भारत में संभव है शाकाहार?
नई दिल्ली | एजेंसी: खान-पान में पूर्ण शाकाहार, वेगानिज्म यानी पशुओं के दूध व मांस से परहेज एक नया चलन है, जो तेजी से पूरे विश्व में अपनाया जा रहा है. यदि आप भी वेगानिज्म को अपनाने के बारे में सोच रहे हैं, तो गाय-भैंस के दूध की जगह सोयाबीन से बना दूध और उसी का पनीर जैसे उत्पादों की बाजार में उपलब्धता बेहद सीमित है और इनकी कीमत भी दूध और पनीर जैसे प्राकृतिक उत्पादों से कहीं ज्यादा है.
दिल्ली के वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल की आहार विज्ञान एवं चिकित्सकीय पोषण विभाग की प्रमुख सीमा सिंह ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि यह नया विकल्प व्यावहारिक दृष्टिकोण से सही है, क्योंकि पहली बात तो यह है कि भारत में दूध और पनीर बाजारों में आसानी से उपलब्ध होते हैं, जबकि टोफू और सोया मिल्क कुछ चुनिंदा बड़े सुपर मार्केट में ही मिलते हैं.”
उन्होंने कहा, “घर पर टोफू और सोया मिल्क जैसी चीजें तैयार करना बेहद महंगा होगा. मेरा कहना है कि इन चीजों का इस्तेमाल करना हानिकारक नहीं है, लेकिन यह पूरी तरह से शहरी अवधारणा है और छोटी जगहों पर यह चल नहीं पाएगी.”
वेगानिज्म पश्चिमी देशों में बेहद लोकप्रिय है, भारत में भी वेगानिज्म एक नए चलन के रूप में उभरा है. वेगानिज्म अपनाने के पीछे लोगों की ेमंशा है मांस-मछली के अलावा पशुओं का दूध, उससे बना दही और पनीर से परहेज करना यानी पूर्ण शाकाहारी भोजन.
वेगानिज्म अपनाने वालों का मकसद है पर्यावरण की रक्षा और पशु हिंसा को रोकना तथा स्वस्थ जीवनशैली अपनाना.
कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल की आहार विशेषज्ञ हनी टंडन के मुताबिक, भारतीयों के लिए बिना स्वाद वाले टोफू और सोया मिल्क को नियमित आहार और खान-पान की आदतों में शामिल करना आसान नहीं है. उन्होंने कहा, “लोग इसे बेमन से खाते हैं. बहुत सी कंपनियां तो लोगों को वेगानिज्म अपनाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से अलग-अलग स्वाद वाले सोया मिल्क बाजार में उतार रही हैं. लेकिन मेरा अनुभव कहता है कि इन उत्पादों को अपनाना बहुत से लोगों के लिए असंभव है.”
वेगनिज्म को हालांकि अब पूरे विश्व में बड़ी तेजी से स्वस्थ जीवनशैली के एक हिस्से के रूप में अपनाया जा रहा है. लोगों को इसका फायदा भी मिल रहा है.
कई लोगों का तो यहां तक मानना है कि वेगानिज्म अपनाने के बाद उनका उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मोटापे जैसी बीमारियां काफी नियंत्रित हो गई हैं.