रायपुर सर्वाधिक प्रदूषित शहर: WHO
रायपुर | जेके कर: छत्तीसगढ़ का रायपुर दुनिया का सातवां सबसे प्रदूषित शहर है. गुरुवार को जारी विश्व-स्वास्थ्य-संगठन की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. इससे पहले जनवरी 2016 में भारत के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख किया गया था कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से है. यह वही रायपुर है जो जल्द ही देश के मानचित्र में स्मार्ट शहर के रूप में उभरकर आने वाला है.
विश्व-स्वास्थ्य-संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया के टाप 10 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में भारत के चार शहर ग्वालियर, इलाहाबाद, पटना तथा रायपुर शामिल हैं. इऩमें ग्वालियर तथा इलाहाबाद क्रमशः दूसरे तथा तीसरे स्थान पर हैं. बिहार की राजधानी पटना छठवें तथा छ्तीसगढ़ की राजधानी सातवें स्थान पर है.
बेशक यह दावा किया जा सकता है कि इस सूची के अनुसार रायपुर का स्थान सबसे नीचे है परन्तु उससे राजधानी में बढ़ रहे दमा तथा फेफड़े के रोगों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है.
दुनिया का सर्वाधिक प्रदूषित शहर जबोल है जहां प्रदूषण 217 पीएम है. भारत के शहरों में ग्वालियर में यह प्रदूषण 176 पीएम, इलाहाबाद में 170 पीएण, पटना में 149 पीएम तथा रायपुर में 144 पीएम है.
उल्लेखनीय है कि देश की राजधानी दिल्ली साल 2014 में विश्व-स्वास्थ्य-संगठन के अनुसार दुनिया का सर्वाधिक प्रदूषित शहर था जो अब नीचे खिसककर 11वें स्थान पर आ गया है.
गौरतलब है कि विश्व-स्वास्थ्य-संगठन दुनिया के 103 देशों के 3000 शहरों के प्रदूषण का अध्ययन करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि रायपुर दुनिया का सातवां सबसे प्रदूषित शहर है.
विश्व-स्वास्थ्य-संगठन का कहना है कि प्रदूषण के कारण इन शहरों में स्ट्रोक, हृदय रोग तथा फेफड़ों के कैंसर के मामलें बढ़ रहें हैं. इस प्रदूषण से दमा तथा फेफड़ों की अन्य बीमारियां भी बढ़ रही है.
विश्व-स्वास्थ्य-संगठन ने एक प्रेस रिलीज में कहा है कि यह तथ्य चौकाने वाला है कि दुनिया के कम तथा मध्यम आय वाले देशों में प्रदूषण ज्यादा बढ़ रहा है जबकि उन्नत देशों में प्रदूषण कर हो रहा है.
पिछले कई सालों से रायपुर और छत्तीसगढ़ के प्रदूषण पर काम कर रहे रविशंकर विश्व विद्यालय के डॉक्टर शम्स परवेज का मानना है कि रायपुर में तीन तरह के प्रदूषण के कारण परेशानी बढ़ी है. परवेज के अनुसार बढ़ते उद्योग के अलावा खाना बनाने के लिये ठोस ईंधन का उपयोग और रोड ट्रैफिक के कारण रायपुर में प्रदूषण बढ़ा है.
डॉक्टर परवेज़ कहते हैं- “6 जनवरी 2016 को रायपुर में प्रदूषण 328 माइक्रोग्राम प्रति वर्ग मीटर था. यह आंकड़ा बहुत भयानक है.”
गौरतलब है कि दिसंबर 2015 में जब बीजिंग में पार्टिकुलेट मैटर 2.5 की संख्या 250 और 300 माइक्रोग्राम पहुंची थी, तब दुनिया भर में हंगामा मच गया था.
सामाजिक कार्यकर्ता गौतम बंदोपाध्याय कहते हैं- “हमारे यहां किसी बात पर हंगामा नहीं मचता. जिन सरकारों पर हमारी सुरक्षा और देखभाल की जिम्मेवारी है, वे भी सब कुछ जानते-बूझते हुये चुप्पी साधे हुये हैं. यह रायपुर का दुर्भाग्य है.”
भारत सरकार द्वारा 2005 में रायपुर को पहली बार देश का सर्वाधिक प्रदूषित शहर घोषित किया गया था. इसके बाद दिसंबर 2015 में फिर से भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ को यह तमगा दिया है.
उल्लेखनीय है कि जनवरी 2016 में सीजीखबर से बातचीत में बीआर अंबेडकर अस्पताल के छाती रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. आरके पंडा ने कहा था- “मैं 10 सालों से रायपुर में मरीज देख रहा हूं परन्तु पिछले तीन सालों में यहां पर वायु प्रदूषण के कारण दमा, एलर्जी के मरीज ज्यादा बढ़ गये हैं.”
उनका कहना था कि अभी गुरुवार को ही उऩकी एक मरीज मक्का से लौटी है. वहां पर वह ठीक थीं परन्तु रायपुर पहुंचते ही उन्हें दमे का दौरा पड़ा. डॉ. पंडा का कहना है कि जो मरीज पिछले तीन सालों में इलाज के बाद ठीक हो गये थे, वे फिर से इस साल दमा तथा एलर्जी की शिकायत लेकर आ रहे हैं.
डॉ. पंडा ने कहा था-”रायपुर से बाहर जाते ही मरीजों को राहत मिलने लगती है.”
विकास के नाम पर पिछले 15 सालों में रायपुर स्पांज आयरन, पावर प्लांट और स्टील उद्योगों से घिर गया है. दिन रात हवा में काला धुआं उगलते इन उद्योगों के कारण हवा में कई तरह के रासायनिक तत्व फैलते रहते हैं. लेकिन हवा में घुलते ज़हर को रोकने की कोई कोशिश कहीं नज़र नहीं आती.
वहीं ग्रीनपीस इंडिया के कैंपेनर सुनील दहिया ने कहा, “इस प्रक्रिया में सभी राज्यों और सभी संबंधित पक्षों को शामिल करना होगा. वायु प्रदूषण आज एक राष्ट्रीय समस्या है और इससे निपटने के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना वक्त की जरूरत है.”
दूसरे कारणों के साथ-साथ भारत में जीवाश्म ईंधन की बढ़ती खपत भी वायु प्रदूषण की एक बड़ी वजह है. वायु प्रदूषण में माध्यमिक कणों एसओ2 और एनओएक्स की उल्लेखनीय वृद्धि के लिए तापीय बिजली संयंत्रों से उत्सर्जन को प्रमुख रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
सुनील ने कहा, “हमें खुशी है कि सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कुछ कदम उठाए हैं- जैसे तापीय बिजली संयंत्रों से उत्सर्जन के नए मानकों को लागू करना. अब सबसे जरूरी यह है कि इन नीतियों और मानदंडों को लागू किया जाए, जिससे आम लोगों पर वायु प्रदूषण का मंडरा रहा खतरा कम हो. साथ ही, पर्यावरण पर कई सकारात्मक परिणाम के लिए सरकार को स्वच्छ व अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ना चाहिए. यह एकमात्र रास्ता है, जिससे हम आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और स्वस्थ्य भविष्य दे सकते हैं.”