छत्तीसगढ़

खामोश! जमीन अधिग्रहण होकर रहेगा

रायपुर | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ के पुसौर में एनटीपीसी के लिये न चाहते हुए भी जमीन देनी पड़ रही है. रायगढ़ जिले के पुसौर विकासखंड में एनटीपीसी के संयंत्र के लिये 66 किसानों को न चाहते हुए भी अपनी 11.756 हेक्टेयर जमीन देनी पड़ रही है. इसका कारण है कि गांव वाले परिस्थिति के आगे मजबूर हैं.

परिस्थिति ऐसी है कि विकास के नाम पर भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है. इसे जबरिया भूमि अधिग्रहण का नाम भी दिया जा सकता है. दिलचस्प बात यह है कि यह 11.756 हेक्टेयर जमीन, एनटीपीसी द्वारा अभिग्रहित की गई जमीनों से घिरी हुई है. इस प्रकार से पुसौर विकासखंड के छपोरा,बोडाछरिया,कांदागढ़,आरमुडा तथा देवलसुर्रा के 66 किसानों की 11.756 हेक्टेयर भूमि पर एनटीपीसी के लिये कब्जा कर लिया गया है.

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के पुसौर विकासखंड में एनटीपीसी का संयंत्र लगाने के लिये वहां के 9 ग्रामों के 2570 खातेदारों की 780.723 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की गई है. जमीन का अधिग्रहण महाप्रबंधक जिला व्यापार केन्द्र, रायगढ़ के नाम पर किया गया है. इसमें भी कई गड़बड़ी उजागार हुई है. एनटीपीसी के लिये अधिग्रहित की गई जमीनों के मुआवजें के भुगतान में अधिकारी तथा कर्मचारी गड़बड़ी में लिप्त पाये गयें हैं जिन पर पुलसिया तथा विभागीय कार्यवाही की जा रही है.

गौरतलब है कि रायगढ़ ज़िले के पुसौर विकासखंड के लारा में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन के 4000 मेगावॉट बिजली संयंत्र के लिये 9 गांवों की 924.334 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण शुरु हुआ और मुआवज़ा देने की प्रक्रिया शुरु हुई तो एनटीपीसी के अफसर चकरा गये. जिस ज़मीन के लिये बमुश्किल 5 लाख रुपये मुआवजा देना था, उस ज़मीन के बदले एनटीपीसी को कई करोड़ रुपये देने पड़ गये. अब इसकी जांच सीबीआई कर रही है.

ठीक इसी प्रकार का मामला कोसमपाली गांव में जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड कंपनी के लिये जमीन अधिग्रहण के समय भी सामने आया था. कोसमपाली-सारसमाल गाँव तीन तरफ़ से क्लिक करें गहरी खदानों से घिर चुका है. बाहर निकलने का सिर्फ़ एक रास्ता मौजूद है लेकिन गाँव वाले कहते हैं कि वो भी कब खदानों में बदल दिया जाए, कहा नहीं जा सकता.

छत्तीसगढ़ में यह जुमला बहुत मशहूर है कि अगर आप किसी इलाक़े में बसना चाहते हैं तो पहले पता लगा लें कि वहां ज़मीन के नीचे कहीं कोयला न हो. अब देखने में यह आ रहा है कि केवल कोयले की खदान के लिये ही नहीं बल्कि दूसरे संयंत्र लगाने के नाम पर भी जमीन का जबरिया अधिग्रहण किया जा रहा है.

सबसे हैरत की बात यह है कि निजी कंपनियों के समान ही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनटीपीसी के लिये भी उसी तरीके से जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है. जिसका सरकार समर्थन कर रही है. इसका ताजा उदाहरण रायगढ़ के पुसौर विकासखंड में 66 किसानों की जमीन के जबरिया अधिग्रहण से सामने आता है. हालांकि, सरकार का कहना है कि उन्हें भी जमीन का मुआवजा दिया जायेगा. इसकी पुष्टि छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिये पूछे गये सवाल के उत्तर से मिलती है.

इन सब के बीच पूछने को मन करता है कि यदि मेरी चीज, मैं बेचना न चाहूं तो क्या मुझे उसके लिये जबरिया मजबूर किया जा सकता है. विकास का कोई भी विरोध नहीं करता है परन्तु विकास के नाम पर पुरखों की जमीन से खदेड़े जाने कोई बर्दास्त नहीं कर सकता है. वह विद्युत संयंत्र किस काम का जो वहां बसे-बसाये लोगों को उजाड़ दे परन्तु क्या कुछ किसान मिलकर व्यवस्था का विरोध कर सकते है, उसे मजबूर कर सकते हैं कि एनटीपीसी का संयंत्र वहां न लगाया जाये.

मामला केवल छत्तीसगढ़ का नहीं है सारे देश में यही हो रहा है. कहीं रास्ता बनाने के नाम पर, कहीं बांध बनाने के नाम पर और कहीं खदान खोदने के नाम पर लोगों को उजाड़ा जा रहा है. उनके लिये मुश्किल की दीवार खड़ी की जा रही है. सिकुड़ते बाजार के बीच, प्राकृतिक संशाधनों पर कब्जा करने की रणनीति बनाई गई है. जिसमें व्यवस्था पूरी तरह से जनता के खिलाफ जा कर काम कर रही है. तभी तो कहा जा रहा है कि जमीन का अधिग्रहण होकर रहेगा.

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