सुप्रीम कोर्ट, सीबीआई और कोलगेट
तलबीरा-2 एवं हिंडाल्को
तलबीरा-2 एवं तलबीरा-3 एक बड़े कोल ब्लॉक के दो उप-ब्लॉक है, जिनके न ऐसे जियोग्राफिकल या जियोलोजिकल फीचर्स है, जिससे उन्हें दो अलग-अलग खदानों में वर्गीकृत किया जा सके. बहुत साल पहले उन्हें अलग-अलग ब्लॉकों में बाँट दिया गया था, जो कि पूरी तरह से अवैज्ञानिक था. तलबीरा-3 कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी महानदी कोलफील्डस लिमिटेड के पास था और तलबीरा-2 को केप्टिव यूज़ के लिए रखा गया था.
मुझे कोल-ब्लॉक का यह कृत्रिम वर्गीकरण सही नहीं लगा. इस डिवीजन का मतलब था बेरियर में बहुत सारे कोयले को व्यर्थ छोड़ देना. माइनिंग जियोलोजिस्ट की अकादमिक पृष्ठभूमि होने के कारण ये सारी चीजें मुझे आसानी से समझ में आ रही थी. कोयला मंत्रालय ज्वाइन करने के तुरंत बाद मैंने निर्देश दिए कि भविष्य में सारे कोल-ब्लॉकों की सीमा का निर्धारण केवल जियोलोजिकल एवं जियोग्राफिकल फीचर्स देखकर किया जाए. किसी भी ब्लॉक का कृत्रिम तरीके से उप-वर्गीकरण न किया जाए.
हिंडाल्को व नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन दोनों तलाबीरा-2 ब्लॉक के मजबूत दावेदार थे. दोनों की वित्तीय, तकनीकी सक्षमता तथा विश्वसनीयता के बारे में कोई संदेह नहीं था. हिंडाल्को का आवेदन पहले आया था और ओड़िशा सरकार ने इसका दृढ़ समर्थन किया था. राज्य सरकार की सिफारिशों तथा पहला आवेदक होने के कारण स्क्रीनिंग कमेटी पूरा तलाबीरा-2 ब्लॉक हिंडाल्को को आवंटित कर सकती थी. केप्टिव माइनिंग पॉलिसी कोयला क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ाने के लिए बनाई गई थी, इस ग्राउंड पर भी नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन के तलाबीरा-2 के आवेदन को ख़ारिज किया जा सकता था.
सरकारी कंपनी होने के कारण नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन को केप्टिव लिस्ट के बाहर का कोल ब्लॉक भी दिया जा सकता था. इन कारणों से तलबीरा-2 ब्लॉक पूरा का पूरा हिंडाल्को को दिया जाता तब भी मुझे अपने कार्यालय का दुरुपयोग करने अथवा भ्रटाचार के मामले में दोषी नहीँ ठहराया जा सकता था.
स्क्रीनिंग कमेटी के पास कोल ब्लॉक को आवंटन करने हेतु निर्णय लेने का अधिकार नहीँ था. यह केवल विभिन्न मंत्रालयों से सलाह लेने का मंच था, जहाँ सारे स्टेक होल्डर अपनी बात रख सकते थे. कमेटी में हुए सारे विचार-विमर्श को रिकॉर्ड किया जाता था, जिस पर चेयरमैन को अपना अंतिम निर्णय लेना होता था. कोयला मंत्रालय में स्क्रीनिंग कमेटी की सिफ़ारिशों की जांच करने के बाद कोयला मंत्री कोल ब्लॉकों के आवंटन का निर्णय लेते थे. यदि स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिशों में कुछ गलती हो गई हो तो कोयलामंत्री का यह दयित्व था कि वे निष्पक्ष व सही निर्णय लें.
राज्य सरकार की हिंडाल्को के पक्ष में दृढ़ सिफारिशों के बावजूद भी स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन को ब्लॉक आवंटित करने के निम्न कारण थे-
1. नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन कोयला मंत्रालय की अपनी कंपनी के पास बहुत पूंजी थी,किन्तु हाथ में कोई नए प्रोजेक्ट नहीँ थे. तलबीरा-2 ब्लॉक के आवंटन से नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन के लिए लाभदायक निवेश के रास्ते तुरंत खुल जाएंगे.
2. हिंडाल्को को तलाबीरा-2 आवंटित करने का अर्थ था तलाबीरा-2 और 3 को दो अलग–अलग खदानों में विभाजित करना, जिससे ब्लॉक की सीमा पर करीब 30 मिलियन टन कोयले का छूट जाना.
3. महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड और नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन दोनों ही कोयला मंत्रालय की अधीनस्थ कंपनियाँ थी, इसलिए दोनों का एक ज्वाइंट वेंचर बनाकर दोनों ब्लॉक की एक माइन बनाई जा सकती थी. इस तरह सीमा पर छूट जाने वाले कोयले को भी निकाला जा सकता था.
स्क्रीनिंग कमेटी की इन सिफारिशों के आधार पर तलाबीरा-2 को नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन को दिए जाने का प्रस्ताव प्रधानमंत्री (जब उनके पास कोयला-मंत्री का अतिरिक्त भारत था) के पास भेजा गया.
प्रधानमंत्री कार्यालय इस प्रस्ताव पर विचार कर ही रहा था कि कुमार मंगलम बिरला ने प्रधानमंत्री को एक आवेदन दिया और लिखा कि स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा तलाबीरा-2 ब्लॉक पर उनके दावे को ख़ारिज करना अनुचित है. इसलिए उन्होंने इस विषय पर पुनः विचार करने की मांग की.
ओड़िशा के मुख्यमंत्री ने भी एक पत्र लिखकर तलबीरा-2 ब्लॉक हिंडाल्को को देने की गुजारिश की. वह एनएलसी को यह ब्लॉक देने के पक्ष में नहीँ थे. उनके अनुसार नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन दूसरे राज्यों को बिजली भेजेगा और ओड़िशा में केवल प्रदूषण करेगा. इसलिए वह चाहते थे तलाबीरा-2 ब्लॉक हिंडाल्को को मिले, ताकि एक बड़े एलुमिनियम उपक्रम से राज्य को अतिरिक्त रोजगार एवं राजस्व मिलेगा और साथ ही साथ, राज्य में औद्योगिक विकास का भी काम होगा.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने इन दोनों संवादों के साथ प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने के लिए फाइलें कोयला-मंत्रालय को लौटा दी. श्री कुमार मंगल बिरला मुझे मेरे कार्यालय में मिले और वैसा ही एक रिप्रजेंटेशन मुझे भी दिया. उनका कहना था कि हिंडाल्को ने इस ब्लॉक के लिए सबसे पहले आवेदन दिया था और कानून के हिसाब से इस ब्लॉक पर उनका सबसे अधिक हक बनता है.
हिंडाल्को के दावे को इस तर्क पर ख़ारिज करना गलत है कि नेवेली लिग्नाइट कोरपोरेशन सरकारी कंपनी है, जबकि केप्टिव माइनिंग पॉलिसी कोयला खनन के क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए बनी है.
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बॉक्साइट की माइनिंग लीज राज्य सरकार द्वारा विलम्ब से अनुमोदित होने के कारण प्रोजेक्ट के पुराने लिंकेजों का इस्तेमाल नहीँ किया जा सका. कोयले की कमी के कारण सीआईएल पुराने लिंकेजों को प्रयोग में लाने की अवस्था में नहीँ था.
मैंने श्री बिरला की दलीलों को सुना उनसे कहा- “आपका पक्ष मजबूत होने के बावजूद भी कोयले के संरक्षण के मद्देनजर रखते हुए तलाबीरा-2 ब्लॉक स्वतंत्र रूप से आपको नहीँ दे सकते. यदि आप दूसरी कंपनियों के साथ प्रस्तावित ज्वाइंट वेंचर में भाग लेने के लिए तैयार हो तो इस विषय पर पुनः विचार किया जा सकता हैं.”
बिरला पहले-पहल हिचकिचाए, फिर कुछ सोचने के बाद वे प्रस्तावित ज्वाइंट वेंचर करने के प्रस्ताव के लिए सहमत हो गए. बिरला के अभ्यावेदन और ओड़िशा के मुख्यमंत्री की चिट्ठियों की अच्छी तरह परीक्षा करने के बाद मैंने अनुभव किया कि दोनों के तर्कों में कुछ दम है और इस केस पर पुनर्विचार किया जा सकता है. उपरोक्त सारे तथ्यों के साथ मैंने एक नोट बनाया और लिखा कि हिंडाल्को के आवेदन में योग्यता है, इसलिए तलाबीरा-2 और तलाबीरा-3 को मिलाकर एक बड़ी खान बनाई जाए और एमसीएल, एनएलसी और हिंडाल्को तीनों को इस खदान से अपनी अपनी पात्रता के अनुसार कोयला दिया जाए.
प्रधानमंत्री ने कोयला मंत्री की हैसियत से तलाबीरा-2 को नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन और हिंडाल्को को ज्वाइंटली आवंटित करने के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी.