Columnist

तीन तलाक का विरोध तो ठीक है लेकिन…

सुनील कुमार
इन दिनों उत्तरप्रदेश में हिन्दुत्ववादी लोग मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से बचाने पर जुट गए हैं
इन्हीं कोशिशों में एक यह है कि हनुमान मंदिर में मुस्लिम महिलाएं बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ कर रही हैं कि उससे वे तीन तलाक से छुटकारा पा सकेंगी.यह बात सही है कि सीता को रावण की कैद से छुड़ाकर लाने के लिए हनुमान ने बहुत कोशिश की थी.लेकिन जहां तक तीन तलाक से महिला को बचाने की बात है. तो रामकथा के प्रसंग को याद करने की जरूरत है.जब राम ने गर्भवती सीता को घर से निकाल दिया. तो वह एक किस्म से पत्नी का त्याग कर देना ही था. और सीता अकेले ही अपने गर्भ में पल रहे लव-कुश को लिए हुए हमेशा के लिए चली गई थी.

मुझे रामकथा की बहुत अधिक जानकारी नहीं है. लेकिन गर्भवती पत्नी को हमेशा के लिए घर से निकाल देने वाले राम के भक्त हनुमान ने उस वक्त सीता को बचाने के लिए क्या कुछ किया था? उस युग में कुछ न कर पाए हनुमान से आज मुस्लिम महिलाओं को उम्मीद दिलवाई जा रही है. हे राम!

मुस्लिम महिलाओं को इंसानी हक दिलाने की जिद तो अच्छी है क्योंकि इंसानी हक तो हर किसी को मिलने ही चाहिए.लेकिन कई तरह के सवाल उठते हैं कि जिन लोगों के अपने घरों में सिरफुटव्वल चल रहा हो. वे पड़ोसी के घर की बहस में दखल देने क्यों जा रहे हैं? आज हिन्दू या जैन समाज में कन्या भ्रूण हत्या से लेकर दहेज तक की कहानियां आम हैं.हिन्दुओं के बीच अभी तक राज करने वाले हिंसक और हमलावर तबके से यह करते भी नहीं बन पाया है कि दलितों को पैरों तले कुचलने के लिए हिन्दू समाज के भीतर रखा जाए. मंदिरों में उन्हें आने दिया जाए. या कि मार-मारकर बाहर निकाला जाए. उनके पेशे को गंदा कहा जाए. उनके खानपान पर रोक लगाई जाए. उनसे गैरदलितों की शादियों को रोका जाए. और दलित महिलाओं के साथ जितना बन सके उतना बलात्कार किया जाए.

हिन्दू समाज के जो लोग आज मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से आजादी दिलाने के लिए लगे हुए हैं. उनके पास हिन्दू समाज के भीतर के इन सवालों के कोई जवाब नहीं हैं. और न ही इस इम्तिहान में बैठने में उनकी कोई दिलचस्पी है.इसलिए तीन तलाक के मुद्दे पर उनकी मुस्लिम महिला-हिमायत देखकर थोड़ी सी हैरानी भी होती है कि क्या हिन्दुओं ने अपने भीतर के सारे झगड़ों को सुलझा लिया है. और उनके पास बाकी दुनिया को सुधारने के लिए समय ही समय है?

तीन तलाक
तीन तलाक
गोमांस खाने न खाने को लेकर आज राष्ट्रीय हिंसा का एक सबसे बड़ा मुद्दा गैरहिन्दुओं पर हमले का नहीं है. यह हिन्दू समाज के एक बहुत ही छोटे हमलावर तबके का बहुसंख्यक हिन्दू आबादी पर हमला है. और खानपान की ऐतिहासिक हकीकत को नकारते हुए आज एक पाखंडी पवित्रता लादने की हिंसक जिद है.इसलिए हिन्दू समाज का जो सत्तारूढ़ तबका मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की हिंसा से आजाद करने का बीड़ा उठाए खड़ा है. वह सत्तारूढ़ तबका अपनी पवित्रतावादी पाखंडी मान्यताओं को दूसरी विचारधाराओं पर. हिन्दू समाज के दूसरे हिस्सों पर. आदिवासियों सरीखे गैरहिन्दुओं पर थोपने पर उतारू है. और उसके लिए मुस्लिम समाज की दकियानूसी मान्यताओं पर हमला अपने हमलावर मिजाज का एक विस्तार ही है. कोई मुस्लिम-कल्याण नीति नहीं है.

वैसे तो समाज सुधार के लिए जो कोई भी आगे आएं. वह एक अच्छी बात रहती है. लेकिन आज सुधार की जरूरत जिन लोगों को सबसे अधिक है. और जिनके भीतर के ताकतवर. बाहुबलि लठैत जिस तरह से कानून की बांह मरोड़ रहे हैं. और बेकसूरों को मार रहे हैं. तो सवाल यह भी उठता है कि सरकार और सत्तारूढ़ लोगों की प्राथमिकता मुस्लिम समाज की दकियानूसी मान्यताओं को खत्म करना होना चाहिए. या कि सत्तारूढ़ समाज के भीतर की ताजा खड़ी की जा रही हिंसा को खत्म करना होना चाहिए.सैद्धांतिक रूप से तो यह कहा जा सकता है कि ये दोनों बातें साथ-साथ चल सकती हैं.

लेकिन हमने यह देखा है कि सत्तारूढ़ पाखंड को खत्म करना तो दूर रहा. पाखंडी मुद्दों पर सत्ता के हिंसा को ताजा खड़ा करने की अंतहीन कोशिशें चल रही हैं. और कहीं पर रोमियो का लेबल लगाकर नौजवान भाई-बहनों को पीटा जा रहा है. तो कहीं सिनेमाघर से लौटते पति-पत्नी से शादी का प्रमाणपत्र मांगा जा रहा है.कन्या भ्रूण हत्या पर बात ही नहीं हो रही है. दहेज और दहेज हत्या पर बात ही नहीं हो रही है. आबादी में हिन्दू लड़कियों का अनुपात लगातार गिरने पर बात ही नहीं हो रही है. और जिस गाय को बचाने के लिए इंसानों को मारा जा रहा है. उस गाय के लिए भी घूरे से परे किसी खाने के इंतजाम की बात नहीं हो रही है.

पाखंड से भरा हुआ ऐसा चाल-चलन लोगों की नीयत पर सवाल खड़े करता है कि आज मुस्लिम महिला के हिमायती बने हुए ये लोग अपने ही घरों में भ्रूण हत्या रोकने के लिए क्या कर रहे हैं. लड़कियों को लड़कों के बराबरी के हक दिलाने के लिए क्या कर रहे हैं. दहेज और दहेज हत्या रोकने के लिए क्या कर रहे हैं. विधवाओं की हालत सुधारने के लिए क्या कर रहे हैं? ये लोग अपने समाज के भीतर अलग-अलग तबकों के खानपान. पहरावे. बोली और रिवाजों की विविधता के सम्मान के लिए क्या कर रहे हैं? ये लोग उत्तर-पूर्व और कश्मीर के लोगों की विविधता और असहमत राजनीतिक विचारधारा के साथ तालमेल बिठाने के लिए क्या कर रहे हैं?

ये वही लोग हैं जिन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मुस्लिम विरोधी नफरत सुलगाने वाले डोनाल्ड ट्रंप की जीत के लिए दिल्ली में हिन्दू-हवन किए थे और आज उस डोनाल्ड ट्रंप ने मुस्लिमों से अधिक हिन्दुस्तानी-कामगारों के रोजगार की हत्या की है.इसलिए जब ऐसे लोग एकाएक मुस्लिम समाज की बेइंसाफी के खिलाफ खड़े होते हैं. तो उनकी लाठियों से कहीं अधिक उनकी नीयत को लेकर सवाल खड़े होते हैं.हर लाठी के पीछे दर्जनभर सवाल साफ-साफ खड़े दिखते हैं. और ऐसे में लगता है कि गब्बर सिंह ने अगर रामगढ़ की बसंतियों को आयरन की टेबलेट बांटने की समाजसेवा कर रहा है. तो पहले वह अपनी और सांभा-कालिया की बाकी हरकतों पर जवाब तो दे दे.

महिलाओं को आयरन की टेबलेट की जरूरत तो रहती है. लेकिन रामगढ़ के लोगों को गब्बर की बाकी हिंसा से आजादी की जरूरत भी तो रहती है.और आज तो पूरे देश में बहुसंख्यक हिन्दू और गैरहिन्दू तबकों पर. एक अल्पसंख्यक-हिन्दू तबके की लगातार बढ़ती हिंसा की जवाबदेही कोई नहीं उठा रहा है. हर किसी के पास महज चुप्पी है.

*लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शाम के अखबार छत्तीसगढ़ के संपादक हैं.

error: Content is protected !!