अदालत के फैसले से निराश जकिया जाफरी
अहमदाबाद | समाचार डेस्क: गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड पर अदालत के फैसले से जकिया जाफरी निराश है. जकिया जाफरी ने कहा कि वह अपने पति की जघन्य हत्या की गवाह रही हैं. उन्होंने कहा, “उन्होंने उन्हें निर्वस्त्र कर दिया. उनके हाथ काट दिए और सड़क पर जिंदा जला दिया. ऐसी जघन्य हत्या की क्या यही सजा है?”
न्याय के लिए उच्च न्यायालय जाने का संकेत देते हुए जकिया ने कहा कि अगले कदम के लिए वह अपने वकील से बात करेंगी. वहीं नागरिक अधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा कि यह कमजोर फैसला है और इसके खिलाफ अपील की जाएगी.
गुजरात में 2002 में हुए दंगे के दौरान गुलबर्ग सोसाइटी में 69 लोगों की हत्या के लिए 14 साल बाद दोषी ठहराए गए 24 लोगों में से 11 को एक स्थानीय अदालत ने शुक्रवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. इसके अलावा अदालत ने एक दोषी को 10 साल और 12 अन्य दोषियों को सात-सात साल कारावास की सजा सुनाई है.
विशेष अदालत द्वारा दोषियों को सुनाई गई सजा से जकिया जाफरी निराश हैं. जकिया कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी हैं, जिनकी 28 फरवरी, 2002 को गुलबर्ग दंगे के दौरान हत्या कर दी गई थी.
विशेष जांच दल की विशेष अदालत के न्यायाधीश पी.बी. देसाई ने खचाखच भरे अदालत कक्ष में सजा सुनाते हुए गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार कांड को ‘नागरिक समाज के इतिहास में सबसे काला दिन’ बताया.
उन्होंने अभियोजन पक्ष के उस अनुरोध को हालांकि खारिज कर दिया, जिसमें मामले को ‘जघन्यतम’ की श्रेणी में रखने के लिए कहा गया था.
देसाई ने दोषियों को मृत्युदंड देने से इनकार कर दिया, जिसकी अभियोजन पक्ष एवं पीड़ितों के वकीलों ने मांग की थी. अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया था कि दंगे में महिलाओं और बच्चों को भी नहीं बख्शा गया, जो पूरी तरह निर्दोष थे.
देसाई ने यह भी कहा कि वह फैसले में यह नहीं लिखेंगे कि आजीवन कारावास की सजा पाने वालों को उनकी आखिरी सांस तक जेल में रखा जाए.
सरकार चाहे तो आजीवन कारावास को 14 साल बाद घटा सकती है, लेकिन देसाई ने सरकार से अपील की कि इस प्रावधान का उपयोग न किया जाए.
अदालत इससे पहले अपने फैसले में इस मामले में षड्यंत्र की कहानी को खारिज कर चुकी है.
आजीवन कारावास की सजा पाने वाले सभी 11 हत्या के दोषी हैं, जबकि 10 साल कारावास की सजा पाने वाला व्यक्ति हत्या की कोशिश का दोषी है. विश्व हिंदू परिषद के नेता अतुल वैद्य सहित 12 आरोपियों को दंगा व आगजनी का दोषी पाया गया है. उन्हें सात-सात साल कारावास की सजा सुनाई गई है.
उल्लेखनीय है कि 28 फरवरी, 2002 को लगभग 20-25 हजार हथियारबंद लोगों की भीड़ ने गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी पर हमला बोल दिया और कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित सोसायटी के 69 बाशिंदों को मौत के घाट उतार दिया था. सोसाइटी में मुस्लिम समुदाय के लोग रहते थे.
गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार कांड के एक दिन पहले गोधरा के पास साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक कोच को आग लगाए जाने की वीभत्स घटना घटी थी, जिसमें 59 हिंदू जिंदा जल गए थे, जिनमें से अधिकांश विहिप समर्थक थे.
अदालत ने दो जून को 60 आरोपियों में से 24 को दोषी ठहराया था, जबकि 36 को निर्दोष पाया था.
आजीवन कारावास पाने वालों में कैलाश लालचंद धोबी, योगेंद्र सिंह उर्फ लालू सिंह शेखावत, जयेश कुमार उर्फ गब्बर जिगर, कृष्ण कुमार उर्फ कृष्ण मुन्नालाल, जयेश रामजी परमार, राजू उर्फ मामू कनियो, नरेन सीताराम टैंक, लखन सिंह उर्फ लखियो, भरत उर्फ भरत तेली शीतल प्रसाद, विहिप के भरत लक्ष्मण सिंह राजपूत और दिनेश प्रभुदास शर्मा शामिल हैं.
मंगीलाल धूपचंद जैन को 10 साल कारावास की सजा सुनाई गई है.
जिन 12 लोगों को सात साल की सजा सुनाई गई है, उनमें सुरेंद्र उर्फ वकील दिग्विजय सिंह चौहान, दिलीप उर्फ कालू चतुरभाई परमार, संदीप उर्फ सोनू राम प्रकाश मेहरा, मुकेश पुखराज सांखला, अंबेश कांतिलाल जिगर, प्रकाश उर्फ काली खेंगारजी पढियार, मनीष प्रभुलाल जैन, धर्मेश प्रह्लादभाई शुक्ला, कपिल देवनारायण उर्फ मुन्नाभाई मिश्रा, सुरेश उर्फ काली दहयाभाई धोबी, विहिप के अतुल इंद्रवर्धन वैद्य एवं बाबूभाई हस्तीमल मारवाड़ी शामिल हैं.
गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार मामले के घटनाक्रम
फरवरी 2002 : गुजरात दंगों के दौरान हिन्दुओं की भीड़ ने अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला बोला, जिसमें 69 लोग मारे गए. मरनेवालों में सांसद एहसान जाफरी भी थे.
नवंबर 2007 : गुजरात उच्च न्यायालय ने एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी, जिसमें अदालत से तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 62 अन्य लोगों के खिलाफ गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार में कथित संलिप्तता को लेकर पुलिस को शिकायत दर्ज करने का निर्देश देने की अपील की गई थी.
मार्च 2008 : सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार को निर्देश दिया कि वह एक विशेष जांच दल का गठन कर गोधरा कांड और उसके बाद हुए 14 सांप्रदायिक दंगों की जांच करे. एसआईटी को गोधरा, सरदारपुरा, गुलबर्ग सोसाइटी, ओडे, नरोदा गांव, नरोदा पाटिया, दिपला दरवाजा और एक भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक की हत्या की जांच करने को कहा गया.
अगस्त 2010 : सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष जांच दल को जकिया जाफरी की शिकायत पर गुजरात में 2002 में हुए दंगों में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 62 अन्य के खिलाफ जांच करने की अनुमति दी.
मार्च 2010 : इस मामले की सुनवाई रुक गई, क्योंकि विशेष अभियोजक और उनके सहयोगी ने निचली अदालत के न्यायाधीश पर पक्षपात का आरोप लगाया और एसआईटी पर भी असहयोग का आरोप लगाया.
मार्च 2011 : गुजरात के पुलिस उपमहानिरीक्षक संजीव भट्ट ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एसआईटी के सामने उपस्थित होकर 2002 के दंगों के दौरान मोदी के कथित विवादास्पद आदेश का खुलासा किया.
फरवरी 2012 : एसआईटी की समापन रपट में कहा गया कि उसे नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई ‘अभियोजन चलाने लायक सबूत’ नहीं मिला. नरेंद्र मोदी जकिया जाफरी और सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस द्वारा दायर शिकायत में नामित किए गए 62 लोगों में से थे.
मार्च 2012 : अहमदाबाद की महानगर अदालत ने जकिया जाफरी की एसआईटी रपट को सार्वजनिक करने की मांग खारिज कर दी.
दिसंबर 2013 : अहमदाबाद की महानगर अदालत ने जकिया जाफरी की एसआईटी की समापन रपट, जिसमें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई थी, के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी.
दिसंबर 2013 : अहमदाबाद की निचली अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एसआईटी के प्रमुख आर. के. राधवन ने कहा कि एसआईटी की रपट पर न्यायालय ने मुहर लगाई है.
नबंवर 2014 : गुलबर्ग सोसाइटी मामले में सर्वोच्च न्यायालय के सुनवाई तीन महीने में पूरी करने के निर्देश के बाद निचली अदालत में फिर सुनवाई शुरू हुई.
छह अगस्त, 2015 : सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई के लिए तीन महीने का और वक्त दिया.
दो जून, 2016 : विशेष अदालत ने 24 आरोपियों को दोषी करार दिया और 36 अन्य को बरी कर दिया.
17 जून, 2016 : विशेष एसआईटी अदालत ने 24 दोषियों में से 11 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, एक व्यक्ति को 10 साल और 12 अन्य को सात साल कारावास की सजा सुनाई.