Columnist

नाम में क्या रखा है

सुनील कुमार
कुछ लोगों के लिए नाम में इतना कुछ रखा होता है कि बड़े-बड़े पंडित-पुरोहित नाम के पहले अक्षर तय करते हैं, और फिर साहित्य या संस्कृति के जानकार लोगों से पूछा जाता है कि इस अक्षर से शुरू होने वाला कोई अच्छा नाम बताएं. एक अखबारनवीस होने की वजह से मुझसे भी कई बार यह पूछा जाता है कि इस तरह के मतलब वाला और इस अक्षर से शुरू होने वाला कोई अच्छा सा नाम सुझाऊं, लेकिन मैं इसमें नाकामयाब हो जाता हूं क्योंकि साहित्यिक या पौराणिक जड़ों वाला कोई नाम मुझे सूझ नहीं पाता. लोगों के जब अच्छे-भले नाम रख दिए जाते हैं, तो फिर उन्हें कोई अंक ज्योतिषी आकर ऐसे हिज्जे सुझाने लगते हैं जिससे नाम के कुल अंक बदलकर कुछ और हो जाएं. ऐसा करके भी बहुत से लोगों को राहत मिलती है कि अब उनका भाग्योदय हो जाएगा. पता नहीं इससे किस्मत चमकती है या नहीं, लेकिन नाम में क्या रक्खा है?

अब अगर आज दुनिया के कुछ सबसे कामयाब नामों को देखें, तो इंटरनेट की शुरुआत में ही एक बड़ी कामयाब कंपनी रही, याहू. अब याहू शब्द शायद जंगल में टार्जन नाम के एक किरदार की लगाई गई आवाज से शुरू हुआ होगा, हालांकि अंग्रेजी भाषा का इतिहास बताता है कि गुलीवर की कहानियों में जिन यात्राओं का जिक्र है उनमें एक नस्ल या जाति का नाम अठारहवीं सदी में, 1726 में, याहू लिखा गया था. अब जो भी हो एक इंटरनेट कंपनी ने अपना नाम याहू रखा, तो यह नाम ऐसा चल निकला कि खासे अरसे तक यह कंपनी इंटरनेट की सबसे कामयाब कंपनी रही, जब तक कि बाजार के गलाकाट मुकाबले में गूगल जैसी दूसरी कंपनी ने उसे पीछे न छोड़ दिया, और धीरे-धीरे बाजार के बाहर न कर दिया.

अब हम गूगल की ही देख लें, तो इस शब्द का कोई मतलब तो था नहीं, और जब इस कंपनी ने अपना यह नाम रखा, तो उसके पहले शायद किसी ने यह शब्द सुना नहीं था. लेकिन आज गूगल नाम से बढ़कर एक शब्द बन गया है जो कि किसी भी चीज की तलाश के लिए इस्तेमाल होने लगा है. आज लोग बातचीत में यह नहीं कहते कि इंटरनेट पर ढूंढो, लोग यह कहते हैं कि गूगल कर लो.

एक नाम ब्रांड नाम से एक जेनेरिक नाम हो गया. ठीक उसी तरह जिस तरह कि हिन्दुस्तान में एक समय घर के किसी बच्चे का नाम टुल्लू होता था, और बाद में एक कंपनी ने अपने एक छोटे वॉटर-पंप का नाम टुल्लू रख दिया. बाद में यह ब्रांड नाम इस तरह चल निकला, और घरेलू इस्तेमाल में इस ब्रांड नाम का ऐसा एकाधिकार कायम हो गया कि अब म्युनिसिपलें नल में पंप लगाकर पानी खींचने के खिलाफ जो कानूनी नोटिस जारी करती हैं, उस नोटिस में पंप की जगह टुल्लू पंप लिखा जाता है, मानो कि दूसरी कंपनी के पंप लगाकर पानी चोरी करना कानूनी है.

अब एप्पल जैसा साधारण शब्द, जो अंग्रेजी में सेब के लिए है, उस नामसे आज दुनिया की सबसे बड़ी कम्प्यूटर-सामान बनाने वाली कंपनी खड़ी हो गई है. और मजे की बात यह है कि इस कंपनी के मार्के में सेब पूरा भी नहीं दिखता है, और उसका एक हिस्सा खाया हुआ दिखता है, फिर भी यह जूठा सेब आज दुनिया का सबसे कामयाब और सबसे प्रतिष्ठित मार्का हो गया है, इसके मुकाबले कोई दूसरा ब्रांड आज दुनिया में नहीं है. अब भला किसी कम्प्यूटर कंपनी के नाम का एक सेब से, और वह भी एक जूठे सेब से क्या लेना-देना हो सकता था? लेकिन नाम चल निकला तो चल निकला.

आज हिन्दुस्तान की सड़कों के किनारे देखें, तो जो दो ब्रांड सबसे अधिक चमकते दिखते हैं, वे ओप्पो और विवो हैं. इन दोनों नामों का हिन्दुस्तान में न तो कोई मतलब है, और न ही कभी उनका चलन रहा, लेकिन रातों-रात ये नाम ऐसे चल निकले कि अब खबरें आती हैं कि कुछ लोग अपने बच्चों का नामइन मोबाइल फोन ब्रांड पर रखने लगे हैं. इसलिए नामों का महत्व कहीं होता भी होगा, और बहुत से मामलों में नामों का कोई महत्व नहीं रह जाता.

अब ब्रांड और कंपनी से हटकर अगर इंसानों को देखें तो गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे के तो नाम में ही राम था. उसके नाम के बीचों-बीच राम बसे थे. लेकिन उसका काम राम सरीखे गांधी की हत्या करना था. अभी कुछ समय पहले हमने एक खबर छापी थी कि सामूहिक बलात्कार के एक मामले में पकड़ाए गए कई लोगों के नामों को देखें, तो उसमें यह बलात्कारी गिरोह सर्वधर्म का लगता था, उसमें हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सभी नामों के लोग थे, और आधा दर्जन लोग ऐसे थे जिनके नाम ईश्वर के नाम पर रखे गए थे. अब उनके नाम का उन पर क्या असर हुआ?

ऐसा भी नहीं कि नाम की कोई अहमियत नहीं होती. आज हिन्दुस्तान के किसी गांव में पैदा, गांव में पले-बढ़े हुए लोग भी पूरी दुनिया के किसी भी देश में पहुंच जाते हैं. और ऐसे में उनके नाम, उनके पारिवारिक नाम, इन सबका उन देशों की भाषाओं में क्या मतलब होता है, उन भाषाओं में इन नामों के क्या हिज्जे होते हैं, कैसा उच्चारण होता है इसको समझ लेना भी जरूरी है. यहां प्रचलित एक नाम ऐसा है जिसके अंग्रेजी हिज्जे, और अंग्रेजी उच्चारण इन दोनों का मतलब महिला के शरीर का एक हिस्सा होता है, और मैं यह कल्पना भी नहीं कर पाता हूं कि ऐसे नाम वाली कोई भारतीय लड़की किसी अंग्रेजी देश में जाकर वहां किस तरह की शर्मिंदगी और परेशानी झेलेगी. इसलिए आज लोगों को अपने बच्चों के नाम रखते हुए कम से कम अंग्रेजी दुनिया में तो उसके हिज्जे और उच्चारण के बारे में सोच ही लेना चाहिए.

भारत में बहुत से लोग अपने बच्चों के नाम साहित्य, संस्कृति, पुराण, इस तरह की कई बातों के चक्कर में ऐसा रख देते हैं कि उन बच्चों की जिंदगी न सिर्फ अंग्रेजी वालों को अपने नाम के हिज्जे बताने में गुजर जाती है, बल्कि हिन्दी वालों को भी अपने सही हिज्जे बताते हुए वे थक जाते हैं. ऐसे क्लिष्ट और ऐसे गरिष्ठ नाम अपने बच्चों को देना उनके सिर पर बाकी पूरी जिंदगी के लिए एक टोकरे के वजन भर देने सरीखे होता है. इसलिए नाम रखते हुए देस-परदेस में उसके मतलब, उसके हिज्जे, उसके उच्चारण के बारे में सोच लेना चाहिए या फिर इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि अपने राजा बेटे प्रद्युम्न का नाम अमरीका पहुंचते ही पैडी हो जाएगा, यानी धन उसके पास बाद में आएगा, वह धान (पैडी) पहले हो जाएगा.

इसलिए कंपनियों के नाम बताते हैं कि नाम में कुछ नहीं रखा है, कामयाबी ही सब कुछ है, दूसरी तरफ इंसानों के नाम बताते हैं कि उनके नाम में ईश्वर बसे हों, तो भी वे दुनिया के इतिहास के सबसे बुरे हत्यारे और सबसे बुरे बलात्कारी हो सकते हैं. इसलिए आज के इस कॉलम की हैडिंग में प्रश्नवाचक चिन्ह भी है, और विस्मयबोधक चिन्ह भी है, आप अपने हिसाब से मतलब निकालते रहिए.
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शाम के अखबार छत्तीसगढ़ के संपादक हैं.

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