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ओह, ये ही होते हैं पत्रकार !

पत्रकारिता वाया जगदलपुर
इसके बाद पत्रकारिता के सिलसिले में जगदलपुर आने-जाने का क्रम भी शुरू हो गया. शाम को निकलता, देर रात वाली बस में वापस लौटता. उस दौरान पुराना बस स्टैंड हमारा अड्डा हुआ करता था. बस्तर किरण के दफ्तर में भाई प्रदीप चौहान, केवल कृष्ण से अक्सर मुलाकात होती. बस्तर की पत्रकारिता का पहला पाठ मैंने जगदलपुर पुराना बस स्टैंड से ही पढ़ा. वहां कई तरह के पत्रकारी प्राणियों से मुलाकात होती. कई खट्टी-मीठी बातें आज भी याद हैं. जिक्र के लायक नहीं समझता. उसी दौर में कई घटनाएं एक साथ हुईं थीं. 1992 में बाबरी मस्जिद ढहने के बाद पटवा सरकार चली गई. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीती. क्षेत्र से कांग्रेस को विधायक मिला.

उसी दौर में नवभास्कर से दैनिक भास्कर होने के बाद उसके लिए अच्छे ग्रामीण एजेंट पत्रकार ढूंढे जाने लगे. मेरे पास भी ऐसा ही अवसर लेकर पहुंचे संजय सवाई. मुलाकात हुई और मैंने एजेंसी लेने के लिए मना कर दिया. उन्होंने अपनी तनख्वाह के पैसे से रसीद काटी और एजेंसी चालू कर दी. मैंने अखबार को नहीं बांटने का फैसला किया. दैनिक भास्कर के बंडल गायकोठा में डाल दिए. पर उनके रिश्ता बना रहा. जो आज तक कायम है.

मुझे नहीं पता तब जगदलपुर में पत्रकारिता में क्या राजनीति होती थी? पर इतना जरूर लगा कि आप के नाम के साथ अखबार में जो रूतबा पहुंचता है, उस रूतबे को बनाए रखने और बचाए रखने के लिए ही राजनीति होती है. संजय सवाई ही वह व्यक्ति थे जिनके कारण बाहरी खबरों को लिखने का सिलसिला शुरू किया. वे बाहर से तस्वीरें ले आते और बताते फलां-फलां बातें हैं. उसे खबर के रूप में मैं लिख देता. इससे फरक यह पड़ा कि मैं अब खुद को पत्रकार समझने लगा था.

यही वह दौर है, जब भिलाई से एक युवक पवन दुबे को जगदलपुर देशबंधु कार्यालय में अटैच किया गया. दुबला-पतला-सा लड़का बाहर वाली टेबल पर बैठता था. दूर-दराज से पहुंचने वाले एजेंटों से चर्चा और प्रोत्साहन के लिए शायद भेजा गया था. अखबारी राजनीति तो पता नहीं कि इस घटनाक्रम के पीछे बंशीलाल शर्मा से मुक्ति पाने देशबंधु की कवायद थी या जगदलपुर पर ज्यादा ध्यान देने की कोशिश.

खैर, बतौर तोकापाल एजेंट मेरी पवन दुबे से मुलाकात हुई. रिश्ता गहराने लगा. पवन बताते कि यहां एजेंसी में भारी दिक्कत है. वे अखबार नियमित बंटवाने की कोशिश करते. पुराने एजेंटों ने साथ छोड़ दिया. उन्होंने नए एजेंट बनाए. मजेदार बात तो यह है कि उस दौर में भी अखबार बांटने का काम कठिन था. हॉकर नहीं मिलते. रायपुर से उन्होंने हॉकर बुलवाए.

यूनियन बैंक के पीछे देशबंधु के दफ्तर में ही पवन रहते. वहां रात के समय हॉकर खाट पर सोता और मैं और पवन दुबे जमीन पर सो जाते. ऐसा कुछ समय तक चला. यानी पवन दुबे के साथ जगदलपुर की पत्रकारिता में मेरी दखल शुरू होती गई. पता नहीं कौन किसे यूज कर रहा था. पर मुझे मजा तो आने लगा था.

रिपोर्टिंग
इसी बीच दंडकारण्य समाचार के प्रधान संपादक तुषार कांति बोस जी से पल्लव घोष ने मुलाकात करवाई. दंडकारण्य समाचार की एजेंसी तोकापाल में चलने लगी थी. दो अखबार मेरी एजेंसी के माध्यम से बांटे जाते थे एक देशबंधु और दूसरा दंडकारण्य समाचार. इसकी भी एक बड़ी वजह यह थी कि पवन दुबे अपने लिए जगदलपुर में संघर्ष कर रहे थे और मैं तो था एक एजेंट ही!

इसी बीच एक-दो घटनाक्रम ऐसे हुए कि जिसकी रिपोर्टिंग के लिए मैं तोकापाल से बाहर निकला. खबरें दंडकारण्य समाचार में प्रकाशित हुईं. एक थी कुकानार थाने में एक महिला बोदेबाई के साथ बलात्कार का. दंडकारण्य समाचार ने कुछ कारणों से बाई लाइन समाचार प्रकाशित करना बंद कर दिया था. पर इसकी शुरूआत हुई ‘कुकानार की करुण कहानी संबंधितों की जुबानी’ इसे बाई लाइन छापा गया.

कुकानार थाने के थानेदार समेत 6 पुलिस कर्मियों को संस्पेंड किया गया. इसके बाद मेरा हौसला बढ़ता गया. जिस दिन इस खबर को लेकर मैं पहुंचा तब तुषारकांति बोस जी ने कहा ‘अब अपनी मां से पैसे मत मांगना, जब भी जरूरत पड़े तो मुझसे लेना.’ मैंने भी तपाक से कहा अभी 700 रुपए चाहिए. उन्होंने जेब से निकाले और दे दिए. यही मेरी कमर्शियल पत्रकारिता का प्रारब्ध था.

इसी बीच कई खबरें दंडकारण्य समाचार में प्रकाशित हुईं. जिसने ख्याति दिलाई. एक मामला था किलेपाल में एक चिकित्सक द्वारा पोस्टमार्टम के लिए 200 रुपए की मांग करने का. नहीं देने पर पोस्टमार्टम नहीं करने और लौट आने को लेकर था. इस खबर को दंडकारण्य समाचार ने प्रकाशित किया. दूसरे दिन संपादकीय प्रकाशित हुई. मामले में एफआईआर दर्ज हुई. बड़ी तेज कार्रवाई हुई थी. चिकित्सक अपना पक्ष बताने के लिए रात के अंधेरे में तोकापाल पहुंचे. मैं अवाक रह गया. जिनके खिलाफ मेरी खबर छपी थी वह मेरे नजदीकी दोस्त के बड़े भाई थे! पर मैंने उनसे कहा कि अब कुछ नहीं हो सकता भैय्या. जो होना था वह तो हो ही चुका था. बाकि मामला कोर्ट से ही निपटना था.

रोचक समाचार में एक और यह भी था- तोकापाल में गागरी बाई नामक एक वृद्धा की भूख से मौत की खबर छपी थी. दिग्विजय सिंह की सरकार कठघरे में थी. विधानसभा में मामला काफी तूल पकड़ चुका था. भारतीय जनता पार्टी ने इस मामले को अपने हाथ में ले लिया था. तब गागरी बाई की दुबारा पोस्टमार्टम का दबाव बना. जिसकी रिपार्ट विधानसभा में प्रस्तुत करनी थी. पोस्टमार्टम के दिन आज के भाजपा के दिग्गज नेता अनिल शर्मा, शरद अवस्थी, शिवनारायण पांडे, सुधीर पांडे, शेष नारायण तिवारी और मनीष गुप्ता (अब ये नवभारत के जगदलपुर ब्यूरो हैं) आदि सभी मौजूद थे. गागरी की लाश को निकाला गया. दस दिन पुरानी लाश से बदबू आने लगी थी. सभी टकटकी लगाकर देख रहे थे. मैं भी!

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