बस्तर

लोकतंत्र पर नक्सली हमला

रायपुर | संवाददाता: बीते एक माह में बस्तर के बीजापुर में नक्सलियों ने भाजपा के दो स्थानीय नेताओं की हत्या कर दी है. उसके बाद से नक्सली दहशत के चलते भोपालपटनम ब्लॉक के करीब डेड़ दर्जन स्थानीय भाजपा सदस्यों ने पार्टी छोड़ दी है. उधर, खबर है कि नक्सली उसूर ब्लॉक में भी दबाव बना रहे हैं.

संकेत है कि अभी और भाजपा के लोग नक्सली दहशत के चलते पार्टी छोड़ सकते हैं. अपने से दिगर विचार रखने वालों की हत्या करना लोकतंत्र के लिये अशुभ संकेतों से भरा हुआ है.

इससे जुड़ा हुआ सवाल है कि क्या कथित नक्सली तय करेंगे कि बस्तर के किस बाशिंदे को कौन सी राजनीतिक दल का सदस्य बनना चाहिये और कौन सी पार्टी का नहीं.

बस्तर से सुरक्षा बलों के जवानों द्वारा लड़कियों तथा महिलाओँ से रेप करने की खबरें आम है. इतना ही नहीं सुरक्षा बलों पर फर्जी एनकाउंटर करने के गंभीर आरोप भी हैं. परन्तु इसके आड़ में किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता तथा स्थानीय नेता की हत्या करना, उन्हें डराना-धमकाना को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है.

पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से सत्तर के दशक में शुरु हुये नक्सली आंदोलन, जिसके लिये दावा किया जाता रहा है कि यह किसान विद्रोह है, उसका स्वरूप इतने सालों बाद बस्तर पहुंचते-पहुंचते एक अराजकतावादी मुहिम में बदल जायेगा किसने सोचा था.

लोकतंत्र में हर नागरिक को अधिकार है कि वह कोई भी मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी का सदस्य बन सकता है तथा उसके विचारों के प्रचार-प्रसार के लिये काम कर सकता है. इससे पहले नक्सलियों ने दरभा घाटी में कांग्रेस के 31 नेताओं की हत्या कर दी थी. हालांकि, उसके बाद भी न तो कांग्रेस खत्म हुई है और न ही भाजपा खत्म होगी.

सत्तर के दशक में नक्सलियों ने पश्चिम बंगाल तथा आंध्रप्रदेश में सबसे ज्यादा माकपा के कार्यकर्ताओं की हत्या की थी उसके बाद भी माकपा के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल में वामपंथियों ने तीन दशकों तक राज किया तथा फिलहाल केरल तथा त्रिपुरा में उनकी सरकार है.

किसी ने सही कहा था कि किसी की हत्या करके उसके विचारों को दबाया नहीं जा सकता है.

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