दलित विरोधी है छत्तीसगढ़ सरकार?
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ सरकार क्या दलित विरोधी है? रायपुर की डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे को निलंबित किये जाने के बाद यह सवाल सोशल मीडिया में चर्चा में बना हुआ है. वाट्सऐप और फेसबुक पर यह सवाल खड़े हो रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में आखिर दलितों को ही निशाना क्यों बनाया जा रहा है. हालांकि एक वर्ग ऐसा भी है, जो मुद्दों को जाति के चस्मे से देखे जाने के खिलाफ है.
आरोप हैं कि वर्षा डोंगरे ने जिस तरीके से सुरक्षा बलों की आलोचना की थी, उससे कहीं अधिक गंभीर टिप्पणी राज्य के कई आईएएस अधिकारी कर चुके हैं. लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. जबकि वर्षा डोंगरे को छुट्टी का बहाना बना कर सीधे निलंबित कर दिया गया.
आम आदमी पार्टी के नेता संकेत ठाकुर ने दलितों को प्रताड़ित करने के मुद्दे पर सवाल उठाया कि पहले दलित जज और अब दलित जेलर, आदिवासियों को न्याय दिलाने की खातिर निपटे. उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि छत्तीसगढ़ में 21 दलित जज बर्खास्त हो चुके है अब तक, क्या कोई सवर्ण बर्खास्त हुआ ?
मूलतः कृषि वैज्ञानिक संकेत ठाकुर ने लिखा कि आईजी साहब जो चाहे लिख दे कह दे उनका कुछ नही बिगड़ता. IAS सरे आम रिश्वत लेते पकड़ा जाये कुछ नही होता. सीबीआई जांच हो लेकिन IAS अफसर का प्रमोशन हो जाता है. मैं जातिगत विषमता के खिलाफ हूँ. किसी का पक्ष नही ले रहा. पर अब यह सोचना ही पड़ेगा कि आखिर दलित-आदिवासी अधिकारियो पर अनुशासन का डंडा आसानी से क्यों चल जाता है ?,
उनके लिखे पर भूपेंद्र सिंह ने सवाल उठाया कि मुद्दे सही तो हर बार दलित , आदिवासी और मुसलमान कह के क्यों मुद्दों को उठाना. आखिर ये सब भी तो इंसान ही हैं , अन्याय हुआ ये सरासर गलत है कतई बर्दाश्त भी नही पर जातिगत या धर्मगत होकर लड़ाई अब स्वीकार्य नहीं. भूपेंद्र ने लिखा है- एक बड़ा सच ये भी है कि बहुत से दलित अधिकारियों को भी बहुत छूट दी गयी है. मेरी जानकारी में उन अधिकारियों के खिलाफ आज सालों से बेवजह जांच लंबित है, जबकि स्पष्ट दोष प्रमाण है हमे हर पहलू को देखना होगा. तब किसी ने नही कहा है कि दलित अधिकारियों को बचाया जा रहा है. हमें इसे यही खत्म करना होगा.
कृष्ण कुमार साहु ने लिखा-जिन दलित अधिकारियों को बचाया जा रहा है, वे नेताओं के पिट्ठू हैं,वे दलित नहीं रह गए. वे दलितों के शोषण के लिए माध्यम हैं. अन्यथा सरकार उक्त दोनों ही स्थितियों में दोषी हो जाती है.
रोशन शर्मा ने लिखा- आप जैसे लोगों की वजह हम लोग पिछड़े हुए हैं. जातिगत चश्मे को बाहर निकालो. प्रतिभावान लोगों को ना जाति से मतलब है ना आरक्षण से.
इसके जवाब में कोमल हुपेंडी ने लिखा-जातिवादी विचारधारा से ऊपर उठकर हम सबको काम करना चाहिए, यह सत्य है. लेकिन इस प्रदेश में दलित और आदिवासी ही ज्यादा शोषित हैं, इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता.
प्रवीण ठाकुर ने लिखा-अगर इन्हें दलित होने के आधार पर कार्यवाही की गई है, तो क्या राज्य में ये दो ही दलित हैं या फिर आप के अनुसार इन कथित दलितों को छोड़कर (अनारक्षित) के विरुद्ध कभी कोई कार्यवाही नही हुई है. की गई कार्यवाही सही है अथवा नहीं, ये मुद्दे हो सकते हैं. पर हर बात को जाति से जोड़ देना कहां तक सही है? बहुत पुरानी घटना याद आती है. जब क्रिकेट कप्तान अजहरुद्दीन मैच फिक्सिंग में पकड़ाया तो उसने भी कहा था कि अल्पसंख्यक होने के कारण उसे फंसाया गया है. अजा अजजा ,अल्पसंख्यक होना इस देश मे कदाचार के परिणाम से बचने का बढ़िया ढाल है.