शराबबंदी के लिये राधेश्याम का आमरण अनशन
बिलासपुर | डेस्क: देश भर में शराबबंदी को लेकर चल रहे प्रदर्शनों के बीच छत्तीसगढ़ के राधेश्याम शर्मा ने आमरण अनशन शुरु किया है.रायगढ़ के राध्येश्याम शर्मा ने छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में आमरण अनशन शुरू कर दिया है. आज रामनवमी 4 अप्रैल को शराब सत्याग्रह और आमरण अनशन का चौथा दिन था. राध्येश्याम शर्मा पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं और सरकार द्वारा शराब न बेचे जाएं इसके लिए जीजान से लगे हैं. शर्मा एक नागरिक के हैसियत से यह सब कर रहे हैं, विभिन्न विषयों पर जागरूकता लाने के लिए पिछले 15 वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं. राधेश्याम का मानना है कि गांव में अशांति, झगड़े और पारिवारिक कलह का मुख्य कारण शराब है.
राधेश्याम ने कहा कि सरकार, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट यह भलीभांति समझ ले कि उनका सत्याग्रह और अनशन कोई साधारण नहीं है बल्कि इसके पीछे करोड़ों लोगों और शराब पीड़ितों का आशीर्वाद और अच्छी भावना का बल है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह 2 अप्रैल को बिलासपुर आए थे उस दिन नेहरू चौक में सत्याग्रह और अनशन के लिए बनाए गए पंडाल को पुलिस द्वारा उखाड़कर फेंक दिया गया और राधेश्याम शर्मा सहित 8 अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. राधेश्याम को बलातपूर्वक अस्पताल ले जाया गया और उन्हें अकारण 5 घंटों तक बिठाए रखा. राधेश्याम शर्मा ने बताया कि अनशन अभी भी जारी है.
राधेश्याम शर्मा ने कहा कि भारतीय संविधान के अंतर्गत सरकार का निर्माण जनता के कल्याणकारी कार्य करने के लिए किया गया है, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आमजनता को शराब पिलाने और उन्हें सामाजिक और मानसिक रूप से गुलाम बनाने के लिए असामाजिक और सामाजिक रूप से वर्जित कार्य को खुद किया जा रहा है. एक अप्रैल से सार्वजनिक स्थानों पर शराब की खुलेआम बिक्री शुरू कर दी गई है. राधेश्याम शर्मा ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा शराब का विक्रय करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 का खुला उल्लंघन है. संविधान के भाग चार जो कि राज्य की नीति के निदेशक तत्व का वर्णन है, जिसके अंतर्गत अनुच्छेद 47 में नागरिकों के जीवन स्तर ऊंचा उठाने, सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने तथा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीले पेय और दवाओं के सेवन पर रोक लगाने की प्रतिबद्धता राज्य को सौंपी गई है.
राधेश्याम शर्मा के अनुसार (पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्त्वय- राज्य, अपने लोगों को पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा और राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक औषधियों के, औषधीय प्रयोजनों के भिन्न, उपयोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा. – अनुच्छेद 47, भारत का संविधान) बिहार सरकार ने संविधान के इसी अनुच्छेद का पालन करने के लिए राज्य में शराब निषेध किया है.
उन्होंने कहा कि कोई भी हो चाहे वह सरकार हो नागरिक या न्यायिक व्यवस्था, संविधान से ऊपर नहीं है. उन्होंने कहा कि नागरिकों को यह बात कब समझ में आएगी कि सरकार और सरकार क पीछे की ताकतें जनता को शराब पिलाकर गुलाम बनाए रखना चाहती हैं ताकि वे प्राकृतिक संसाधनों और राज्य की संपदा को बेच सके. छग सरकार द्वारा शराब बेचना किसी षणयंत्र का हिस्सा है. जनता को इस बारे में जागरुक रहने की रहने की जरूरत है.
राधेश्याम शर्मा ने कहा कि शराब निर्माता (माफिया) और सरकार के मध्य गुप्त समझौता हुआ है और इस पर अरबों रूपए का लेनदेन हुआ है. माफिया सरकार को शराब बेचेगी और सरकार जनता को शराब बेचेगी. अंतिम फायदा शराब माफिया और अपराधी तत्व को होगा. यह केवल षणयंत्र है और इस विषय में राज्य के नागरिकों को गुमराह करने की साजिश है. इससे न राज्य को फायदा होने वाला है और न ही जनता को. इससे केवल समाज में उपद्रव मचेगा और इसका फायदा छत्तीसगढ़ को लुटने वाले उठाएंगे. इस साधारण सी बात को जनता को समझना चाहिए. समाज में अराजकता फैले इसके पहले इस बारे में जनता को जागना होगा नहीं तो यह जहर बनकर हमारी पीढ़ी में फैल जाएगा. शराब उपलब्धता और जनता द्वारा इसका बेरोकटोक उपयोग लोकतंत्र को कमजोर बनाएगा और आम लोगों में गरीबी, बेकारी और बेरोजगारी बढ़ेगी.
एक सवाल के जवाब में कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में कोई याचिका लगाने वाले नहीं हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को चुनौती देते हुए कहा कि सरकारों द्वारा शराब की बिक्री को सुप्रीम कोर्ट का संरक्षण प्राप्त है. ऐसा प्रतीत होता है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 47 से या तो अनभिज्ञ है या फिर संविधान संरक्षण का कार्य एक दिखावा है. सुप्रीम कोर्ट को यह भलिभांति ज्ञान होना चाहिए कि शराब ने ग्रामीण सामाजिक संरचना को खोखला कर दिया है और करोड़ों को शराब की लत की वजह से गरीबी में जीने के लिए मजबूर है. सुप्रीम कोर्ट ने यदि शराब बेचना बंद नहीं कराया तो संविधान को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाएगा. क्योंकि संविधान होने और न होने से किसी तरह का कोई फर्क नहीं पड़ रहा है.