संगीत के बिना जग नीरस : चौरसिया
रायपुर | एजेंसी: विख्यात बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का कहना है कि संगीत दुनिया की वह अनुपम कृति है जिसके बिना जग सूना व नीरस है. छत्तीसगढ़ के बेमेतरा में आयोजित स्पीक मैके के कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए थे.
चौरसिया ने कहा कि यदि जीवन में सरसता और सहजता चाहिए तो गीत-संगीत के समीप पहुंचें, जीवन स्वमेव सरल हो जाएगा. आज हालांकि परिस्थिति थोड़ी जटिल और संक्रमण की है, फिर भी अगर हम सजग होकर अपनी कला और संस्कृति के संबंध में चिंतन करें तो कदम स्वाभाविक रूप से उस ओर बढ़ चलेंगे.
उन्होंने कहा कि अब घराने का दौर खत्म हो चुका है, अब तो हर व्यक्ति के अपने संगीत की अलग पहचान है. पखावज जैसे पुराने वाद्य गायब हो गए हैं, लाने ले जाने की असुविधा की वजह से वीणा का दौर भी फीका पड़ रहा है, लेकिन जो गायब हो गए हैं उनके बारे में चर्चा करने से बेहतर है, जो मौजूद हैं उस संगीत का आनंद लीजिए.
उनका मानना है की संगीत फिल्मी हो या फिर शास्त्रीय आखिर है तो संगीत ही. मुझे दोनों तरह के संगीत से परहेज नहीं है. अगर फिल्मों के माध्यम से भी मेरी बांसुरी लोगों के दिलों तक पहुंचे तो इसमें क्या बुराई है. मैं तो सिर्फ अधिक से अधिक लोगों के दिलों तक पहुंचना चाहता हूं. हालांकि व्यस्तता की वजह से अब फिल्मों में संगीत देने का समय नहीं है.
उन्होंने कहा कि मैं एक ऐसा वाद्य बजाता हूं जिसे ट्यून नहीं किया जा सकता, इसलिए परफॉर्मेंस के पहले मुझे खुद को ट्यून करना होता है. मेरे लिए यह ईश्वर की आराधना की तरह है, लेकिन स्कूलों में संगीत नहीं पढ़ाया जा सकता, क्योंकि भारतीय संगीत में नोट्स नहीं होते, इसे साधना से और गुरु की संगत में उन्हें रियाज करते देखते हुए उनके बताए अध्याय को समझकर ही सीखा जा सकता है.
उन्होंने बताया कि मैं ऐसे परिवार से आता हूं जहां कुश्ती करना आवश्यक था. मेरे पिता भी पहलवान थे, बचपन में पिताजी जब मुझे अखाड़े में जाने के लिए कहते, तो मेरा बिल्कुल मन नहीं होता था. मैं कभी भी कुश्ती नहीं करना चाहता था, लेकिन मजबूरी थी इसलिए मैंने भी कुश्ती सीखी.
आज महसूस करता हूं कि अगर कुश्ती के लिए शारीरिक श्रम करके शरीर को मजबूत नहीं बनाया होता तो शायद संगीत में इतनी मेहनत नहीं कर पाता. बांसुरी वादन के लिए कठिन परिश्रम करते हुए मेरी शारीरिक क्षमता ही काम आई. बच्चा चाहे किसी भी फील्ड में जाए, बचपन में शारीरिक मेहनत बेहद जरूरी है.
अन्नपूर्णा देवी से संगीत की शिक्षा लेने वाले पंडित चौरसिया ने कहा कि आज एक ओर पेरेंट्स बिजनेस माइंडेड हो गए हैं और दूसरी ओर वे पढ़ाने के बाद बेटियों की शादी करने की जल्दबाजी में रहते हैं. यही कारण है कि महिला वादकों की संख्या कम हो गई है.
पढ़ाई जरूरी है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि बच्चे की मर्जी ना हो तब भी उसे वह प्रोफेशन चुनने पर मजबूर किया जाए जिसमें ज्यादा पैसे मिल सके. हमें यह भी समझना होगा कि अगर लड़का बिना शादी किए लंबे समय तक रह सकता है, तो क्या यह जरूरी है कि लड़कियां शादी कर ही लें.