सुप्रीम कोर्ट, सीबीआई और कोलगेट
इन सभी तथ्यों की गहराई तक जाँच किये बिना सीबीआई ने निष्कर्ष निकाल लिया कि जरूर इसमें कुछ घपला और भ्रष्टाचार है क्योंकि मेरा रिवाइज्ड प्रस्ताव स्क्रीनिंग कमेटी की सिफ़ारिशों से थोड़ा हटकर था. जैसे कि मैंने पहले कहा था, स्क्रीनिंग कमेटी अंतर-मंत्रालय की सलाह मशविरा का एक मंच था, जिसके पास कोल-ब्लॉकों के आवंटन की स्वीकृति का कोई अधिकार नहीँ था. स्क्रीनिंग कमेटी में हुए विचार-विमर्श से मैं पूरी तरह अवगत था. इसलिए मुझे प्रधानमंत्री कार्यालय से प्राप्त रिप्रजेंटेशन की पुनर्परीक्षा करने के लिए मुझे इस विषय को वापस स्क्रीनिंग कमेटी के समक्ष ले जाने की जरूरत नहीँ थी.
मैं कोई कानून विशेषज्ञ नहीँ हूँ. कानून की मुझे उतनी ही जानकारी है, जितनी आईएएस ज्वाइन करने पर प्रशिक्षण अकादमी में बताई जाती है. सीबीआई निदेशक, श्री रणजीत सिन्हा, अपने सारे जीवन पुलिस अधिकारी रहे हैं. उनके पास सीबीआई में विशेष कानूनी सलाहकार भी है. मगर सीबीआई द्वारा मेरे खिलाफ दर्ज की गयी प्राथमिकी के सन्दर्भ में उनसे मेरे कुछ निम्न सवाल हैं-
1. श्री बिरला ने मुझे और प्रधानमंत्री को अपनी कंपनी के साथ हुए अन्याय के बारे में अगर रिप्रेजेंटेशन दिया तो कौन-सा गुनाह हो गया? अगर कोई नागरिक यह समझता है कि सरकार ने उसके साथ अन्याय किया है और उनके खिलाफ अपना रिप्रेजेंटेशन देता है तो क्या कानून की नजरों में वह अपराधी या षड़यंत्रकारी हो जाता है? क्या सीबीआई के पास बिरला के खिलाफ ऐसे कोई सबूत है जिससे यह जाहिर होता है कि उसने मेरे साथ मिलकर कोई साजिश रची है? अगर रची है तो वह साजिश क्या है?
2. क्या ऐसा कोई नियम या कानून है जो किसी अधिकारी को किसी मसले की पुनर्परीक्षा करने से रोकती है, जहाँ किसी नागरिक को लगता है उसके साथ अन्याय हुआ है? क्या हिंडाल्को कोई बोगस कंपनी है? क्या इस कंपनी की आर्थिक, तकनीकी दक्षता और इसके प्रोजेक्ट के बारे में कोई संदेह है. जिसके कारण वह कोल ब्लॉक के आवंटन के लिए क्वालीफाई नहीँ होती है? क्या मेरिट के आधर पर तलाबीरा-2 पर हिंडाल्को का दावा नेवेली लिग्नाइट कार्पोरेशन से कम है? क्या सीबीआई को मालूम है कि हिंडाल्को का प्रोजेक्ट जिसके लिए कोल-ब्लॉक आवंटित हुआ था, लागू हो गया है, जबकि नेवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन ने अपने पावर प्रोजेक्ट रद्द कर दिया है. क्या किसी प्रशासनिक अधिकारी द्वारा असंतुष्ट पार्टी की अर्जी पर पुनर्विचार करना अपने आप में एक षड़यंत्र और भ्रष्टाचार है? इस केस में किस जगह पर शक्ति का दुरुपयोग किया गया है?
3. सीबीआई को कहाँ से यह खबर मिली कि तलाबीरा-2 सरकारी कंपनियों के आवंटन के लिए रिजर्व रखा गया है? अगर वह सरकारी कंपनी के लिए रिजर्व रखा गया था तो हिंडाल्को ने आवेदन कैसे कर दिया? फिर यह मैटर स्क्रीनिंग कमेटी के पास क्यों आया? जबकि पब्लिक सेक्टर के लिए आरक्षित रखे गए कोल ब्लॉकों के आवंटन में स्क्रीनिंग कमेटी की कोई भूमिका ही नहीँ है. क्या इस झूठी खबर को सीबीआई ने मेरी स्वच्छ छबि को कलंकित करने के लिए प्रचारित किया?
4. सीबीआई को यह खबर कहाँ से मिली कि तलाबीरा-2 में कोयले की कम मात्रा होने के कारण नेवेली लिग्नाइट कॉर्पोरशन ने अपना प्रोजेक्ट रद्द कर दिया ? क्या सीबीआई इस बात को जानती है कि नेवेली लिग्नाइट कॉर्पोरशन ने इस परियोजना को इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि ओड़िशा सरकार ने उनसे 30% मुफ़्त बिजली माँगी? सीबीआई ने मीडिया से झूठ क्यों बोला?
5. अपनी प्रारम्भिक जाँच में सीबीआई ने षड़यंत्र और भ्रष्टाचार के नतीजे पर पहुँचने से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय से संबधित फाइलों की जाँच-पड़ताल करना उचित क्यों नहीँ समझा?
6. क्या सीबीआई को इस बात की जानकारी है कि भारत सरकार के बिजनेस रुल्स के तहत जब तक कोई पावर डेलिगेशन नहीं की गई हो, सेक्रेटरी केवल सिफारिश ही कर सकता है? निर्णय लेना तो मंत्री का काम होता है. क्या सीबीआई ने अपनी प्रारम्भिक जाँच में यह नहीँ देखा कि इस केस में निर्णय प्रधानमंत्री द्वारा लिया गया है? अगर सीबीआई को किसी षड़यंत्र अथवा भ्रष्टाचार की भनक लगी तो उसने अपनी प्राथमिकी में प्रधानमंत्री का नाम क्यों नहीँ लिया?
7. क्या सीबीआई के पास वीसा पॉवर और नवभारत के कोल ब्लॉक आवंटन में मेरी भूमिका की कोई सूचना है? अगर है तो क्या है ? और अगर नहीँ है तो सीबीआई ने बिलकुल आधारहीन और असंगत बातें जनता में क्यों फैलाई?
8. सीबीआई ने मेरे घर की तलाशी क्यों ली? मेरे सेवानिवृत्त होने के आठ साल बाद इस तलाशी से वह क्या पाना चाहते थे? क्या यह किसी भी नागरिक के निजत्व में अकारण घुसपैठ नहीँ है?
9. अगर तलाबीरा-2 को हिंडाल्को को आवंटित करना किसी भी प्रकार का फ़ेवर था तो क्या 200 दूसरी प्राइवेट पार्टियों को किया गया आवंटन अनुचित फ़ेवर नहीँ है? इन निर्णयों में शामिल हर किसी पर षड्यंत्र या भ्रष्टाचार के आरोप क्यों नहीँ लगे?
मेरे सारे कैरियर में मेरे सहकर्मियों और जिनके साथ मैंने काम किया, उनमें सदैव मेरी छबि स्वच्छ व उच्च रही है. कभी–कभी तो ऐसा भी हुआ है, जिनसे मैं मिला तक नहीँ, उन लोगों ने भी मेरी लगन और ईमानदारी की भूरि-भूरि प्रशंसा की है.
ऐसे ही एक शख्स थे, महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री श्री सुधीर मुंगन्तीवार. उन्होंने 24 सितंबर 2005 को मुझे एक पत्र लिखा, जब मैं कोयला मंत्रालय में सचिव था,“भले ही, कभी मैं आपको व्यक्तिगत रूप से नहीँ मिला हूँ, मगर मैंने आपके और आपकी सत्यनिष्ठा के बारे में बहुत कुछ सुना है. इसलिए आपके बारे में अपनी भावनाएँ व्यक्त करने के लिए यह पत्र लिख रहा हूँ. आप सिस्टम में बहुत बदलाव ला रहे हैं. मैंने कई लोगों के मुख से आपकी सत्यनिष्ठा की तारीफ सुनी है. आपने ई-ऑक्शन शुरू किया. आप राजनैतिक दबाव से प्रभावित हुए बिना जो काम कर रहे है, वह प्रशंसनीय है. हानि में डूबे कोल इंडिया लिमिटेड को उठाकर लाभकारी कंपनी में बदलने के लिए आपके प्रयासों की सफलता की हार्दिक शुभ कामनाएँ देता हूँ. आप जिस सत्य के रास्ते पर चल रहे हो, वास्तव में वह प्रशंसनीय है. यह बात सही है,सत्य कभी-कभी अपने साथ हताशा लाता है, मगर वह कभी भी हार नहीँ सकता. मेरी आपको हार्दिक शुभकामनाएँ……”
मंत्रियों और सांसदों से लगातार लड़ाई के बीच किसी अनजान व्यक्ति की ऐसी चिट्ठी मिलना, जो वो भी एक राजनेता से, सच में एक बड़ा मॉरल बूस्टर था. यह इस बात का प्रतीक है कि चहुँ ओर से पतन हो रहे हमारे राजनैतिक सिस्टम में इक्का-दुक्का ऐसे राजनेता अभी भी मौजूद हैं, जो प्रशासनिक अधिकारी की ईमानदारी और निष्पक्षता की इज्जत करते हैं.