंह को ‘10’ ग्रेडिंग दी गई थी.

इसी तरह 01.04.2017 से 27.12.2017 तक की अवधि के लिए उन्हें ‘9.5’ ग्रेडिंग दी गई और फिर 28.12.2017 से 31.03.2018 तक और 01.04.2018 से 31.03.2018 तक ‘10’ ग्रेडिंग दी गई. हालांकि, 01.11.2019 से 31.03.2019 तक की अवधि के लिए उन्हें ‘6’ की ग्रेडिंग दी गई है.

अदालत ने कहा कि यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि जीपी सिंह के साथ जिन तीन अन्य आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू की गई थी, उनके नाम किसी न किसी कारण से हटा दिए गए, लेकिन जीपी सिंह को उन अपराधों के लिए आरोपित किया गया है, जो प्रमाणित भी नहीं हैं.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यहां यह ध्यान रखना प्रासंगिक है कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने जीपी सिंह के ख़िलाफ़ दायर तीनों एफआईआर में कार्यवाही पर रोक लगा दिया गया था. लेकिन परिणाम की प्रतीक्षा किए बिना, विभागीय कार्यवाही के समापन की प्रतीक्षा किए बिना ही सरकार द्वारा उन्हें अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने का आदेश पारित किया गया. तदनुसार, कैट ने सही ढंग से देखा है कि सक्षम आपराधिक अदालत स्वतंत्र रूप से अपनी योग्यता के आधार पर आपराधिक मामले का फैसला कर सकती हैं और ऐसा करके, उसने एफआईआर की योग्यता पर टिप्पणी करने से खुद को रोक लिया है.

भूपेश सरकार में गिरफ़्तार हुए थे जीपी सिंह

एंटी करप्शन ब्यूरो के मुखिया रहे जीपी सिंह को पहले भूपेश बघेल की सरकार ने निलंबित किया, उन्हें गिरफ्तार किया गया, वे लगभग 120 दिनों तक जेल में रहे और फिर उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी.

1994 बैच के आईपीएस अधिकारी जीपी सिंह अनिवार्य सेवानिवृत्ति से पहले राज्य पुलिस अकादमी के निदेशक के पद पर कार्यरत थे. इस पद पर आने से पहले वे राज्य में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और आर्थिक अपराध ब्यूरो के प्रमुख भी थे.

जुलाई 2021 में इसी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और आर्थिक अपराध ब्यूरो ने उनके रायपुर स्थित घर समेत, पंद्रह से भी अधिक अलग-अलग जगहों पर छापेमारी की थी.

तीन दिन तक चली छापेमारी के बाद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने दावा किया कि इस छापेमारी में दर्जनों प्लॉट, गाड़ियां, बीमा के काग़ज़ात, उद्योगों में निवेश, नक़दी और सोना बरामद किया गया है.

राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था

इसके बाद पुलिस ने, गुरजिंदर पाल सिंह के घर के पीछे से बरामद डायरी और फटे हुए कुछ पन्नों को आधार बना कर उनके ख़िलाफ़ राजद्रोह का मामला दर्ज़ किया.

राजद्रोह की धाराओं के तहत दर्ज प्राथमिकी में कहा गया कि गुरजिंदर पाल सिंह द्वारा नेताओं के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणियां लिखी गई हैं और कथित रूप से साज़िश की योजनाओं के बारे में लिखा गया है.

आरोप है कि डायरी और दूसरे काग़ज़ों में राज्य के विभिन्न विधायकों और विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवारों के संबंध में गोपनीय विश्लेषण, शासकीय योजनाओं, नीतियों और सामाजिक, धार्मिक मुद्दों पर गंभीर टिप्पणियां की गई थी.

हालांकि इस मामले में जीपी सिंह ने अपने को फंसाने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर, उनके ख़िलाफ़ दर्ज सभी मामलों की जांच सीबीआई या किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराने का अनुरोध किया था.

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