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शिवराज की पंचायत की सियासत

भोपाल | एजेंसी: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को विभिन्न पंचायतों में लिए गए फैसलों ने बेटियों का मामा तो बुजुर्गो का श्रवण कुमार बना दिया है, अब चौहान मुख्यमंत्री के तौर पर शुरू की गई तीसरी पारी में इससे भी आगे निकलने की तैयारी में है. यही कारण है कि एक बार फिर उन्होंने ‘पंचायतों’ की सियासत शुरू कर दी है.

राज्य के विधानसभा चुनाव में भाजपा को लगातार तीसरी जीत दिलाने में महिला मतदाताओं के साथ बुजुर्ग वर्ग की खासी अहमियत रही है. इसकी वजह उनकी योजनाओं से समाज के इन दो वर्गो की हैसियत में बदलाव आना रही है. बच्ची के जन्म से लेकर उसकी शिक्षा और शादी तक के काम में सरकार की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी ने चौहान को महिलाओं का भाई और बालिका के मामा के तौर पर पहचान दिलाई है.

आधी आबादी के लिए राज्य सरकार द्वारा पिछले कार्यकाल में शुरू की गई बेटी बचाओ योजना से लेकर मुख्यमंत्री कन्यादान योजना ने राज्य में बालिका जन्म को न केवल प्रोत्साहित किया है, बल्कि बालिकाओं में भी समाज में अपना हक हासिल करने की ललक पैदा की है. जो अब तक उनके इर्दगिर्द कहीं भी नजर नहीं आती थी.

एक तरफ चौहान ने मुख्यमंत्री के तौर पर आधी आबादी में अपनी पैठ बनाई तो दूसरी ओर उन्होंने बुजुर्गो का दिल जीतने के लिए तीर्थदर्शन योजना शुरू की. इस योजना ने चौहान को बुजुर्गो का श्रवण कुमार बना दिया है. चौहान भी मानते हैं कि उन तक इस तरह की योजनाएं शुरू करने के सुझाव सरकार द्वारा आयोजित विभिन्न वर्गो की पंचायतों के जरिए आए थे.

चौहान अपने पिछले दो कार्यकालों में विभिन्न वर्गो की 33 पंचायतें आयोजित कर चुके हैं. मुख्यमंत्री आवास पर हुई ये पंचायतें उन सभी वर्गो तक पहुंचने की कोशिश थी जो समाज का हिस्सा तो हैं मगर वे उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर रहते हैं. चौहान ने महिला पंचायत, कामकाजी महिला पंचायत, हाथ ठेला पंचायत, रिक्शा पंचायत, हम्माल पंचायत सहित अनेक पंचायत कर इन वर्गो का दिल जीतने में कामयाब रहे.

शिवराज से करीबी रखने वालों की मानें तो चौहान जाति-धर्म की राजनीति से दूर रहकर अपनी एक धर्म निरपेक्ष नेता की छवि बनाना चाहते हैं, ताकि उनकी राजनीतिक यात्रा में कट्टरता कोई रोड़ा न बने.

पिछले दो कार्यकालों में उन्होंने अपनी इसी छवि को बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो अब इसे और आगे बढ़ाने का मन बनाए हुए है. इस बात को उनके द्वारा आयोजित की जाने वाले विभिन्न वर्गो की पंचायतों से भी समझा जा सकता है. यह पंचायतें धर्म-जाति के आधार पर नहीं बल्कि काम के आधार पर हुई है.

सत्ता में तीसरी बार आने पर चौहान इस सिलसिले को और आगे बढाना चाहते हैं लिहाजा उन्होंने एक बार फिर पंचायतों के आयोजनों का दौर शुरू कर दिया है. इस कार्यकाल की पहली और कुल मिलाकर 34वीं पंचायत व्यावासयिक वाहनों के चालक-परिचालकों के लिए थी.

इस पंचायत में चौहान ने इस वर्ग की न केवल समस्याओं को समझा बल्कि उनके मन में पल रहे सपनो के हिसाब से घोषणाएं भी कर दी. चौहान ने चालक-परिचालकके सामने आने वाली समस्याओं का सिलसिलेवार ब्यौरा ऐसे दिया जैसे इन समस्याओं का उन्होंने खुद सामना किया हो.

वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया पंचायतों को शिवराज का राजनीति के क्षेत्र में विपणन (मार्केटिंग) का नया तौर तरीका मानते हैं. उनका कहना है कि इन पंचायतों के जरिए उनकी विभिन्न वर्गो, वर्णो और समूहों को जोड़ने की कोशिश है, जिसमें वे काफी हद तक सफल भी रहे हैं. यहां यह महत्वूपर्ण नहीं है कि इसका कितने लोगों को लाभ मिला, महžवपूर्ण यह है कि कितने लोगों के मन में नए सपने पले.

शिवराज की राजनीति के अंदाज ने पार्टी के भीतर उन नेताओं के सामने चुनौतियां खड़ी कर दी है, जो चौहान के बराबरी पर खड़े होने के बाद भी उनसे पीछे नजर आते है. उनकी ‘पंचायत’ की सियासत राजनीतिक कद बढ़ाने में और भी मददगार साबित हो रही है.

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