रायपुर

अडानी को कोयला खदान देने दो सीएम मिलेंगे सोनिया से

रायपुर | संवाददाता: ख़बर है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, अडानी को एमडीओ के तहत सौंपे गये कोयला खदान के विस्तार और नए कोयला खदान में खनन शुरु करने की मांग को लेकर सोनिया गांधी से मिलने वाले हैं. हालांकि अधिकारिक रुप से इस बैठक की पुष्टि नहीं हो पाई है लेकिन कथित कोयला संकट का फर्ज़ी हवाला दे कर अशोक गहलोत आलाकमान को एक के बाद एक चिट्ठी लिखे जा रहे हैं.

पिछले कुछ महीनों से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पत्रों और मीडिया के माध्यम से राजस्थान में कोयला संकट का हवाला देकर, छत्तीसगढ़ के घने जंगल वाले हसदेव अरण्य क्षेत्र में नई कोयला खदान को शुरू करने की कोशिश में पूरी ताकत से जुटे हुए हैं.

इस सिलसिले में उन्होंने कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी से भी मुलाकात कर हस्तक्षेप की मांग की थी. अब उन्होंने एक बार पुनः पत्र लिखकर छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में संचालित परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खनन परियोजना के विस्तार एवं नए, परसा कोल ब्लाक में शीघ्र खनन शुरू करने छत्तीसगढ़ सरकार पर दवाब डालने हस्तक्षेप की मांग सोनिया गाँधी से की है.

वे अपने पत्रों में लगातार इस बात का उल्लेख कर रहे हैं कि कोयला नही मिलने से उन्हें महँगी दर पर बिजली खरीदनी पड़ रही है और इससे राजनैतिक संकट भी खड़ा हो सकता है.

दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी आदिवासियों की जांच की मांग के बाद भी परसा कोयला खदान की स्वीकृतियों पर अपनी मुहर लगाते जा रहे हैं. हालत ये है कि ICFRE की ड्राफ्ट रिपोर्ट को ही अंतिम रिपोर्ट मानने के लिए, पर्यावरण मंत्रालय की बैठक में राज्य सरकार ने अपना विशेष प्रतिनिधि भेजा और अडानी को MDO आधार पर सौंपे गए खदान की प्रक्रिया पूरी करने में, राजस्थान की मदद की.

विपक्ष में रहते हुए जिस एमडीओ को भूपेश बघेल सबसे बड़ा घोटाला बताते रहे, सत्ता में आते ही उन्होंने राज्य की खदान एमडीओ के आधार पर अडानी समूह को सौंप दी.

यहां तक कि भारतीय वन्य जीव संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि हसदेव अरण्य में नये कोयला खदानों को मंजूरी एक विनाशकारी स्थिति पैदा करेगा, जिससे निपटना असंभव होगा. लेकिन राज्य सरकार ने उस रिपोर्ट को फाइलों में बंद कर दिया.

क्या है राजस्थान के कोयला संकट की सच्चाई

राजस्थान के कोयला संकट को वहां के उर्जा मंत्री बुलाकी दास द्वारा विधानसभा में दिए गए वक्तव्य से समझा जा सकता है. दिनांक 14 सितम्बर 2021 को विधानसभा में अपने वक्तव्य में उर्जा मंत्री ने कहा कि राजस्थान विद्युत् उत्पादन निगम की इकाइयों में अगस्त 2021 में कोयले की कमी से बिजली का उत्पादन बाधित हुआ था.

उन्होंने कहा कि अगस्त सितम्बर माह में बारिश के कारण कोयले की निकासी नही होने के कारण कोयले के उत्पादन में गिरावट आई.

उस दरम्यान कोल इण्डिया की खदानों से राजस्थान उत्पादन निगम को सिर्फ 2 – 3 रेक कोयला ही मिल पा रहा था परन्तु कोयला मंत्री से चर्चा उपरांत कोल इण्डिया से कोयले की आपूर्ति पुनः बहाल हुई. वर्तमान में राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को SECL और NCL से प्रतिदिन 8 से 9 रेक कोयले की आपूर्ति हो रही है. सितम्बर माह के बाद बाद थर्मल पॉवर प्लांट की सभी इकाइयों से बिजली उत्पादन पुनः प्रारंभ हो गया.

दिनांक 7 फरवरी को राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस पार्टी के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन के कोयला संकट के सवाल पर केन्द्रीय कोयला मंत्री ने जवाब देते हुए कहा कि देश में थर्मल पॉवर प्लांटो के लिए कोई भी कोयला संकट नहीं है..

उन्होंने यह भी कहा कि वर्ष 2021 में पॉवर प्लांटो में कोयले के स्टॉक में कमी का कारण कोयले की निकासी की समस्या थी जिसे शीघ्र दूर कर लिया गया.

कोयला मंत्री के जवाब से बहुत स्पष्ट है कि पॉवर प्लांटो के लिए आवश्यक कोयला उपलब्ध है.

फिर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत क्यों बार बार कोयला संकट का माहौल बनाने में लगे हुए हैं जबकि राजस्थान के प्लांटो के लिए संचालित कोयला आपूर्ति यथावत जारी है.

छत्तीसगढ़ में राजस्थान को आवंटित खदाने

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में राजस्थान सरकार के संयुक्त उपक्रम राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को 4 कोल ब्लॉक आवंटित है. परसा ईस्ट, केते बासेन इन दोनों कोल ब्लाक में खनन योग्य कुल कोयला 452.46 मिलियन टन है, जिसमे वर्ष 2013 – 2014 से 10 मिलियन टन एवं क्षमता विस्तार के बाद वर्ष 2018 – 2019 से 15 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन हो रहा है.

इस कोल ब्लॉक के विकास और संचालन के लिए अडानी समूह के साथ MDO (माइंस डेवलपर कम आपरेटर) अनुबंध है. अडानी समूह की वेबसाइट में MDO कंपनी के कार्यो की व्याख्या के अनुरूप परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण से लेकर समस्त स्वीकृतियां हासिल करना, खदान का संचालन करना और कोयले की आपूर्ति करना शामिल है.

कुल 2700 हेक्टेयर की इस परियोजना में दो चरणों में खनन होना था जिसे इसी वर्ष राज्य व केंद्र सरकार की सहमति के उपरांत न सिर्फ बदल दिया गया बल्कि इसकी उत्पादन क्षमता भी बढ़कर 15 से 18 मिलियन टन वार्षिक कर दी गई है. इस परियोजना से सम्बंधित विस्तृत जानकारी यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं.

तीसरा कोल ब्लॉक परसा है जिसमे कुल खनन योग्य कुल रिजर्व 200.41मिलियन टन है और इसका भी MDO अनुबंध अडानी समूह के पास है. इस कोल ब्लॉक हेतु जारी भूमि अधिग्रहण और वन स्वीकृति में फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव बनाने के आरोप अडानी समूह पर लगे हैं. पिछले साल अक्टूबर में इसकी जाँच के आदेश राज्यपाल ने दिए है.

इस कोल ब्लॉक के लिए 3 गाँव विस्थापित होंगे, जिसके खिलाफ स्थानीय आदिवासी आन्दोलनरत है और किसी भी कीमत पर अपने जंगल जमीन को छोड़ने तैयार नही हैं. चौंथा कोल ब्लाक केते एक्सटेंसन है, जिसमे कुल खनन योग्य रिजर्व 333.709 मिलियन टन है और इसकी स्वीकृति की कोई भी प्रक्रिया अभी आगे नही बढ़ी है. इस कोल ब्लाक में 97 प्रतिशत क्षेत्र जंगल है.

खनन के पीछे असली मकसद कार्पोरेट मुनाफा?

वर्ष 2018 में कैरवान पत्रिका ने कवर पेज पर स्टोरी प्रकाशित की थी. आज तक इस खबर का राजस्थान सरकार और अडानी कम्पनी के द्वारा कोई भी खंडन जारी नही किया गया.

इस खबर के अनुसार मोदी सरकार के संरक्षण में अडानी समूह को करोडों रूपये का गैरकानूनी लाभ पहुंचाया जा रहा है. परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खनन परियोजना से राजस्थान को मिलने वाले कोयले के एवज में अडानी कंपनी को कोल इण्डिया की दर से प्रति टन 270 रुपए अतिरिक्त भुगतान किया जा रहा है. यह राशि खनन के सभी वर्षो में लगभग 6 हजार करोड़ है जिसे अडानी को अतिरिक्त लाभ के रूप में दिया जा रहा है.

हालाँकि इसी अनुबंध को सुप्रीम कोर्ट में चुनोती देने वाली याचिका में अडानी समूह को प्रति टन 700 रूपये अतिरिक्त मुनाफे की बात कही गई है.

दरअसल परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खदान के लिए अडानी इंटरप्राइसेस लिमिटेड (AEL) और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड का संयुक्त उपक्रम बनाया गया है जिसका नाम है परसा केते कोलरीज लिमिटेड (PKCL) हैं. इस संयुक्त उपक्रम के साथ कोयले के खनन और आपूर्ति के लिए अडानी समूह का MDO अनुबंध है. यह संयुक्त उपक्रम वर्ष 2014 में कोल गेट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पूर्व 2007 में बना था जो कोर्ट के आदेश की मंशा के विरुद्ध है.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने को गेट पर अपने आदेश में कहा था कि राज्य सरकारों को न्यूनतम दर पर कोल ब्लाक आवंटित किए गए थे ताकि नागरिको को सस्ती दर पर बिजली मिल सके, लेकिन राज्य सरकारों ने निजी कम्पनियों के साथ संयुक्त उपक्रम बनाकर उन कोल ब्लॉक को निजी कम्पनी को सौंप दिया और बाजार दर से अधिक पर उन्हीं कम्पनियों से कोयला खरीद रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कोल ब्लॉक के आवंटन के बाद संयुक्त उपक्रम पर प्रतिबन्ध लगाया था लेकिन मोदी सरकार ने इसे नए स्वरुप में MDO के रूप में क़ानूनी मान्यता दे दी.

हसदेव अरण्य में स्थित परसा और केते एक्सटेंसन कोल ब्लाक के भी अनुबंध अडानी समूह के साथ इसी तरह किए गए हैं. आश्चर्य है कि इन अनुबंधों का खुलासा स्वयं राजस्थान सरकार भी सूचना के अधिकार कानून के तहत भी नही करती. इन्हें गोपनीय दस्तावेज बताकर सार्वजनिक करने से मना कर दिया जाता है.

हसदेव अरण्य के मूल सवालों को दबाने की कोशिश

दरअसल कोयला संकट का ठीकरा छत्तीसगढ़ के सर पर फोड़कर अशोक गहलोत और खनन कम्पनी अडानी, हसदेव अरण्य क्षेत्र की कोयला खदानों की स्वीकृति हासिल करना चाहते हैं.

कोयला संकट का माहौल बनाकर वे हसदेव अरण्य क्षेत्र के उन मूल सवालों को परदा डाल देना चाहते हैं, जो आज सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नही बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाए जा रहे हैं.

हसदेव अरण्य के आदिवासियों की आजीविका, संस्कृति, रीती रिवाज और अस्तित्व, समृद्ध वन सम्पदा और उसकी जैव विविधता, वन्य प्राणियों के रहवास, जीवनदायनी हसदेव नदी और सम्पूर्ण पर्यावरण का विनाश के सवालों को अडानी के मुनाफे के सामने दफ़न करने की कोशिशों के तहत यह माहौल बनाया जा रहा है.

हसदेव अरण्य एक समृद्ध, संवेदनशील पर्यावरणीय वन क्षेत्र

उत्तर छत्तीसगढ़ के कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिले में स्थित हसदेव अरण्य क्षेत्र मध्यभारत का एक समृद्ध वन इलाका है जो मध्यप्रदेश के कान्हा के जंगलों को झारखण्ड के पलामू क्षेत्र के जंगलो से जोड़ता है.

हसदेव अरण्य का क्षेत्रफल लगभग 1700 वर्ग किलोमीटर है, जो प्रमुख रूप से साल का प्राकृतिक वन क्षेत्र है. यहाँ की जैवविविधता न सिर्फ समृद्ध है बल्कि कई महत्वपूर्ण और लुप्तप्राय वनस्पति पाई गई हैं. यह क्षेत्र कई महत्वपूर्ण वन्य प्राणियों का रहवास भी है. इस जंगल-जमीन पर यहाँ निवासरत आदिवासियों की आजीविका, संस्कृति और अस्तित्व जुडा हुआ है. इस वन क्षेत्र की वो कई पीढियों से सुरक्षा करते रहे हैं.

लाखों किसानों को इसी वन क्षेत्र से मिलता है खेती का पानी

उत्तरी छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले से निकलने वाली हसदेव नदी इसी क्षेत्र से होकर बहती है. 70 के दशक में हसदेव नदी पर पेयजल, सिचाई और उधोगिक जलापूर्ति के लिए बांध बनाया गया था जिसका नाम यहाँ की पहली महिला सांसद मिनीमाता के नाम पर रखा गया.

हसदेव अरण्य का क्षेत्र इसी मिनीमाता बांगो बांध का केचमेंट है, जिससे कोरबा, बिलासपुर और जांजगीर जिले की लगभग 4 लाख हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई होती है. ऐसा कहा जाता है कि गंभीर गरीबी से जूझते जांजगीर जिले की समृद्धि इसी बांध परियोजना के बाद शुरू हुई. बिलासपुर जिले में स्थित NTPC से लेकर कोरबा जिले का पूरा औद्योगिकरण भी इसी नदी और उस पर बने बांधों के पानी पर निर्भर है.

हाथियों का रहवास और विचरण

हसदेव अरण्य का यह समृद्ध वन क्षेत्र विशेष रूप से लगभग 400 जंगली हाथियों का रहवास और उसका माइग्रेटरी कॉरिडोर है.

पिछले साल ही हसदेव अरण्य वन्य क्षेत्र की जैव विविधता का अध्ययन करने वाली देश की दो प्रमुख संस्थान ICFRE और भारतीय वन्य जीव संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में भी इस क्षेत्र को पर्यावरणीय दृष्टि से अति संवेदनशील माना है. भारतीय वन्य जीव संस्थान ने तो हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन से गंभीर दुष्प्रभाव एवं मानव हाथी द्वन्द के विकराल होने की चेतावनी के साथ सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को खनन से मुक्त रखने की सिफारिश की है.

दरअसल छत्तीसगढ़ में आज मानव हाथी संघर्ष हाथी और मनुष्य, दोनों के लिए गंभीर समस्या बन चुका है. यह कितना विकराल है इस बात का अंदेशा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 3 वर्षो में 40 से अधिक हाथी और लगभग 200 लोग अपनी जान गँवा चुके हैं. छत्तीसगढ़ के आज 32 में से 16 जिले मानव हाथी संघर्ष की समस्या से जूझ रहे हैं.

फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव बनाकर हासिल की गईं स्वीकृतियां

जिस परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय के द्वारा 21 अक्टूबर 2021 में जारी की गई, वह खनन प्रभावित गाँव साल्ही, हरिहरपुर एवं फतेहपुर की ग्रामसभाओ के फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव पर आधारित है. इन तीनो गाँव की ग्रामसभाओं द्वारा वर्ष 2014 से खनन परियोजनाओं का सतत विरोध किया गया है लेकिन कम्पनी और प्रशासन की मिलीभगत से इन गाँव की ग्रामसभाओ के फर्जी प्रस्ताव बनाए गए.

वनाधिकार मान्यता कानून 2006 लागू होने के बाद किसी भी परियोजना के लिए वन भूमि के डायवर्सन के पूर्व वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया की समाप्ति और ग्रामसभा की लिखित सहमति आवश्यक है. परसा कोल ब्लाक के लिए कुल 614 हेक्टेयर वन भूमि भूमि के डायवर्सन हेतु कार्यालय तहसीलदार उदयपुर जिला सरगुजा ने दिनांक 5 /3 2017 को सरपंच / सचिव को पत्र भेजकर अन्नापति प्रमाण पत्र माँगा.

इस खनन से प्रभावित गाँव साल्ही, हरिहरपुर और फतेहपुर के द्वारा दो बार ग्रामसभाओं ने खनन हेतु वन भूमि के डायवर्सन के इस प्रस्ताव का विरोध किया. वाबजूद इसके कलेक्टर द्वारा बार बार ग्रामसभाएं आयोजित करवाई गईं.

ग्रामसभाओ में सतत विरोध के बाद जिला प्रशासन और कम्पनी के द्वारा ग्रामसभा की कार्यवाही पूर्ण होने के बाद ग्रामीणों की जानकारी के बिना ही अतिरिक्त प्रस्ताव उदयपुर के रेस्ट हाउस में सचिव को बुलाकर जुड़वाया गया. इसकी जानकारी होने के बाद से तीनो गाँव के ग्रामीण आदिवासी इन फर्जी प्रस्तावों को निरस्त करवाने आन्दोलनरत है.

पिछले साल अक्टूबर में आदिवासियों ने हसदेव से राजधानी रायपुर तक 300 किलोमीटर की पदयात्रा की थी. जिसके बाद राज्यपाल द्वारा इन प्रस्तावों की जाँच के लिए मुख्य सचिव को आदेशित किया गया.

अडानी समूह के लिए नियम-क़ानून को किनारे रख कर छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकार, कोयला खदानों के विस्तार और नये कोयला खदानों में खनन के लिए इतनी हड़बड़ी में हैं कि आदिवासियों के आरोपों की जांच रिपोर्ट की भी कोई प्रतीक्षा नहीं करना चाहता. हालांकि आदिवासी अपनी ज़मीन पर मजबूती से खड़े हैं और कोयला खदानों का विरोध कर रहे हैं. ऐसे में ‘देश में कोयला संकट’ का फर्ज़ी बहाना बना कर, अशोक गहलोत लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे अडानी के कोयला खनन का रास्ता साफ़ हो.

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