देश में सबसे गरीब है छत्तीसगढ़
रायपुर | विशेष संवाददाता: देश में सबसे ज्यादा गरीब छत्तीसगढ़ में रहते हैं. छत्तीसगढ़ की आबादी का 39.93 फीसदी गरीबी की रेखा के नीचे रहती है. देश के किसी भी अन्य राज्य में आबादी का इतना बड़ा हिस्सा गरीबी की रेखा के नीचे वास नहीं करता है. रिजर्व बैंक की मानें तो छत्तीसगढ़ की जनसंख्या में से 1 करोड़ 04 लाख 11 हजार लोग गरीबी की रेखा के नीचे रहते हैं.
छत्तीसगढ़ के गांवों की 44.61 फीसदी आबादी तथा शहरों की 24.75 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे वास करती है.
छत्तीसगढ़ के बाद दादरा नागर हवेली में 39.31 फीसदी, झारखंड में 36.96 फीसदी, मणिपुर में 36.89 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 34.67 फीसदी तथा बिहार में 34.67 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे वास करती है.
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देश में सबसे कम अंडमान निकोबार में महज 1 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे वास करती है. उसके बाद लक्षदीप में 2.77 फीसदी तथा उसके बाद गोवा में 5.09 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे वास करती है.
रिजर्व बैंक की सितंबर 2015 के आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी की रेखा के नीचे वास करने वाली आबादी का औसत 21.92 फीसदी है.
संसाधनों से भरपूर है छत्तीसगढ़
इन आंकड़ों के उलट यदि छत्तीसगढ़ में उपलब्ध संसाधनों की बात करें तो खनिज राजस्व की दृष्टि से देश में दूसरा बड़ा राज्य है. वन राजस्व की दृष्टि से तीसरा बड़ा राज्य है.
छत्तीसगढ़ राज्य के कुल क्षेत्रफल का 44 फीसदी हिस्सा बहुमूल्य वनों से परिपूर्ण है. देश के कुल खनिज उत्पादन का 16 फीसदी खनिज उत्पादन छत्तीसगढ़ में होता है.
छत्तीसगढ़ में देश का 38.11 फीसदी टिन अयस्क, 28.38 फीसदी हीरा, 18.55 फीसदी लौह अयस्क और 16.13 फीसदी कोयला, 12.42 फीसदी डोलोमाईट, 4.62 फीसदी बाक्साइट उपलब्ध है.
सत्ताधारी वर्ग के लिये विकास मायने सस्ते श्रम का दोहन
बिलासपुर के रहने वाले किसान नेता नंद कश्यप का छत्तीसगढ़ में गरीबी की संख्या पर कहना है कि यह सही है कि इस प्रदेश में खनिज और जंगलों की बहुतायत के साथ साथ कुछ बडे उद्योग भी हैं परंतु सत्ताधारी वर्ग के लिये विकास के मायने इन संसाधनों और सस्ते श्रम का दोहन रहा है. इसलिये प्राकृतिक श्रोतों से होने वाली आय कभी भी इस प्रदेश की श्रमिक जनता के बेहतरी के लिये नही लगा वरन् वह धन साधन सम्पन्न अमीरों के लिये आधारभूत ढांचा बनाने के लिये उपयोग हुआ है.
कश्यप मानते हैं कि प्रदेश मे कभी भी जनता की बेहतरी और श्रम नियोजन को सामने रखकर औद्योगीकरण और निर्माण उपक्रम खड़े नहीं किये गये वरन पूरे औद्योगीकरण के पीछे प्रदेश मे प्राप्त नैसर्गिक संसाधन हैं. इसलिये इस प्रदेश में निर्मित ऐसा कोई भी उत्पाद या उपभोग सामग्री नहीं है, जो राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है. सरकारों को इन प्राकृतिक संसाधनों से इतना राजस्व मिल जाता है कि कृषि और किसान सिर्फ वोट के साधन बने हुए है.
छत्तीसगढ़ के रहवासियों को मेहनत का वाजिब मूल्य नहीं मिलना
इस बारे में आम आदमी पार्टी के संयोजक डॉ. संकेत ठाकुर का कहना है कि इसकी मूल वजह यहाँ के बहुसंख्य किसानों और वनवासियों को उनकी मेहनत का वाजिब मूल्य नही मिल पाना है. यह आबादी प्रदेश की नैसर्गिक सम्पदाओं की सदियों से रक्षक है जिसने अपनी आजीविका को बिना प्रकृति को नुकसान पहुचायें सुनिश्चित किया है. लेकिन खेती और वनोपज को आधुनिक विकास के मॉडल में सम्मिलित नहीं करके औद्योगिक विकास को तरजीह दी गई. औद्योगीकरण के नाम पर उद्योग घरानों को प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर भारी पैसा बनाने की छूट मिली हुई है.
संकेत ठाकुर का कहना था कि राज्य सरकार ने खनिज राजस्व एवम् वन राजस्व से प्राप्त आय को वहाँ की निवासियों के आर्थिक विकास में लगाने के स्थान पर शहरी विकास में लगाना बेहतर समझा. परिणामस्वरूप वनवासी गरीब रह गये और गांव उजड़ते जा रहे हैं. शहरों की ओर पलायन जारी है.