प्रसंगवश

राहुल उवाच

कनक तिवारी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी मासूमियत में फिर बयान दिया है जिससे पार्टी को सफाई देने की असुविधा पैदा हो गई है. राहुल ने यह तो संभलकर कहा कि इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिखों के कत्लेआम में कांग्रेस पार्टी की कोई भूमिका नहीं थी लेकिन अर्णव गोस्वामी के प्रतिप्रश्न में राहुल ने कह दिया कि कुछ मंत्रियों का नाम उस समय आया तो था.

अकाली दल सहित भाजपा के और अन्य नेता लट्ठ लेकर राहुल के पीछे पड़ गए हैं कि मंत्रियों के नाम बताएं. ज़ाहिर है मंत्रियों के नाम बताना राजनीतिक दृष्टि से संभव नहीं होगा. सिखों का दिल्ली सहित देश के अन्य इलाकों में हुआ कत्लेआम प्रतिशोध की वजह से हुआ था.

राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह के पूर्व सचिव तरलोचन सिंह ने मामले को यह कहकर उलझा भी दिया है कि इस संबंध में ज्ञानी जैलसिंह की सलाह को कांग्रेस नेतृत्व द्वारा अनसुना कर दिया गया था. हादसा इस लायक नहीं था कि गड़े मुरदे उखाड़े जाते. राहुल गांधी ने भट्टा पारसौल में गरीबों और किसानों के मारे जाने को लेकर बयान दिया था. वह बाद में तथ्यपरक सिद्ध नहीं हो सका.

उनके राजनीतिक सिपेहसालार दिग्विजय सिंह को गलत आंकड़े मुहैया कराने का दोषी करार दिया गया था. राहुल ने यह सनसनी भी फैलाई थी कि मुजफ्फरनगर सहित अन्य दंगों के सिलसिले में उन्हें यह बताया गया था कि अल्पसंख्यक नवयुवकों को पाकिस्तान की एजेंसी के लोगों द्वारा राष्ट्रविरोधी हरकतों के लिए भड़काया जा रहा है. राहुल गांधी पारदर्शी तथा गैर राजनीतिज्ञ नवयुवक की तरह सियासत के दलदल में आ गए हैं.

उनके पिता राजीव गांधी भी अपनी कई सपाटबयानियों के लिए विवादग्रस्त बनाए गए थे. यह तो देश भी जानता है कि कुछ कांग्रेसी नेताओं ने इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद खून का बदला खून से लेंगे जैसे नारे सिखों की छाती और पीठ पर उगाए थे. सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर और कमलनाथ के नाम सिख लगातार लेते रहे हैं. एक तरफ राहुल गैस सिलेंडरों की संख्या बढ़वा देते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मनमोहन मंत्रिमण्डल द्वारा दोषी नेताओं को बचाने के अध्यादेश को रद्दी की टोकरी में फेंकने लायक बता देते हैं. अन्य कई विवादास्पद सरकारी निर्णयों को फाड़कर फेंक देते हैं.

उनके अच्छे कामों की तारीफ विरोधी पार्टियां नहीं करतीं. यदि वे निष्कपट बयान देते हैं तो उनकी पार्टी अपने चरित्र और कर्म के कारण खुद कटघरे में खड़ी हो जाती है. राहुल का नैतिक साहस कहता है कि कांग्रेस को आम आदमी पार्टी से भी सीखना चाहिए. पारंपरिक पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के खुर्राट नेता राहुल से सबक सीखने के बदले कानाफूसी में उनकी बुराई करने में मशगूल रहते हैं.

मोदी में आज तक साहस नहीं हुआ कि 2002 के गुजरात दंगों के लिए अल्पसंख्यकों और देश से माफी मांगें. सिखों की हत्या से सम्बद्ध कांग्रेस के नेता भी आज तक माफी नहीं मांग पाए. ये पारंपरिक नेता पुलिस और अदालत की भूल भुलैया में जनस्मृति को भटकाते रहने के उस्ताद कारीगर हैं.

* उसने कहा है-3

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