आदिवासियों के आंदोलन से गरमाई बैलाडिला की पहाड़ियां
दंतेवाड़ा | संवाददाता: बस्तर में बैलाडिला के नंदराज पहाड़ में आयरन ओर के खनन के खिलाफ हज़ारों आदिवासी गुरुवार से सड़कों पर हैं. बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा के 200 से भी अधिक गांवों के युवा, स्त्रियां और बुजुर्ग अपने-अपने घरों से दो दिन पहले ही राशन-पानी ले कर इस आंदोलन के लिये पहुंचे हैं और गुरुवार की रात उन्होंने खुले आकाश के नीचे गुजारी.
भारत में श्रेष्ठ लौह अयस्क के लिये चर्चित बैलाडिला की पहाड़ियों में पिछले कई सालों से आयरन ओर की खुदाई हो रही है. अब सरकार ने इन पहाड़ियों में से एक डिपाजिट-13 को अडानी को सौंप दिया गया है. आदिवासी इसका विरोध कर रहे हैं.
इससे पहले 2014 में इस खदान को केंद्र सरकार ने यह कह कर अनुमति नहीं दी थी कि प्राकृतिक रुप से बैलाडिला पहाड़ की खुदाई ठीक नहीं है. यहां दुनिया के श्रेष्ठतम और लुप्तप्राय वनस्पितयां हैं. इसकी खुदाई का पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.इसके बाद इस पहाड़ की खुदाई के लिये पिछले दरवाजे से खेल शुरु हुआ. नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन और छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम ने एक संयुक्त कंपनी बनाई एनएमडीसी-सीएमडीसी एनसीएल बनाई.
10 एमटीपीए की क्षमता वाले बैलाडिला की इस खदान को एमडीओ यानी माइन डेवलपर कम ऑपरेटर के तौर पर एनसीएल ने अडानी को सौंप दिया. हालांकि एनसीएल के मुख्य कार्यपालक अधिकारी वीएस प्रभाकर का दावा है कि सब कुछ नियमानुसार किया गया है.
प्रभाकर का दावा है कि अदानी को यह कार्य खुली निविदा के आधार पर एमएसटीसी (भारत सरकार का उद्यम) का पारदर्शी ई-निविदा पोर्टल के माध्यम से दिया गया था. कुल दस बोलीदाताओं ने निविदा दस्तावेज खरीदे तथा चार बोलियां नियत तारीख तक प्राप्त हुई थी. तीन बोलीदाता योग्य पाए गए तथा एक प्रस्ताव निरस्त कर दिया गया क्योंकि बोलीदाता वांछित योग्यता नहीं रखता था. प्रभाकर के अनुसार तीन बोलीदाताओं में मेसर्स अदानी इंटरप्राईजेज ने न्यूनतम बोली लगाई थी तथा उन्हें न्यूनतम बोलीदाता घोषित किया गया. सीईओ का दावा है कि अदानी को प्रति टन कीमत के संबंध में इसी प्रकार की विकसित खानों की तुलना में अत्यधिक किफायती पाया गया.
लेकिन विरोध करने वाले आदिवासियों का कहना है कि पांचवी अनुसूची वाले बस्तर में ग्राम सभा के बिना इस तरह की कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती. लेकिन ग्राम सभा के फर्जी दस्तावेज़ बना कर इस खदान की अनुमति ली गई. इसके अलावा इस पहाड़ में उनके इष्ट देवता प्राकृतिक गुरु नन्दराज की धर्म पत्नी पितोड़ रानी विराजमान हैं.
संयुक्त पंचायत समिति के नेताओं का कहना है कि 2014 में जिस खदान को पर्यावरण के दृष्टि से प्रतिकूल बता कर खनन से इंकार कर दिया गया था, वह 2019 में सही कैसे हो गया. इन नेताओं का कहना है कि इस खदान के लिये लाखों पेड़ काटे जायेंगे और इससे बस्तर का पर्यावरण नष्ट हो जायेगा.
इस बीच छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी 8 जून से आदिवासियों के इस आंदोलन में शामिल हो रहे हैं. दूसरी ओर आदिवासी नेता सोनी सोरी ने दुहराया है कि इस बार का आंदोलन महज ज्ञापन लेने-देने तक सिमित नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि इस बार आरपार की लड़ाई लड़ी जायेगी.