छत्तीसगढ़

हसदेव के आदिवासी भारत जोड़ो यात्रा में मिलेंगे राहुल गांधी से

रायपुर | संवाददाता: हसदेव अरण्य के आदिवासियों ने कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी से मिलने का फैसला किया है. इसके लिए आदिवासी जल्दी ही ‘हसदेव बचाओ, वादा निभाओ’ रैली निकालेंगे. इसी क्रम में 14 अक्टूबर को हसदेव अरण्य में जंगल बचाओ सम्मेलन का आयोजन किया गया है.

रायपुर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए घाटबर्रा के सरपंच जयनंदन पोर्ते ने कहा कि नेताओं के तमाम आश्वासन के बीच पुलिस फोर्स लगा कर पेड़ों की कटाई की गई. आदिवासियों के बीच अब भी दहशत का माहौल है.

जयनंदन पोर्ते ने कहा कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में जंगल, जमीन, आजीविका, पर्यावरण और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए हसदेव के ग्रामीण आदिवासी और हमारी ग्रामसभाएं पिछले एक दशक से आंदोलनरत हैं. 2 मार्च 2022 से हरिहरपुर में अनिश्चितकालीन धरना अनवरत जारी है.

उन्होंने कहा कि हसदेव अरण्य के सरगुजा जिले में परसा, परसा ईस्ट केते बासेन और केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक एवं कोरबा जिले में मदनपुर साउथ एवं पतुरिया गिदमुड़ी कोल ब्लॉक में ग्रामसभाओं को दरकिनार करके, केंद्र और राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की थी. इसके साथ ही परसा कोल ब्लॉक में फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव बनाकर खनन कंपनी द्वारा वन स्वीकृति हासिल की गई थी.

हसदेव अरण्य के मुनेश्वर सिंह पोर्ते ने कहा कि इस खनन के इसके खिलाफ हसदेव के आदिवासियों ने पिछले वर्ष 4 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक 300 किलोमीटर पदयात्रा करके रायपुर में राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी. राज्यपाल ने स्पष्ट कहा था कि वो पांचवी अनुसूचित क्षेत्र की प्रशासक हैं, उनके रहते हसदेव के आदिवासियों के साथ अन्याय नहीं होगा. दुखद है कि आज तक फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव की जांच तक नही हुई. पांचवी अनुसूचित क्षेत्र होने के बावजूद ग्रामसभा की सहमति लिए बिना ही भारी फोर्स की मौजूदगी में हजारों पेड़ों को काट दिया गया. आंदोलनकारी साथियों पर लगातार फर्जी मामले भी पंजीबद्ध किए जा रहे हैं .

उन्होंने कहा कि 2015 में राहुल गांधी जी ने मदनपुर की सभा में हसदेव अरण्य को बचाने का वादा किया था. यहां तक कि पिछले एक वर्ष में उन्होंने कई बार हसदेव के आंदोलन को न सिर्फ सही बताया बल्कि इसके शीघ्र समाधान की बात कही . दुखद रूप से हमे यह कहना पड़ रहा है कि हसदेव को बचाने की बात तो दूर, आज आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को कुचले जाने पर भी वे मौन हैं.

आदिवासी नेताओं ने कहा कि शायद कारपोरेट के दबाव में राहुल गांधी भी अपने सिद्धांत और वादों से पीछे हट चुके हैं. इसी साल जुलाई में छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से हसदेव अरण्य की सभी कोयला खदान को निरस्त करने का प्रस्ताव पारित किया है. लेकिन केंद्र या राज्य सरकार ने अब तक एक भी कोयला खदान को निरस्त करने की दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की.

साल्ही गांव के आनंदराम खुसरो और हरिहरपुर के मंगलसाय मरपच्ची समेत दूसरे आदिवासी नेताओं ने कहा कि हसदेव के हम समस्त आदिवासियों के पास अपने लोकतांत्रिक शांतिपूर्ण आंदोलन को जारी रखने और इसे व्यापक करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

आदिवासी नेताओं ने कहा कि हम किसी भी कीमत पर ‘हसदेव अरण्य’ और उसकी समृद्ध वन संपदा, जैव विविधता, हसदेव नदी और उससे जल से सिंचित होती लाखों हेक्टेयर किसान भाइयों की जमीनें, वन्यप्राणियों के रहवास और एक सह अस्तित्व के साथ वन पर निर्भर हमारी आजीविका, संस्कृति और हमारे अस्तित्व का विनाश होने नही देंगे. हमारा शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक सरकारें खनन परियोजना और उससे जुड़ी समस्त सहमतियों को निरस्त नहीं करतीं.

इन आदिवासी नेताओं ने 14 अक्टूबर के जंगल बचाओ आंदोलन में राज्य भर के लोगों से सहभागिता की अपील की है.

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