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नया आयाम देते थे मन्ना डे

नई दिल्ली | एजेंसी: महान पार्श्र्व गायक मन्ना डे की शास्त्रीय संगीत में रुचि और पसंद उनके फिल्मी कैरियर के लिए अभिशाप भी साबित हो सकती थी, लेकिन दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित डे को उनकी बहुमुखी और प्रेम गीतों की मर्दानी शैली की गायिकी के लिए जाना जाएगा.

डे ने अपने लचीले और बहुआयामी गायन का परिचय ‘आजा सनम मधुर चांदनी में हम’, ‘चुनरी संभाल गोरी उड़ी चली जाए रे’, ‘जिंदगी कैसी है पहेली हाय’ और ‘चलत मुसाफिर मोह लियो रे’ जैसे मशहूर और लोकप्रिय गानों में दिया.

उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दुनिया के सामने लाने का श्रेय संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन को भी जाता है, जिन्होंने उनसे अलग-अलग शैली के गाने गवाए.

शुरुआत में शास्त्रीय गायक के रूप में पहचाने जाने वाले डे को अपने समकालीन गायकों, पार्श्र्व गायकों जितनी शोहरत और पहचान नहीं मिली, इसके बावजूद उन्होंने अपने पूरे करियर में 3,500 से ज्यादा गाने गाए. कला और संस्कृति के क्षेत्र में उन्हें कई सारे सम्मानों से भी नवाजा गया.

डे ने अपनी जीवनी ‘जीबोनेर जोलशाघोरे’ अंग्रेजी में ‘मेमोरीज कम्स अलाईव’ में संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन का आभार जताते हुए लिखा है, “उन्हें विश्वास था कि रोमांटिक गीतों में मेरी मर्दाना आवाज श्रोताओं का ध्यान खींचने और उनका दिल जीतने में कामयाब होगी.”

उन्होंने लिखा है, “मैं खास तौर से शंकरजी का आभारी हूं. उनकी सरपरस्ती न मिलती, तो शायद मैं कामयाबी की उस ऊंचाई को नहीं छू पाता. वही एक व्यक्ति थे, जिन्हें पता था कि कैसे मेरे अंदर से बेहतर गायक को बाहर लाना है.”

मन्ना डे शंकर-जयकिशन के आभारी होने के साथ अभिनेता राज कपूर के भी शुक्रगुजार हैं, जिन्हें महसूस हुआ कि उनकी गायकी और आवाज में सचमुच दम है.

डे ने एक बार एक साक्षात्कार में कहा था, “मैं राज कपूर को फिल्म क्षेत्र का एक आइकन मानता था. वही हैं, जिन्होंने मुझे ‘प्यार हुआ, इकरार हुआ’ और ‘ये रात भीगी भीगी’ जैसे गीत गाने का अवसर दिया.”

उन्होंने कहा, “लोगों को लगता था कि मन्ना डे और रोमांटिक गाने, असंभव है. लेकिन मैंने यह भी साबित कर के दिखाया.”

शंकर-जयकिशन, मन्ना डे और राज कपूर की टीम ने कई सारे मशहूर और लोकप्रिय गीत दिए हैं. इनमें ‘तेरे बिना आग ये चांदनी’, ‘मुड़ मुड़ के न देख’ ‘ऐ भाई जरा देख के चलो’ और ‘यशोमती मईया से बोले नंदलाला’ कुछ प्रमुख गीत हैं.

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