छत्तीसगढ़बस्तर

नक्सली रामन्ना से जीरम पर पूरी बातचीत

प्रश्न – पिछले दिनों आपकी पार्टी के कई कमांडरों और कैडरों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया है. ऐसा क्यों हो रहा है?
उत्तर – क्रांतिकारी संघर्ष में, खासकर दीर्घकालीन लोकयुद्ध में कई उतार-चढ़ाव होते हैं. कई कठिन दौर आते हैं. इन सबके बीचोंबीच एक क्रांतिकारी के रूप में डटे रहने के लिए पर्याप्त सैद्धांतिक और राजनीतिक चेतना व दृढ़ संकल्प बहुत जरूरी हैं. खासकर दुश्मन द्वारा लगातार जारी हमलों और मनोवैज्ञानिक युद्ध को समझकर जनता और मा-ले-मा सिद्धांत के ऊपर अटूट विश्वास के साथ आगे बढ़ना जरूरी होता है. इसमें कमी रह जाने से व्यक्तियों का पतन होना लाजिमी है. हम समझते हैं कि हाल में दुश्मन के सामने सरेंडर कर चुके हमारे चंद साथियों में यह एक मुख्य कमी के रूप में रही थी.

भारत की क्रांति आज कई चुनौतियों का सामना करते हुए एक कठिन दौर से गुजर रही है. दुश्मन अपना सारा जोर लगाकर सैन्य हमले के साथ-साथ भारी दुष्प्रचार अभियान भी चला रहा है. कार्पोरेट मीडिया का खूब इस्तेमाल कर रहा है. जहरीली साम्राज्यवादी संस्कृति की घुसपैठ दूर-दराज के आदिवासी इलाकों तक में धड़ल्ले से हो रही है. इस सबका प्रभाव हमारे कैडरों पर भी है. इस पर हमें चैकन्ना रहकर दुश्मन की चालों को पराजित करने की जरूरत है. वैचारिक शिक्षा का स्तर समूचे कतारों में बढ़ाने की जरूरत है.

प्रश्न – वो लोग कह रहे हैं कि आपकी पार्टी के अंदर भेदभाव है और महिलाओं का शोषण किया जाता है?
उत्तर – क्रांतिकारी संघर्ष का मूल मकसद ही हर प्रकार के भेदभाव और शोषण को खत्म करना है. दशकों से जारी संघर्ष की बदौलत जनता ने इस दिशा में कई उपलब्धियां हासिल कीं. महिलाओं पर शोषण और उत्पीड़न के मामलों में उल्लेखनीय कमी आई है. ये ऐसे तथ्य हैं जिन्हें कोई झुठला नहीं सकता. सभी को पता है कि आत्मसमर्पण करने वाले पुलिस द्वारा सिखाई-पढ़ाई गई बातों को ही दुहरा रहे हैं. हमारे आन्दोलन का राजनीतिक और वैचारिक तौर पर मुकाबला करने में नाकाम शासक वर्ग ब्रिटिश वालों से विरासत में मिली ‘फूट डालो और राज करो’ की दरिंदगी भरी नीति पर चलते हुए हमारी पार्टी पर भेदभाव और महिला शोषण के झूठे आरोप गढ़ रहे हैं. इस पर कोई भी यकीन नहीं करेगा.

प्रश्न – क्या आप लोग अपने कैडरों की जबरन नसबंदी करवाते हैं?
उत्तर – जब किसी को जबरन या उसकी इच्छा के खिलाफ पार्टी में जोड़ना ही संभव नहीं है तो जबरन नसबंदी करवाने का सवाल कहां से पैदा होगा? इसलिए यह आरोप न सिर्फ बेबुनियाद व बेतुका है, बल्कि हास्यास्पद भी है.

हालांकि यह बात सच है कि हमारी पार्टी में कार्यरत अधिकांश जोड़े बच्चा पैदा नहीं करने का फैसला ले रहे हैं. मौजूदा युद्ध की परिस्थितियों और व्यावहारिक दिक्कतों को देखते हुए यह फैसला उचित भी है. कम्युनिस्ट आंदोलन के इतिहास में यह कोई नई बात भी नहीं है. शोषणविहीन व समतामूलक समाज के निर्माण का बीड़ा उठाकर निस्वार्थ रूप से काम करने वाले कामरेडों का इस तरह बच्चे पैदा नहीं करने का निर्णय लेना पार्टी में ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए भी एक उच्च आदर्श है.
प्रश्न – अबूझमाड़ में भारतीय सेना की प्रस्तावित प्रशिक्षण शाला का आप विरोध क्यों कर रहे हैं?
उत्तर – माड़ में भारतीय सेना की प्रस्तावित प्रशिक्षण शाला का विरोध हर भारतवासी को करना चाहिए. हमारी पार्टी के नेतृत्व में जारी जनयुद्ध को खत्म करने के उद्देश्य से शोषक शासक वर्गों ने आपरेशन ग्रीनहंट के नाम से भारी दमन अभियान छेड़ रखा है. इसके तहत भारतीय सेना को उतारने की योजना भी है. इसकी पूर्व तैयारियों के रूप में ‘प्रशिक्षण’ के बहाने सेना को यहां तैनात किया जा रहा है. अगर माड़ में 750 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र सेना के प्रस्तावित प्रशिक्षण शिविर के लिए आवंटित किया जाता है तो माड़ की जनता का, खासकर प्राचीनतम जनजातियों में से एक माड़िया समुदाय का खात्मा हो जाना तय है. सेना का विरोध इसलिए भी करना जरूरी है क्योंकि यहां कोई विदेशी ताकत तो नहीं है जिसके खिलाफ जंग लड़ी जाए. आज कश्मीर और पूर्वोत्तर क्षेत्रों के अनुभव हमारे सामने हैं. वहां पर सेना क्या भूमिका निभा रही है सबको पता है. इसलिए हमारी स्पेशल जोनल कमेटी देश की तमाम जनता से यह अपील करती है कि वह सरकार से यह कदम वापस लेने की मांग करे.

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